सम्पादकीय

स्कूली शिक्षा में संस्कार

Rani Sahu
25 July 2023 7:01 PM GMT
स्कूली शिक्षा में संस्कार
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भारतीय शिक्षा प्रणाली में छात्रों को संस्कार दिए जाना लगभग नगण्य होता जा रहा है। यह एक चिंता का विषय होना चाहिए। शिक्षा और संस्कार एक-दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा मनुष्य के जीवन का उपहार है जो व्यक्ति के जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल देती है और संस्कार जीवन का सार है जिसके माध्यम से मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है। जब मनुष्य में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास होगा, तभी वह परिवार, समाज और देश के विकास की ओर अग्रसर होगा। शिक्षा का तात्पर्य सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि चारित्रिक ज्ञान भी होता है जो आज की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में हम भूल चुके हैं। हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाकर संतुष्ट हो जाते हैं, परन्तु यह हमारी लापरवाही है जो हमारे बच्चों को गुमराह कर रही है। आज के अधिकांश बच्चे संभ्रांत तो हैं, पर विवेकशील नहीं। भारतीय संस्कृति में संस्कारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। समाज में पुरुष प्रधान व्यवस्था होने के उपरांत भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा एवं बराबर का सम्मान देने की प्रथा है। तथाकथित आधुनिक समाज आधुनिकता का हवाला देकर पुरातन संस्कारों को दकियानूसी बताकर, दुत्कार रहा है और अंग्रेजी सभ्यता को अपना रहा है। हमारी मातृभाषा, मातृभूमि की उपेक्षा होने के कारण संस्कारों के अभाव में आधुनिक समाज का चारित्रिक पतन, अपराधीकरण एव धनलोलुप हो जाना आम है, जो युवाओं को कुप्रवृत्तियों की तरफ धकेल कर नशा आदि का आदी बना देता है। इससे हमारे देश का भविष्य चिंतनीय हो सकता है।
यह अत्यंत चिंता का विषय है कि रोजगार की तलाश में, सुंदर भविष्य का सपना संजोए ग्रामीण भारत, कर्मठ भारत शहरों और विदेशों को पलायन कर रहा है। यहां यह बात ध्यान देने की है कि पुरातन संस्कारों की नींव अत्यंत गहरी है अन्यथा भारतीय समाज अपनी वास्तविक पहचान कब का खो चुका होता। हमारे माता-पिता पुरातन संस्कारों और रीति-रिवाजों का निर्वहन करते हैं। धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर उन पर आस्था प्रकट करते हैं। यह बच्चों के कोमल हृदय पर अचूक छाप छोड़ता है। समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और उसकी नींव हमें हमारे बच्चों की बाल्यावस्था में ही रखनी पड़ती है। बच्चों को तीन गुण आत्मसात करवाने की आवश्यकता है। ज्ञान, कर्म और श्रद्धा। इन्हीं तीन गुणों से उनके जीवन में बदलाव आएगा और वे परिवार, समाज और देश सेवा में आगे बढ़ेंगे। आज जो राष्ट्रव्यापी अनैतिकवाद प्रदूषण हमारे समाज और देश को दूषित कर रहा है उसका कारण सिर्फ बच्चों में संस्कार और शिक्षा का अभाव है जिसका दोषी कौन है? हम झूठे दिखावे के लिए अपने भारतीय अमूल्य संस्कारों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता का आंख मूंद कर अनुसरण करना ही हमें और हमारे बच्चों को पथभ्रष्ट कर रहा है।
इसे रोकना होगा। हम समझें कि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करती है। बच्चों में सांसारिक और आध्यात्मिक शिक्षा दोनों की नितांत आवश्यता है क्योंकि शिक्षा हमें जीविका देती है और संस्कार जीवन को मूल्यवान बनाते हैं। शिक्षा में ही संस्कार का समावेश है। अगर हम अपने बच्चों में भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराएं, भाईचारा, एकता आदि का बीजारोपण करते हैं तो उनमें खुद-ब-खुद संस्कार आ जाते हैं जिसकी जिम्मेदारी माता-पिता, परिवार और शिक्षक की होती है। आज हम अनेक विद्यालयों में देखते हैं कि शिक्षा केवल नाम के लिए रह गई है, शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय में हमें ज्ञान तथा नैतिक मूल्यों को सिखाया जाता था। परन्तु आज यह बहुत बड़ा प्रश्न हमारे सामने उठ खड़ा हुआ है कि आज की शिक्षा प्रणाली के जरिए हम वही ज्ञान और नैतिक मूल्यों को अर्जित कर रहे हैं, शिक्षार्थियों को केवल उत्तीर्ण करने के लिए उन्हें ज्ञान दिया जाता है, या फिर कह सकते हैं कि उन्हें तैयार किया जाता है! शिक्षा में संस्कारों की कमी के चलते आज के युवा पीढ़ी के विद्यार्थी हर वो अनुचित कार्य कर रहे हैं जिसके करने के विचार से ही मन घबरा एवं सहम सा जाता है।
क्या सही मायने में हम उन्हें सही ज्ञान और आदर्श सिखा रहे हैं? आखिरकार यह जिम्मेदारी किसकी है? माता-पिता की, शिक्षक की, विद्यालय की या पूरे समाज की, या सबसे अहम भूमिका सरकार की सतर्कता के साथ सदैव कार्यशील एवं तत्पर रहना ही हमारे अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है। कड़वा सच है कि आज के इस युग में शिक्षक की भी परिभाषा बदल गयी है। इतने सारे अनैतिक कार्य कुछेक शिक्षकों के द्वारा किये जाते हैं जिनकी हम कभी परिकल्पना भी नहीं कर सकते हैं और दोषारोपण केवल आज की शिक्षा प्रणाली एवं समाज और सरकार पर ही किया जाता है। ये कई हद तक सही भी है, परन्तु एक विद्यार्थी के साथ एक शिक्षक को भी अपने आदर्शों का मान रखना चाहिए! शिक्षक नाम के गर्व को बनाये रखना चाहिए। कहते हैं एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है, उसी प्रकार किसी एक या दो शिक्षकों के गलत कार्यों के द्वारा कहीं न कहीं पूरे शिक्षक समाज पर इसके छींटे पड़ते हैं और इन छींटों को हमारे शिक्षक समाज को मिलकर ही दूर करना होगा। हमें अपने नाम के आगे गौरव की वो शिखा स्थापित करनी होगी जिसे पार करना या वहां तक पहुंचना किसी भी चरित्रहीन व्यक्ति के बस की बात न हो! भ्रष्टाचार, आतंक, असमानता, जातिवाद, सभी का आधार कहीं न कहीं शिक्षा ही बनती जा रही है! शिक्षा के बल पर दुनिया जीती जा सकती है, परन्तु आज की शिक्षा व्यवस्था और उससे जुड़े लोग यह कथन असत्य कर रहे हैं! आजकल घूस, दलाली, चोरी, एक खुला व्यापार सब शिक्षा जगत में आसानी से प्रवेश कर चुका है। और हो न हो ये कहीं न कहीं नैतिक मूल्यों की कमी और उसके हनन का ही एक ज्वलंत परिणाम हमारे सामने उभर कर आया है।
क्या हमने सोचा है कि ज्ञान के नाम पर हम आज क्या परोस रहे हैं, जिससे आने वाले भविष्य में क्या परिणाम होगा, इसका शायद किसी को अंदाजा भी नहीं है या फिर अंदाजा कभी लगाया ही न गया हो। जरा भी विचार हुआ होता तो शायद कुछ सुधार हो गए होते। इन सबके बीच नैतिक मूल्य तो कहीं भी दिखाई ही नहीं पड़ते हैं। संस्कार का मतलब अशिक्षित बनना नहीं है। संस्कार का मतलब है सही शिक्षा पाना। शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान नहीं है। किताबी ज्ञान तो कोई भी पा सकता है, लेकिन संस्कार युक्त शिक्षा ऐसी शिक्षा है जो ज्ञान के साथ-साथ जीवन को भी पवित्र बनाए। आजकल लोग कैरेक्टर की उपेक्षा करते हैं, केवल कैरियर बनाने की बात सोचते हैं। हमारी संस्कृति केवल कैरियर की बात नहीं करती, हमारी संस्कृति कैरियर से ज्यादा चरित्र की बात करती है। दुनिया के क्षेत्र में आगे बढऩे वाले लोग अगर अपने चरित्र के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं, तो ये उनके जीवन की बहुत बड़ी हानि है, ऐसी हानि से बचना चाहिए। अंत में कहना होगा कि हमारी स्कूली शिक्षा में सांस्कृतिक शिक्षा का संतुलित समावेश किया जाना चाहिए। इसके लिए पाठ्यक्रम संशोधित किए जाने चाहिए। हमारी चुनी हुई सरकारें इस मामले में शीघ्र पहल करें तो बेहतर होगा।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
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