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सम्पादकीय
CUET 2022 : क्या कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट से प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग सेंटरों का धंधा और चोखा होगा?
Gulabi Jagat
23 March 2022 8:05 AM GMT
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अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम्स में दाखिले को लेकर बीते तीन महीनों से देशभर के छात्र-छात्राओं में जो उहापोह की स्थिति बनी हुई थी
प्रवीण कुमार।
अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम्स में दाखिले को लेकर बीते तीन महीनों से देशभर के छात्र-छात्राओं में जो उहापोह की स्थिति बनी हुई थी उस पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने विराम लगा दिया है. शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए दाखिले को लेकर आयोग ने जो ताजा सार्वजनिक सूचना जारी की है उसमें कहा गया है कि स्नातक कार्यक्रमों (अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम्स) के लिए कॉमन युनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET 2022) की आवेदन प्रक्रिया अप्रैल 2022 के पहले सप्ताह से शुरू हो जाएगी. परीक्षा हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू समेत 13 भाषाओं में आयोजित की जाएगी. परीक्षा का संचालन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) के हाथों में होगा.
देशभर के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कॉलेजों में दाखिले के लिए इस एंट्रेंस टेस्ट को क्वालीफाई करना अनिवार्य होगा. इसके साथ ही 12वीं के अंकों के आधार पर दाखिले के लिए जो कटऑफ लिस्ट बनती थी वह अब बीते दिनों की बात हो जाएगी. एंट्रेंस टेस्ट के अंकों से मेरिट लिस्ट बनेगी जिसके आधार पर प्रतिभागियों को कॉलेज आवंटित किए जाएंगे. अब यहां से एक साथ कई सवाल भी खड़े होते हैं मसलन, सीयूईटी की जरूरत क्यों पड़ी? सीयूसीईटी से कितना अलग है सीयूईटी? सीयूईटी के बहुत सारे फायदे गिनाए जा रहे हैं तो इससे होने वाले नुकसान की बात भी करनी होगी. क्या इसे "वन नेशन वन एंट्रेस टेस्ट" की कसौटी पर आंका जा सकता है? क्या सरकार नई शिक्षा नीति के तहत सीयूईटी मॉडल से सबको समान शिक्षा का लक्ष्य हासिल कर पाएगी?
कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की जरूरत क्यों पड़ी?
बीते कई वर्षों से कई सरकारों ने उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वाले अभ्यर्थियों के तनाव व दबाव को कम करने के लिए अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं को एक साथ कराने का प्रयास किया है. आज जिस सीयूईटी की बात की जा रही है वह कोई नई चीज नहीं है. इसे यूपीए-2 की सरकार ने 2010 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूसीईटी) के तौर पर लॉन्च किया था जिसे सिर्फ 14 केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने ही अपनाया था. सीयूईटी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की घोषणा के बाद आया है, जो विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए 'वन नेशन वन एंट्रेंस टेस्ट' यानि 'एक राष्ट्र एक प्रवेश परीक्षा' पर जोर देता है. लिहाजा अब सीयूईटी के प्लेटफॉर्म पर सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए इसे अपनाना अनिवार्य कर दिया गया है. इसके अलावा एंट्रेस से संबंधिक कुछ और भी नीतिगत फैसले सीयूईटी के तहत यूजीसी ने लिए हैं जो सीयूसीईटी में नहीं था और बहुत से अभ्यर्थियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता था.
सीयूसीईटी से कितना अलग है सीयूईटी?
सीयूईटी दरअसल सीयूसीईटी का ही एक नया संस्करण है. सीयूसीईटी में सिर्फ 14 केंद्रीय विश्वविद्यालय शामिल थे लेकिन सीयूईटी में सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए एनटीए परीक्षा लेगा. सीयूसीईटी का टेस्ट काफी कठिन था. इसमें पूछे जाने वाले सवाल केवल अंग्रेजी में ही होते थे. हिन्दी भाषी राज्यों की ओर से जब इस पर आपत्ति जताई गई तो जब यूजीसी की ओर से सीयूईटी का प्रारूप तय किया जा रहा था तो इसमें बदलाव का प्रस्ताव रखा गया. अब केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए होने वाली सीयूईटी की परीक्षा हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू समेत कुल 13 भाषाओं में आयोजित की जाएगी.
कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के क्या हैं फायदे?
सीयूईटी का सबसे बड़ा फायदा यह होने जा रहा है कि तकनीकी कोर्स को छोड़ तमाम अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला लेने के लिए देशभर में एक ही प्रवेश परीक्षा होगी और परीक्षा में सफल होने वाले छात्रों को रैंकिंग के आधार पर सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कॉलेजों का आवंटन किया जाएगा. पहले के सीयूसीईटी में सिर्फ 14 केंद्रीय विश्वविद्यालय ही शामिल थे. दूसरा बड़ा फायदा उन अभ्यर्थियों को मिलने जा रहा है जो अपनी मातृभाषा में प्रवेश परीक्षा में भाग लेना चाहते थे. बिहार, उत्तर प्रदेश आदि के हिन्दी भाषी प्रतिभागियों को भी अब केंद्रीय विश्वविद्यालयों की अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिले की प्रवेश परीक्षा में बैठने और पास करने का बेहतर मौका होगा. कुल 13 भाषाओं में परीक्षा आयोजित किए जाने की मंजूरी मिल चुकी है. इसमें हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू के साथ-साथ मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, असमिया, बंगाली, पंजाबी और उड़िया को भी शामिल किया गया है. पहले सिर्फ अंग्रेजी माध्यम में ही परीक्षा देनी होती थी.
