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- लखीमपुर में 'दलित'...

आदित्य चोपड़ा: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में जिस प्रकार दो दलित नव यौवनाओं की हत्या की गई है वह वास्तव में हृदय विदारक घटना है और पाशविकता का कृत्य है। इन दोनों किशोरियों के साथ पहले बलात्कार किया गया और बाद में उनका गला घोट कर उनके शवों को पेड़ों पर लटका दिया गया। इससे पता चलता है कि अपराधी किस जहरीली व खूंखार मानसिकता के हैं। पुलिस ने इस सम्बन्ध में जिन छह व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है वे सभी युवा हैं । इससे अपराध की गंभीरता और भी अधिक बढ़ जाती है क्योंकि युवा वर्ग में यदि ऐसी पाशविक मानसिकता स्थान बना लेती है तो फिर समाज के सभ्य रहने का सवाल भी बड़ा हो जाता है। जो तथ्य सामने आये हैं उनके अनुसार गिरफ्तार किये गये छह युवाओं में से पांच जुनैद, सुहैल, हफीजुर्रहमान, करीमुद्दीन, आरिफ व छोटू हैं। इनमें से छोटू मृत युवतियों के गांव का ही रहने वाला उनका पड़ोसी है। छोटू ने ही जुनैद व सुहैल से इन मृत किशोरियों की मित्रता कराई थी। जुनैद व सुहैल ने पहले उनके साथ बलात्कार किया और अपनी शारीरिक प्यास बुझाई और बाद में गला घोंट कर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद इन्होंने अपने घिनौने कारनामे पर पर्दा डालने के लिए अपनी मदद के लिए अन्य तीन साथियों को बुलाया, जिन्होंने इस हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उनके शवों को पेड़ पर लटका दिया। इस घटना की जांच पुलिस ने बहुत त्वरित गति से की और अपराधियों को अगले ही दिन ढूंढ निकाला। अब नागरिकों द्वारा मांग की जा रही है कि उन पर मुकदमा भी बहुत त्वरित गति से चले और उन्हें सख्त से सख्त सजा दी जाये। परन्तु किसी व्यक्ति की जान लेने वाले व्यक्ति को कितनी सख्त सजा दी जा सकती है सिवाय मृत्यु दंड के! परन्तु हमें यह सोचना होगा कि बलात्कारियों की बलात्कार करने के बाद पीड़िता की हत्या करने की प्रवृत्ति को कैसे रोकना होगा? बलात्कार के सबूत मिटाने के लिए अपराधी हत्या करने को क्यों उद्यत होते हैं? यह कानूनी व तकनीकी मामला है जिस पर विधि विशेषज्ञ ही कोई आधिकारिक राय दे सकते हैं और फौजदारी कानून के तहत यथायोग्य संशोधन करने की सिफारिश कर सकते हैं। जहां तक आम आदमी का सवाल है तो ऐसी घटनाओं से उस परिवार का जीवन दूभर हो जाता है जिस परिवार की कन्या होती है। परन्तु लखीमपुर खीरी के इस कांड में 'लव जेहाद' का कोण भी आ रहा है। वैसे तो भारत में कुछ लोगों को इस शब्द के प्रयोग पर भी आपत्ति होती है मगर वे हकीकत को नहीं बदल सकते। लव जेहाद शब्द सबसे पहले केरल उच्च न्यायालय के ही न्यायाधीश द्वारा प्रयोग किया गया था क्योंकि उस राज्य में गैर मुस्लिम युवतियों से मुस्लिम युवकों द्वारा विवाह करने के बाद उनके धर्म परिवर्तन पर जोर डाला जा रहा था और ऐसा ही एक मामला न्यायालय के संज्ञान में आया था। अभी हाल ही में हमने दुमका (झारखंड) में भी देखा है कि किस प्रकार एक मुस्लिम युवक ने एक हिन्दू नवयौवना के साथ इकतरफा प्रेम का इजहार करके उसके मना करने पर उस पर तेजाब फैंक कर उसकी हत्या कर दी थी। मगर दूसरी तरफ कर्नाटक में एक हिन्दू युवक द्वारा एक मुस्लिम युवती से विवाह करने के बाद उसके परिवार व सगे सम्बन्धियों ने युवक की दिन दहाड़े ही हत्या कर डाली। ऐसी घटनाओं से एक निष्कर्ष तो निकाला जा सकता है कि मुस्लिम मजहब के लोगों की मानसिकता को भारत के मुल्ला- मौलवियों ने कट्टरपन से भर दिया है। दूसरे धर्म की लड़की भी उन्हें तब स्वीकार है जब वह शादी होने पर अपना धर्म परिवर्तन कर ले और अपने मजहब की लड़की द्वारा हिन्दू से विवाह करने पर युवक की मौत की सजा है। यह इंसानी दरिंदगी की निशानी है। अपराध को मजहब के मुलम्मे में ढापने की यह खतरनाक साजिश है। मगर सवाल पूछा जा सकता है कि लड़कियों के साथ दरिंदगी होने पर भीड़ लगा कर शोर मचाने वालों की ब्रिगेड अब कहां गायब हो गई है। क्या इसकी वजह अपराधियों का मुस्लिम होना है? दो दलित कन्याओं की जघन्य हत्या हुई है मगर धर्मनिरपेक्षतावादी व मानवतावादियों की ब्रिगेड कहां सोई पड़ी है। अपराध के मामले में चुुनिन्दा होना किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। अपराधी का धर्म देख कर प्रतिक्रिया व्यक्त करना भी बेमानी है । मगर बड़ा सवाल यह है कि यदि इस घटना के पीछे लव जेहाद जैसी कोई भावना है तो उसका इलाज करने के लिए कुछ ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे इस मानसिकता में बदलाव आये परन्तु इसकी आड़ में हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदायों के जायज प्रेमी युगल जोड़ों को भी भारतीय संविधान की सुरक्षा देनी होगी जिसमें प्रावधान है कि किसी भी वयस्क को अपना मनपसन्द जीवन साथी स्वतन्त्रता के साथ चुनने का अधिकार है। इसमें धर्म, वर्ग, जाति या अन्य कोई सामाजिक वर्जना आड़े नहीं आयेगी।