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- निदंक नियरे राखिए…..
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आज दो बादल छाए हुए लगते हैं। एक तो सरकारों का बनाया हुआ और दूसरा अदालत का! उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की पुलिस ने उन छह पत्रकारों के खिलाफ रपट लिख ली है, जिन पर देशद्रोह, सांप्रदायिकता, आपसी वैमनस्य और अशांति भड़काने के आरोप हैं। इन आरोपों का कारण क्या है ? कारण है, 26 जनवरी के दिन उनकी टिप्पणियाँ, टीवी के पर्दों पर या ट्विटर पर! इन पत्रकारों पर आरोप है कि इन्होंने दिल्ली पुलिस पर दोष मढ़ दिया कि उसने एक किसान की गोली मारकर हत्या कर दी जबकि वह ट्रेक्टर लुढ़कने के कारण मरा था। लेकिन आरोप लगानेवाले यह क्यों भूल गए कि उन्हें जैसे ही मालूम पड़ा कि वह किसान ट्रेक्टर लुढ़कने की वजह से मरा है, पत्रकारों ने अपने बयान को सुधार लिया। इसी प्रकार उन पर यह आरोप लगाना उचित नहीं है कि उन्हीं के उक्त दुष्प्रचार के कारण भड़के हुए किसान लाल किले पर चढ़ गए और उन्होंने अपना झंडा वहाँ फहरा दिया। पत्रकारों की टिप्पणियों के पहले ही किसान लाल किले पर पहुँच चुके थे। ज़रा यह भी सोचिए कि इतना बड़ा दुस्साहसपूर्ण षड़यंत्र क्या इतने आनन-फानन रचा जा सकता है ?