तीसरी बड़ी बात यह कि विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए पहले प्रतिभागियों पर ज्यादा पर्सेंट लाने का एक दबाव और तनाव रहता था लेकिन अब नए सिस्टम में 12वीं के अंकों की पात्रता मानदंडों के अलावा छात्रों के दाखिले पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हालांकि विश्वविद्यालयों को बोर्ड एग्जाम के अंकों पर न्यूनतम पात्रता निर्धारित करने की अनुमति होगी. इसके अलावा, जो स्टेट यूनिवर्सिटी या प्राइवेट यूनिवर्सिटी सीयूईटी को अपनाना चाहते हैं, वे इस एंट्रेंस टेस्ट के स्कोर के साथ-साथ 12वीं के अंकों को भी आधार बना सकते हैं. चौथी अहम बात ये है कि इस टेस्ट से आरक्षण की नीतियां प्रभावित नहीं होगी.
यूनिवर्सिटी कैंडिडेट्स को सामान्य सीटों के साथ ही आरक्षित सीटों पर भी सीयूईटी स्कोर द्वारा एनरोल कर सकेगी. जहां तक 12वीं के अंकों को वेटेज नहीं देने की बात है तो सरकार का मानना है कि कुछ बोर्ड मार्किंग में दूसरे बोर्डों की तुलना में अधिक उदार होते हैं और इससे उनके छात्रों को दूसरों पर अनुचित लाभ मिलता है, लिहाजा उन अंकों की प्रासंगिकता ही खत्म कर दी गई.
'वन नेशन वन एंट्रेस टेस्ट' का दावा ठीक नहीं
यूजीसी चेयरमैन का दावा है कि 'वन नेशन वन एंट्रेस टेस्ट' देश भर के स्टूडेंट्स को राहत देने वाली खबर है. इससे स्टूडेंट्स को एंट्रेंस टेस्ट के तौर पर अलग-अलग एंट्रेंस एग्जाम नहीं देना पड़ेगा. लेकिन इस बात को समझना होगा कि बीबीए, बीसीए, एलएलबी, बीई, एमबीबीएस आदि भी अंडर ग्रेजुएट डिग्री कोर्स की श्रेणी में ही आते हैं लेकिन इसमें दाखिला लेने के लिए प्रतिभागियों को अलग-अलग एग्जाम पास करने होते हैं. सिर्फ एलएलबी की बात करें तो इसके लिए देशभर में अलग-अलग टेस्ट देने होते हैं मसलन, कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट, ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट, बीएचयू लॉ एंट्रेंस टेस्ट, महाराष्ट्र लॉ एंट्रेंस टेस्ट, लॉ स्कूल एडमिशन टेस्ट. इसी तरह से बीई और एमबीबीएस के लिए क्रमश: जेईई तथा एनईईटी व एम्स एमबीबीएस टेस्ट क्वालीफाई करना पड़ता है. कहने का मतलब यह कि जो लोग सीयूईटी को 'वन नेशन वन एंट्रेस टेस्ट' के रूप में देखते हैं या दावा करते हैं वह अभी जुमले के तौर पर ही है. हो सकता है आने वाले वक्त में ऐसा हो जाए इससे इनकार नहीं है लेकिन फिलहाल ऐसा बिलकुल नहीं है.
सीयूईटी के कई फायदे तो नुकसान भी कम नहीं
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. सीयूईटी के बहुत सारे फायदे गिनाए जा रहे हैं. बेशक नुकसान कम हैं लेकिन हैं बेहद गंभीर. कई शिक्षकों व शिक्षाविदों का मानना है कि समान सुविधाओं और साधन के अभाव में पिछड़े व कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इसके लिए उन पर एक और परीक्षा की तैयारी का दबाव पड़ेगा. मुनाफाखोर और शिक्षा का व्यापार करने वाले कोचिंग सेंटरों में तेजी से बढ़ोतरी होगी. एजुकेशन माफिया का दायरा और बड़ा हो जाएगा. जो छात्र इन महंगे कोचिंग सेंटरों की फीस जुटाने में समर्थ होंगे वे ही सीयूईटी को क्वालीफाई कर पाएंगे.
दूसरा- ये एंट्रेंस टेस्ट 12वीं कक्षा में एनसीईआरटी के मॉडल सिलेबस पर आधारित होगी. ऐसे में सीबीएसई से इतर दूसरे किसी भी बोर्ड से पास करने वाले अभ्यर्थियों के लिए इस परीक्षा को क्वालीफाई करना मुश्किल होगा. इस दिशा में सरकार ने कोई पहल नहीं की. होना तो ये चाहिए था कि दो साल पहले सभी बोर्ड को सीबीएसई के तहत एनरोल किया जाता. उसके बाद ही इस तरह के एंट्रेंस को अनिवार्य किया जाता. तीसरा नुकसान इस रूप में दिख रहा है कि सीयूईटी देश के सिर्फ 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर ही अनिवार्य तौर पर लागू होगा. देशभर के अन्य विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों को इससे छूट है कि वो इसे अपनाएं या नहीं. यहीं आकर ये समझ में आता है कि सभी के लिए समान शिक्षा का दावा फलीभूत होने के सफर का डगर बहुत कठिन है.
कुल मिलाकर देखा जाए तो बात वही ढाक के तीन पात वाली होती दिख रही है कि जिसके जेब में पैसे होंगे और उसके समझ की बेहतर पहुंच होगी वही ऐसी शिक्षा को हासिल कर पाएगा. भारत अभी भी गांवों में बसता है और उस सुदूर गांवों की प्रतिभाओं को निकालकर उसके शिक्षा के अधिकार की किस तरह से रक्षा की जाएगी, सबको समान शिक्षा का लक्ष्य किस तरह से हासिल होगा, सीयूईटी हो या नई शिक्षा नीति का कोई और मॉडल बताने में फिलहाल असमर्थ है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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