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- रोज होते सांप्रदायिक...
ईद के पाक त्योहार के दिन राजस्थान के जोधपुर में जो कुछ हुआ, उसका विश्लेषण करने से पहले हम आपको याद दिला दें कि यह दिन बेहद महत्त्वपूर्ण था। इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने 'महाभारत महाकाव्य की रचना आरंभ की थी। इसी दिन सतयुग समाप्त हुआ था और समय ने त्रेता युग में प्रवेश किया था। परशुराम जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। अक्षय तृतीया कोई सोना-चांदी खरीदने का ही दिन नहीं है। यह तो पंडितों और व्यापारियों का धार्मिक खेल है। इस बार ईद-उल-फितुर का उत्सव भी इसी दिन आया। यह बड़ा महान और अलौकिक संयोग है। खून और हिंसा का उन्माद पैदा करने वाले इस 'दैवीय दिवस की महत्ता ही नहीं जानते। उन्हें तो यह ज्ञान भी नहीं मिला होगा कि ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह का बेशकीमती इनाम है। ईद अमन-चैन, भाईचारे, बरकत और इनसानियत का पर्व है। ईद पर अकीदतमंदों ने अमन-चैन की दुआ की होगी। इस दिन नमाज अदा करने के बाद सांप्रदायिक सद्भाव की ही अभिव्यक्ति होनी चाहिए। इनसान गले मिलते हैं, मुबारकें देते हैं, दुआएं करते हैं, लेकिन अचानक पत्थर, लाठी-डंडे, सरिए, नंगी तलवारें और छुरे तक कहां से आ जाते हैं। इनसानियत और भाईचारे की दुआ मांगने के बाद सिर पर कौन-सा उन्माद छाने लगता है! किसका खून सवार हो उठता है! हम मानते हैं कि यह मु_ी भर सिरफिरों का साजि़शाना खेल है। क्या हमारे पाक त्योहारों और खासकर लोकतंत्र का बलिदान करना पड़ेगा? क्या महज कपड़े का एक टुकड़ा हमें हिंदू-मुसलमान के तौर पर दोफाड़ करता रहेगा और फिर शुरू होगा हमलों और हिंसा का एक अंतहीन सिलसिला…? हम एक महान और विराट देश के नागरिक हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली