सम्पादकीय

कोरना वायरस के शक्ल, सूरत, दशा और दिशा में खतरनाक परिवर्तन

Gulabi
16 April 2021 1:31 PM GMT
कोरना वायरस के शक्ल, सूरत, दशा और दिशा में खतरनाक परिवर्तन
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कोविड के मामलों में बेतहाशा वृद्धि और संक्रमण दर से लेकर मौतों में वृद्धि ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है

कोविड के मामलों में बेतहाशा वृद्धि और संक्रमण दर से लेकर मौतों में वृद्धि ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. बड़े शहर ही नहीं छोटे-छोटे शहरों की स्वास्थ्य व्यवस्था भी अब दम तोड़ने लगी है. ऐसे में श्मशान हों या कब्रिस्तान वहां भी पीड़ित परिवार को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. आखिरकार साल 2020 की तुलना में साल 2021 के कोविड के व्यवहार, प्रकार, संक्रमण और घातकता में ऐसा क्या परिवर्तन आया कि भारत जैसा देश जीत के मुहाने तक पहुंचकर कोरोना के विकराल मुंह में समाता हुआ दिखाई पड़ रहा है.

पहले संक्रमित लोगों की संख्या 45 और उससे ज्यादा की थी और वह लोग ही गंभीर पेशेंट के तौर पर सामने आ रहे थे. इनमें से भी जो कोमॉरबिड कंडीशन में थे उनकी हालत खराब रिपोर्ट होती थी, लेकिन अब ट्रेंड पूरी तरह से चेंज हो चुका है. दिल्ली में कोरोना बीमारी से पीड़ित लोगों में 65 फीसदी आबादी 35 साल और उसके आस-पास की है जिनमें कई गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें आईसीयू की जरूरत है. पिछले साल केस फैटेलिटी रेट 45 साल और उससे उपर का 2.85 था और उससे नीचे की उम्र का .29 फीसदी था. लेकिन इस बार कहानी पूरी तरह से बदलती दिखाई पड़ रही है. इतना ही नहीं आठ गुना ज्यादा बच्चे भी बीमार हो रहे हैं जो परेशानी का सबब बनता जा रहा है.
आरटीपीसीआर हो रहा है फेल और थ्रोमबॉटिक डिसऑर्डर ज्यादा
कई लोग अलग-अलग राज्यों से आरटीपीसीआर में निगेटिव आ रहे हैं. वायरस के जीनोमिक सिक्वेंस में गंभीर परिवर्तन आरटीपीसीआर के सेट तौर तरीकों के दायरे में लाने में असफल दिखाई पड़ रहा है. इसलिए कुछ लोग जब तक सीटी स्कैन के जरिए कोविड पेशेंट के रूप में पहचाने जा रहे हैं तब तक उनका फेफड़ा बहुत खराब हो जा रहा है. इतना ही नहीं कई लोग निगेटिव आने पर रिलेक्सड हो जा रहे हैं और सुपर स्प्रेडर का काम कर रहे हैं. कई मरीजों में सांस का फूलना और लंबी-लंबी सांसो का लेना देखा जा रहा है. पेशेंट के बल्ड वैसल्स डैमेज हो रहे हैं और उनमें अक्सर बल्ड क्लॉटिंग की शिकायत आ रही है.
जाहिर है फेफड़े में ज्यादा प्रभाव की वजह से ऑक्सीजन, वेंटीलेटर और रेमेडिसविर जैसी दवाओं की मांग बढ़ गई है. यही वजह है कि हॉस्पीटल के बाहर गुजरात हो या मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र वहां पर एंबुलेंस की लंबी कतार हॉस्पीटल के बाहर दिखाई पड़ती है, जो हॉस्पीटल में अपनी बारी का इंतजार कर रहे होते हैं.
वायरस में निश्चित तौर पर है परिवर्तन इसलिए पुराने तौर तरीके हैं फेल
कोविड की बीमारी से वैक्सीन के दो डोज ले चुके पेशेंट समेत गांव और शहर के अलग-अलग राज्ये के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं. कोविड के संक्रमण की रफ्तार को देखकर डॉक्टर पूरी तरह से सकते में हैं. कई रोगियों में जब तक बुखार होता है तब तक उसकी हालत खराब हो चुकी होती है और उसे बचाना बेहद मुश्किल हो चुका होता है. वाइरोलॉजिस्ट प्रभात रंजन कहते हैं कि संक्रमण पूरी तरह से म्यूटेटेड वायरस से हो रहा है, इसलिए आरटीपीसीआर फेल हो रहा है और जब तक बीमारी पकड़ में आती है तबतक फेफड़ा खराब हो चुका होता है.
प्रभात रंजन कहते हैं कि कोविड का नया स्वरूप उम्र के दायरे को पार कर चुका है और अब इससे प्रभावित होने वालों की रफ्तार में गांव, शहर, छोटे-बड़े हर तरह के लोग आ चुके हैं. इसलिए सरकार को होम आइसोलेशन की जगह होम नर्सिंग पर ध्यान देना चाहिए. जहां एम्बूलेंस से लेकर डॉक्टर और नर्स जरूरत की दवा और इंजेक्टेवल के साथ समय पर इलाज कर सकें.
कोमॉरबिड कंडीशन नहीं होने पर भी मौत
पिछली बार साल 2021 में मौत के आगोश में आने वाले लोग ज्यादातर 45 के उपर और कोमॉरबिड कंडीशन वाले थे. लेकिन इस बार नॉर्मल पेशेंट भी मौत के मुंह में समा जा रहे हैं. वजह वायरस का बदलते आक्रमण का तरीका है और पेशेंट ज्यादातर लंग्स प्रभावित होने से मर रहा है. दरअसल साल 2001 में सार्स की बीमारी से लोग सीधा मर रहे थे और उनका लंग्स प्रभावित हो रहा था. उस समय मौत की वजह ADRS (Acute Disease Respiratory Syndrome) ही था जो अभी फिर सामने आने लगा है.
साल 2001 में होने वाली मौत की वजह SARS COV1 था जो अब SARS COV2 हो चुका है. साल 2021 में होने वाली मौत की वजह ज्यादातर न्यूमोनिया है जिसमें लंग्स सीधा-सीधा खराब हो जाता है और इसका पता रेडियोलॉजिस्ट को सीटी स्कैन और एक्सरे के जरिए पता चलता है. कहा जाता है कि इस बार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद पांचवें दिन वायरस के कोहराम का खतरा बहुत बड़ा रहता है और उसी दिन मौत और जिंदगी के बीच का फासला तय होता है.
डॉ अरुण शाह कहते हैं कि कोरोना वायरस के बदलते व्यवहार ने देश में हर तरह की समस्या पैदा कर दी है जिनमें हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर दवा तक की कमी सामने आ रही है. इसलिए बदलते हालात में किसी भी तरह की शरीर में समस्या होने पर फौरन जांच के लिए जाना चाहिए और किसी भी प्रकार की कमोजरी, खांसी, बुखार होने पर आरटीपीसीआर सहित सीटी स्कैन भी कराना चाहिए.


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