सम्पादकीय

धरती पर महाविनाश का खतरा

Subhi
17 Feb 2023 4:36 AM GMT
धरती पर महाविनाश का खतरा
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हाल ही के वर्षों में दुनिया एक के बाद एक त्रासदियां झेल रही है। कहीं भूकम्प तो कहीं बाढ़ तो कहीं सुनामी। 2011 में उभरी जापान में आई सुनामी से हुई जानमाल की क्षति को आज तक कोई भुला नहीं पाया।

आदित्य नारायण चोपड़ा: हाल ही के वर्षों में दुनिया एक के बाद एक त्रासदियां झेल रही है। कहीं भूकम्प तो कहीं बाढ़ तो कहीं सुनामी। 2011 में उभरी जापान में आई सुनामी से हुई जानमाल की क्षति को आज तक कोई भुला नहीं पाया। हाल ही में तुर्किए, सीरिया में आए भूकम्प से मरने वालों का आंकड़ा अब 50 हजार को छूने जा रहा है। ईरान में हुई भयंकर तबाही को देख हर कोई सिहर उठता है। बार-बार आ रहे तूफान हमें डरा रहे हैं। धरती का तापमान बढ़ने से जलवायु परिवर्तन के खतरों से दुनिया अ​नभिज्ञ नहीं है लेकिन मानव सतर्क नहीं हो रहा। बढ़ते वैश्विक तापमान के साथ बर्फ पिघलने और इससे बढ़ते समुद्र का स्तर दुनिया के लिए बड़ा संकट है। विश्व मौसम संगठन ने (डब्ल्यूएमओ) ने बहुत खतरनाक रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट के मुताबिक इसका असर छोटे द्वीप देशों में ही नहीं, घनी आबादी वाले तटीय शहरों में रहने वाले 90 करोड़ लोगों की जिन्दगी पर पड़ेगा। इसका अर्थ यही है कि धरती पर रह रहे हर दस में से एक शख्स बड़ी मुश्किल में आ जाएगा। इसमें भारत, बंगलादेश, चीन और नीदरलैंड जैसे देशों के लोग शामिल होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुम्बई, ढाका, शंघाई, लंदन और न्यूयार्क समेत दुनिया के कई शहरों के डूबने का खतरा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के पांवों तले की जमीन ​िखसक रही है परन्तु मानव बेपरवाह है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्लोबल वामिग डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहती है तो अगले दो हजार वर्षों में समुद्र का जल स्तर 2 से तीन मीटर बढ़ जाएगा। अगर ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में हम सफल भी हो जाते हैं तो समुद्र 6 मीटर तक उठ जाएगा और अगर ग्लोबल ​वार्मिंग 5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई तो दो हजार सालों तक समुद्र 1922 मीटर तक उठ जाएगा। दुनिया पर कयामत ढाने वाली हॉलीवुड की फिल्में तो आप ने देखी होंगी कि किस तरह शहर जल समाधि ले लेते हैं, लाशाें के ढेर लगे होते हैं और वाहन खिलौनों की तरह पानी में तैर रहे होते हैं। इंसान तो यही सोचता है कि 2000 वर्ष में अगर जलस्तर 2 या 3 मीटर बढ़ भी गया तो कौन सी कयामत आ जाएगी। इंसान का सोचना गलत है क्योंकि समुद्र के जलस्तर में एक इंच की बढ़ौतरी भी बहुत खतरनाक है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से केवल तटीय शहर ही नहीं डूबते बल्कि समुद्र की लवणता और उसके जलीय जीवन पर बड़ा विकराल प्रभाव पड़ता है। यह दुनिया की अर्थव्यवस्था, आजीविका, सेहत के जोखिम को बढ़ाएगा ही बल्कि इससे खाद्यान्न संकट भी पैदा हो जाएगा। कौन नहीं जानता कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान परसते जा रहे हैं। कहीं असामान्य बारिश तो कहीं गर्मियों में ओले पड़ जाते हैं। जलवायु परिवर्तन के पीछे ग्रीन हाउस गैसों की मुख्य भूमिका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके पीछे तेजी से हुआ औद्योगिकरण है। जंगल काट-काट कर कंक्रीट के शहर बसा दिए गए हैं। दुनिया भर में वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है और पैट्रोलियम पदार्थों के धुएं से प्रदूषण बढ़ रहा है। फ्रिज, एयर कंडीशनर और अन्य इलैक्ट्रोनिक उपकरण वातावरण को विषाक्त बना रहे हैं। अब सवाल यह है कि धरती का तापमान कम करने के लिए इंसान क्या करे।वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदाें का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के ​िलए मुख्य रूप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम करना होगा और इसके लिए फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं। औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं हानिकारक है और इनसे निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड गर्मी बढ़ाती है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। वाहनों में से निकलने वाले धुएं का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा। उद्योगों और खासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी तथा जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा। अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। याद रहे कि जो कुछ हो रहा है या हो चुका है वैज्ञानिकों के अनुसार उसके लिए मानवीय गतिविधियां ही दोषी हैं।संपादकीय :आईआईटी में जातिवादएक और श्रद्धा कांडत्रिपुरा के त्रिकोणीय चुनावचीन की खतरनाक चालमहापौर चुनाव पर कशमकशनये राज्यपालों की नियुक्तिमनुष्य ने अगर प्रकृति के संग जीना नहीं सीखा तो उसे भयंकर परिणाम झेलने पड़ेंगे। अगर वह अब भी नहीं चेता तो एक न एक दिन प्रकृति उसे निगल लेगी। धरती पर महाविनाश का खतरा मंडरा रहा है। इसे रोकने के लिए दुनिया को कदम उठाने होंगे।




क्रेडिट : newindianexpress.com

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