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- चीन की तवांग में...
आदित्य चोपड़ा; भारत के प्रति चीन का रवैया शुरू से ही 'दादागिरी' का रहा है। हालांकि भारत ने कभी भी अपनी ओर से उसकी दादागिरी का जवाब उसके अन्दाज में ही देना ठीक नहीं समझा क्योंकि भारत की मान्यता रही है कि दो पड़ोसी देशों के बीच सम्बन्ध हमेशा सामान्य और दोस्ताना रहने चाहिए। इसके बावजूद चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करने के बाद से हमेशा अपनी सैनिक ताकत के गुमान में रहता रहा है। उसका यह गुमान 1967 में नाथूला सीमा पर भारतीय सैनिकों ने तोड़ा था और उसे ताकत की भाषा अच्छी तरह समझाई भी थी परन्तु इसके बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता और अपनी विस्तारवादी नीति के तहत भारत की सीमा के इलाकों में अतिक्रमणकारी कार्रवाइयां करता रहता है। यह हकीकत है कि भारत व चीन के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है क्योंकि चीन ने 1914 में खींची गई उस मैकमोहन रेखा को मानने से इन्कार कर दिया था जो भारत-चीन व तिब्बत के बीच खींची गई थी। चीन की उस समय भी आपत्ति थी कि तिब्बत स्वतन्त्र राष्ट्र नहीं है और उसका ही एक अंग है जिसे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। बाद में 1949 में चीन ने स्वतन्त्र होने के बाद तिब्बत को ही हड़प लिया और 2003 में भारत की तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने भी इसे चीन का स्वायत्तशासी भाग स्वीकार कर लिया। इसके बाद से ही चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश के बहुत बड़े हिस्से पर भी अपना दावा ठोकना शुरू कर दिया। विगत 9 दिसम्बर को इसी राज्य के जिस तवांग इलाके में भारत व चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई है और भारतीय सैनिकों ने जिस तरह चीनी सैनिकों को यहां निर्दिष्ट नियन्त्रण रेखा के समीप आने से रोका है वह इसी बात का प्रमाण है कि चीन की नीयत लद्दाख से अरुणाचल तक नियन्त्रण रेखा को बदलने की है। चीन पाक अधिकृत कश्मीर के काराकोरम क्षेत्र में पहले से ही काबिज है। यह इलाका 1963 में उसे पाकिस्तान ने सौगात में दिया था। तवांग इलाका वही है जहां 1962 के भारत-चीन युद्ध में सूबेदार जोगिन्दर सिंह ने चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोकने के प्रयास में वीरगति प्राप्त की थी और अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ चीनी सेना की ब्रिगेड के छक्के छुड़ा दिये थे। उस समय अरुणाचल प्रदेश को नेफा कहा जाता था। तिब्बत हड़पने के बाद चीन ने भारत की तरफ जो कदम इस युद्ध में 'अक्साई चिन' हथियाने के बाद बढ़ाने शुरू किये हैं वे किसी तारतम्य में न होकर यदा-कदा अचानक होते हैं जिससे भारत के सैनिक गफलत में ही पड़े रहे। परन्तु भारत की सेना विश्व की मंजी हुई एेसी पेशेवर सेना है जो दुश्मन को उसके घर में घुस कर मारने की महारथ भी रखती है। एेसा भारतीय सैनिकों ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भी किया था, जब हमारी सेनाएं लाहौर तक पहुंच गई थीं। चीन के ख्वाब हमारी सेना ने जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में तोड़े जब उसके सैनिकों ने हमारे इलाके में घुसने की धृष्टता की थी। बेशक भारत के 20 जवान इस संघर्ष में शहीद हुए थे मगर इन शहीदों ने भी चीन के पचास से अधिक सैनिकों को हलाक करने के बाद ही वीरगति प्राप्त की थी। अरुणाचल का तवांग का इलाका एेसा इलाका है जहां बौद्ध धर्म के मानने वाले बहुसंख्या में रहते हैं मगर ये भारतीय बौद्ध है जबकि चीन इन्हें दक्षिण तिब्बत के इलाके में मानता है। यह सनद रहना चाहिए कि 1949 से पहले भारत व तिब्बत के बीच मैकमोहन रेखा थी और आजादी के बाद से भारत इसे ही नियन्त्रण रेखा या सीमा रेखा मानता था। मगर चीन की हठ है कि वह मैकमोहन रेखा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता जिसकी वजह से 1962 में भारत पर आक्रमण करके उसने सीमा रेखा को बदलने का प्रयास किया और बाद में जो नियन्त्रण रेखा बनी उस पर भी चीन अपनी अवधारणा के अनुसार अतिक्रमण करता रहता है। भारत और चीन के बीच सीमा रेखा निर्धारण के लिए 2005 में ही एक कार्यदल का गठन कर दिया गया था जिसकी एक दर्जन से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं परन्तु अभी तक कुछ भी ठोस परिणाम नहीं निकला है। गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भी दोनों ओर के सैनिक कमांडरों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है परन्तु चीन इसके बावजूद नियन्त्रण रेखा के विभिन्न इलाकों में मुंह मार ही देता है जिसका मुकाबला भारत के वीर जवान पूरी वीरता के साथ करते हैं। एेसा ही विगत 9 दिसम्बर को तवांग में भी हुआ। संपादकीय :इस उम्र मे पति-पत्नी का निराला साथमहंगाई से राहतराजनीति में कोई शार्ट कट नहींमोरक्को ने रचा इतिहासपीटी ऊषा की चुनौतियांगुजरात में 'रिकार्ड' पर 'रिकार्ड'चीन कितनी वादा खिलाफी कर रहा है इसका प्रमाण यही है कि वह नब्बे के दशक में भारत के साथ हुए नियन्त्रण रेखा समझौतों का न केवल उल्लंघन करता रहता है बल्कि सीमा पर तनावपूर्ण माहौल भी बना देता है। चीन एेसा तब करता है जब भारत अपने राष्ट्रीय सामरिक हितों की दृष्टि से कोई निर्णायक कदम उठाता है। पिछले महीने ही भारत ने अमेरिका की फौज के साथ उत्तराखंड के औली में संयुक्त सैनिक युद्ध अभ्यास किया था। इसकी प्रक्रिया में चीन ने तवांग में जानबूझ कर झमेला खड़ा किया लगता है। परन्तु इससे कुछ होने वाला नहीं है क्योंकि प्रत्येक स्वयंभू राष्ट्र को अपनी स्वतन्त्र विदेश व रक्षा नीति बनाने का अधिकार है। अतः रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह का यह कथन चीन को याद रखना चाहिए कि भारत एक शान्तिप्रिय देश है, मगर वह हमले का मुंहतोड़ जवाब भी देना जानता है और वह अपनी एक इंच भूमि भी विदेशी कब्जे में बर्दाश्त नहीं कर सकता।