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मेले भारत की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग हैं। ये संस्कृति को संजोये रखते हैं। भारत जैसे उन्नति कर रहे देश में मेलों की अपनी अलग पहचान है। आज देश में जगह-जगह दुकानें, मॉल और छोटे-छोटे बाजार बन गए हैं किंतु मेलों की लोकप्रियता फिर भी कायम है। मेला शब्द सुनते ही मन में अलग सा रोमांच, खुशी की लहर दौड़ जाती है। बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों को अपने स्थानीय मेलों का बेसब्री से इंतजार रहता है। स्थानीय मेले ही उस स्थान की लोकप्रियता को कायम रखते हैं।
मेलों में सभी जनसाधारण बिना किसी हिचकिचाहट के जाते हैं और वहीं किसी मॉल या बड़ी दुकान में जाने से पहले लोग कई बार सोचते हैं। मेले समाज का दर्पण होते हैं, किंतु मेलों के बाद गंदगी व कूड़ा-कर्कट बहुत फैलता है, अत: दुकानदारों का दायित्व बनता है कि सफाई का भी विशेष ध्यान रखें।
-डा. इंदिरा कुमारी, पुराना मटौर, कांगड़ा
By: divyahimachal
Rani Sahu
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