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बीते सप्ताह कई घटनाक्रम हुए हैं। देश के नए उपराष्ट्रपति चुने गए हैं
By: divyahimachal
बीते सप्ताह कई घटनाक्रम हुए हैं। देश के नए उपराष्ट्रपति चुने गए हैं। प्रथम ओबीसी चेहरे के तौर पर जगदीप धनखड़ इस दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होंगे। बहुत जल्द देश उन्हें राज्यसभा की कार्यवाही संचालित करते हुए देखेगा। इसके अलावा, कई स्तरों पर बयान दिए गए हैं कि अब भारत में लोकतंत्र नहीं है। सिर्फ चार चेहरों की 'तानाशाही' है। हम इसे 'राजनीतिक कुंठा' के अलावा कुछ नहीं मानते, क्योंकि आज भी हमारा लोकतंत्र एक उदाहरण है। महंगाई और बेरोजग़ारी पर कांग्रेस का प्रलाप जारी है। बार-बार सडक़ों पर उतर कर और हिरासत को सौंप कर कांग्रेस इसे 'जन आंदोलन' का आकार देना चाहती है। देश प्रतीक्षारत है। बहरहाल इसी दौरान भारत के कुछ बेटे और बेटियां राष्ट्रमंडल खेलों के अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार कीर्तिमान स्थापित कर 'तिरंगे' और देश को गौरवान्वित कर रहे थे। उन्हें शाबाश देनी चाहिए। उनकी पीठ थपथपाते हुए उनके हुनर को सलाम करना चाहिए। दरअसल वे सच्चे 'देशभक्त' हैं। हम मीराबाई चानू, जेरेमी और अचिन्त के भारोत्तोलन की स्वर्णिम सफलताओं का उल्लेख कर चुके हैं। अब बारी है कुश्ती और मुक्केबाजी की। ऐसा लगा मानो राष्ट्रमंडल खेलों का दंगल भारतीय पहलवानों के लिए सजाया गया था! बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक, दीपक पूनिया, रवि कुमार दहिया, विनेश फोगाट और नवीन कुमार ने अपने-अपने भार-वर्ग में 'स्वर्णिम दंगल' जीते और भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या 12 कर दी। शुक्रवार और शनिवार के दिन भारत के नाम दर्ज किए गए।
न जाने कितने कीर्तिमान बने होंगे! बहरहाल 11 रजत और 15 कांस्य पदक के साथ कुल 38 पदक भारत की झोली में आ चुके हैं। यह आंकड़ा अभी और भी बढ़ेगा, क्योंकि हम निकहत जऱीन, नीतू गंघास और अमित पंघाल सरीखे युवा-धाकड़ मुक्केबाजों की अंतिम भिड़ंत के नतीजों की प्रतीक्षा में हैं। जब आप यह संपादकीय पढ़ेंगे, उससे पहले ही इन बेटे-बेटियों के पदकों के रंग तय हो चुके होंगे-स्वर्ण अथवा रजत। निकहत अपने वर्ग में 'विश्व चैम्पियन' है और नीतू ने घरेलू ट्रॉयल के दौरान छह बार की 'विश्व चैम्पियन' मैरी कॉम को पराजित किया था। दोनों बेटियों का यह प्रथम राष्ट्रमंडल है। आज खासतौर पर अपने पहलवानों के हुनर का जिक़्र करेंगे, क्योंकि उन्होंने भारत को 'कुश्ती राष्ट्र' बना दिया है। दंगल का 'स्वर्णिम छक्का' ठोंकने वाले ये सभी कुश्तीबाज हरियाणा के हैं। हरियाणा कुश्ती, मुक्केबाजी और कबड्डी का गढ़ है। हमने दंगल के सभी प्रयास 'लाइव' देखे हैं। पहलवानों ने औसतन एक-डेढ़ मिनट में प्रतिद्वंद्वी पहलवान को या तो चित्त कर दिया अथवा तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर पराजित किया। वाकई दर्शनीय और भावुक कर देने वाली सफलताएं थीं। उनके दांव-पेंच देखकर हम हैरान थे मानो किसी शेर या मगरमच्छ ने अपने जबड़ों में शिकार को जकड़ लिया हो! रवि दहिया तो टोक्यो ओलिंपिक के रजत और बजरंग कांस्य पदक विजेता हैं।
साक्षी के साथ रियो ओलिंपिक की 'पदकीय' यादें जुड़ी हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में विनेश फोगाट का यह लगातार तीसरा स्वर्ण पदक है। ऐसी उपलब्धि वाली वह प्रथम भारतीय महिला पहलवान हैं। सुनहरे एहसास वाली ख़बर यह है कि देश के मुरली श्रीशंकर ने लंबी-ऊंची कूद, अविनाश साबले ने 3000 मीटर स्टीपल चेस और प्रियंका गोस्वामी ने 10,000 मीटर पैदल दौड़ में रजत पदक हासिल कर इतिहास रचा है। ऐसा बहुत कुछ पहली बार हो रहा है। पहली बार लॉन बाल्स के खेल में महिलाओं ने 'स्वर्णिम' और पुरुष टीम ने 'रजतीय' सफलता हासिल की है। देश के अधिकतर लोगों ने इस खेल का नाम तक नहीं सुना होगा। पहली बार क्रिकेट की बेटियां कमोबेश रजत पदक के साथ लौटेंगी। शायद महिला हॉकी में भी कांस्य पदक मिल जाए! बैडमिंटन में पीवी सिंधु, श्रीकांत अंतिम चार खिलाडिय़ों में पहुंच चुके हैं। कुछ और मुकाबले होने शेष हैं। संभव है कि फाइनल में भारत बनाम भारत ही हो! बहरहाल देश खेल की इन अभूतपूर्व सफलताओं पर जश्न मनाए, प्रेरणा ले, तपस्या करे और अंतत: एक सफल खिलाड़ी बनकर दिखाए, लेकिन एक सवाल कौंध रहा है कि ओलिंपिक की तरह विजेता खिलाडिय़ों के लिए नकद पुरस्कार की घोषणाएं नहीं की गई हैं। भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी मौन हैं। क्या राष्ट्रमंडल खेलों को दोयम दर्जे का आंका जा रहा है? यह सोच खेल और खिलाड़ी की संभावनाओं को खुरच सकती है, जरा पुनर्विचार किया जाए।
Rani Sahu
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