सम्पादकीय

खतरा टला नहीं

Gulabi
20 Oct 2020 2:38 AM GMT
खतरा टला नहीं
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समय रहते पूर्णबंदी जैसे सबसे अहम उपाय का एक फायदा यह हुआ कि कोरोना के संक्रमण को काफी हद तक सीमित किया जा सका।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोविड-19 के वैश्विक महामारी घोषित होने के बाद दुनिया के तमाम देशों के साथ-साथ भारत में भी इसके संक्रमण से बचाव के मद्देनजर सभी जरूरी कदम उठाए गए। समय रहते पूर्णबंदी जैसे सबसे अहम उपाय का एक फायदा यह हुआ कि कोरोना के संक्रमण को काफी हद तक सीमित किया जा सका। यही वजह है कि इससे संबंधित जिस व्यापक नुकसान की आशंका जताई गई थी, उसके मुकाबले हालात काबू में रहे।

जांच के व्यापक दायरों की वजह से मामलों की पहचान के साथ-साथ गंभीर लक्षण वाले लोगों के समुचित इलाज की व्यवस्था की गई। यह सही है कि कोरोना के गंभीर संक्रमण की चपेट में आ गए कई मरीजों की जान नहीं बचाई जा सकी, लेकिन इसके मुकाबले बहुत सारे लोगों को समय पर इलाज मुहैया कराया गया और वे फिर से स्वस्थ हुए। इस बीच महामारी की भयावहता को कम किया गया, लेकिन इससे निपटने के मुख्य उपाय के रूप में लागू की गई पूर्णबंदी की वजह से आम लोगों की माली हालत खराब होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी व्यापक नुकसान हुआ।

दरअसल, अर्थव्यवस्था को फिर से जीवन देने के मकसद से पूर्णबंदी में राहत दी गई और अब जन-जीवन सामान्य होने की राह पर है। मगर संक्रमण की दर में अब भी उतार-चढ़ाव बना हुआ है। शुरुआती दौर में सामुदायिक संक्रमण के बेलगाम होने की आशंका जताई गई थी, लेकिन समय पर बचाव के सख्त नियमों के लागू करने की वजह से इसका असर सीमित रहा। इसके बावजूद इसके खतरे कम नहीं हुए हैं।

इस मसले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने रविवार को कहा कि सामुदायिक संक्रमण का खतरा फिलहाल देश के सभी हिस्सों में नहीं है और अभी इसका असर कुछ ही जिलों में सीमित रहा है। यों विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सामुदायिक संक्रमण को लेकर कोई मानक परिभाषा अभी सामने नहीं आई है, लेकिन इसके फैलाव के स्वरूप, खतरे और उसमें उतार-चढ़ाव को देखते हुए इससे बचाव के लिए सभी जरूरी उपायों को लेकर चौकस रहना ही ज्यादा बेहतर है। इसे राहत का संकेत कहा जा सकता है कि पिछले करीब एक महीने से प्रति दिन के आकलन के दौरान कोरोना के प्रकोप को कम होता हुआ पाया गया है। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर जरूरी छूट में लापरवाही बरती गई तो फिर खतरा सामने खड़ा हो जा सकता है।

तथ्य यह है कि कोरोना का जोखिम अब भी खत्म नहीं हुआ है और लगातार जांच के बाद सामने आ रहे मामलों और मरीजों की तादाद से यह साबित भी हो रहा है। आंकड़ों में किसी दिन तात्कालिक कमी की वजह यह हो सकती है कि किसी अवकाश के दिन कम जांच की वजह से कम मामले सामने आएं। हालांकि इससे निपटने के लिए जो भी उपाय किए गए हैं, उसकी वजह से स्थिति को नियंत्रण में कहा जा सकता है।

मगर सर्दी के मौसम के करीब आने के साथ ही एक बार फिर संक्रमण की दर में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। जाहिर है, अगले कुछ महीने अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। पिछले दिनों पूर्णबंदी में राहत के बीच मिली छूट के दौरान देश के कई इलाकों में सड़कों पर निकलने से लेकर सभाएं करने तक के मामले में भारी लापरवाही देखी गई। अगर यह स्थिति बनी रही तो आने वाले दिन सबके लिए मुश्किल साबित हो सकते हैं। इसलिए अगर कोरोना के संक्रमण और असर को सीमित रखना है तो इसके पूरी तरह काबू में आने तक इससे बचाव के उपायों को लेकर सजगता ही सुरक्षित होने का अकेला उपाय है।

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