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सोर्स- Jagran
प्रणय कुमार]। नई शिक्षा नीति लागू करने की घोषणा केंद्र सरकार ने अपनी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में की थी। भिन्न-भिन्न अवसरों पर वह इसका प्रचार-प्रसार भी करती रही। शिक्षा जगत में भी इसे लेकर आशा एवं उत्सुकता का मिश्रित वातावरण रहा, पर सरकारी तंत्र की अनुत्तरदायी कार्यशैली के कारण उसके सुनियोजित-समयबद्ध क्रियान्वयन को लेकर आशंकाओं के बादल गहराने लगे हैं। सीबीएसई, एनसीईआरटी, यूजीसी के कामकाज के तौर-तरीकों पर तो पहले से ही सवाल खड़े किए जाते रहे हैं, अब राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) भी सवालों के घेरे में है। शिक्षा एवं परीक्षाओं के आयोजन से जुड़ी इन संस्थाओं में व्यापक फेरबदल एवं प्रभावी-पारदर्शी-परिणामदायी कार्ययोजना समय की मांग है।
सत्र 2021-22 की परीक्षाओं में सीबीएसई ने ऐसे-ऐसे प्रयोग किए कि दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम में संयुक्त रूप से लगभग 11 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। प्रश्नों की रचना, परीक्षा पद्धति में बदलाव, परीक्षा के दौरान होने वाले कदाचार, मूल्यांकन में लापरवाही, ज्ञान एवं कौशल की तुलना में अधिक से अधिक अंक देने की बढ़ती प्रवृत्ति आदि को लेकर गत वर्ष भी सीबीएसई की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न खड़े किए गए और कुछेक मुद्दों पर उसे सार्वजनिक स्पष्टीकरण भी देना पड़ा।
स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जा रही 'कामन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट' (सीयूईटी) तो अभी तक जारी है, जबकि पूर्व घोषणा के अनुसार इसे 15 जुलाई से प्रारंभ होकर 20 अगस्त तक संपन्न हो जाना चाहिए था। यूजीसी द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार अब छठे चरण की परीक्षा 30 अगस्त तक खिंच गई है। दूसरे चरण यानी चार से छह अगस्त के मध्य जिन अभ्यर्थियों की परीक्षाएं स्थगित की गईं, उन्हें भी छठे चरण में ही परीक्षा में बैठने का विकल्प दिया गया है।
बार-बार के स्थगन एवं परीक्षा-प्रक्रिया के बहुत लंबा खिंचने के कारण अब वर्तमान अकादमिक सत्र के नियमित रहने की संभावना क्षीण है। अब सितंबर के अंत तक ही विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों एवं संबंधित कालेजों में प्रवेश की प्रक्रिया संपन्न हो पाएगी। अक्टूबर से पूर्व नियमित कक्षाएं प्रारंभ होने के कोई आसार नहीं दिख रहे।
सीयूईटी के दौरान सामने आए कुप्रबंधन ने एनटीए की साख को बट्टा लगाया है। लगता है कि एनटीए ने परीक्षा व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए न तो पर्याप्त तैयारी की, न ही कोई ठोस एवं विस्तृत कार्ययोजना ही बनाई। यकीन नहीं होता कि एक राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी से भी ऐसी त्रुटियां हो सकती हैं। सीयूईटी की परीक्षा दे रहे बहुत से अभ्यर्थियों के प्रवेशपत्र अंतिम समय तक अपलोड नहीं किए गए, बहुतों के परीक्षा केंद्र अंतिम समय में बदल दिए गए और उन्हें चंद घंटे पूर्व तक उसकी कोई सूचना नहीं दी गई।
अनेक अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर जाकर जानकारी मिली कि उनका केंद्र बदल दिया गया है। ऐसी संस्थाओं को भी परीक्षा केंद्र बनाया गया, जो कुछ वर्षों पूर्व बंद हो चुकी थीं। कुछ संस्था-संचालक तो यह कहते पाए गए कि उनके संस्थान को परीक्षा-केंद्र बनाए जाने की पूर्व सूचना उन्हें नहीं थी या एक-दो दिनों पूर्व ही उन्हें बताया गया।
चार से छह अगस्त को जिन केंद्रों पर परीक्षा स्थगित की गई, उनमें से अधिकांश अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर पहुंचने के बाद यह जानकारी मिल पाई कि उनकी परीक्षा स्थगित कर दी गई है। कल्पना कीजिए कि ऐसी स्थिति में 150-200 किलोमीटर की दूरी से परीक्षा देने गई लड़कियों या दिव्यांग अभ्यर्थियों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा? राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं में न्यूनतम दायित्वबोध का ऐसा अभाव कचोटता है और तंत्र में ऊपर से नीचे तक व्याप्त छिद्रों एवं कमियों को उजागर करता है।
सवाल है कि एक साथ अनेक राज्यों और कई-कई शहरों में परीक्षा स्थगित करने से पूर्व क्या परीक्षार्थियों को सूचित नहीं किया जाना चाहिए था? क्या स्थगन के तुरंत बाद या अगले दो-चार दिनों में परीक्षा की अगली तिथि नहीं बताई जानी चाहिए थी? क्या हजारों अभ्यर्थियों को कई-कई दिनों तक भ्रम और असमंजस में रखना उचित था? क्या कोई व्यवस्था या एजेंसी अपने ही नौनिहालों के प्रति इतना ढुलमुल रवैया अपना सकती है?
सीयूईटी के दौरान तमाम परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों को तकनीकी व्यवधानों का सामना करना पड़ा। कुछ विषयों के प्रश्नपत्र परीक्षा शुरू होने के बाद तक अपलोड नहीं किए गए। प्रश्नपत्र के प्रारूप और परीक्षा की पद्धति को लेकर भी अंत-अंत तक भ्रम और संशय का वातावरण बना रहा। आखिर पूर्व तैयारी, संपूर्ण स्पष्टता एवं पर्याप्त जागरूकता के अभाव में कोई भी नीति या योजना धरातल पर कैसे साकार हो सकती है?
तंत्र और कुछ अर्थों में सरकार भी नीतियों एवं निर्णयों के ठोस तथा जमीनी क्रियान्वयन, सुचारु संचालन एवं सूक्ष्म निरीक्षण के मोर्चे पर सतर्क और सजग दृष्टि बनाए रखने में लगातार कमजोर पड़ती रही है। शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं की दिशा-दशा एवं अवस्था भी चिंताजनक है। सीयूईटी इसका ताजा और जीवंत उदाहरण है।
नई शिक्षा नीति लागू किए जाने के पश्चात ज्ञान के क्षेत्र में भारत के एक बार पुनः विश्वगुरु बनकर उभरने का स्वर समय-समय पर सुनाई देता रहा है, परंतु पुनः विश्वगुरु बनना तो दूर, आज उससे बड़ा एवं ज्वलंत प्रश्न यह है कि क्या ऐसी तैयारियों के बल पर शेष दुनिया के साथ हम कदम मिलाकर चल भी सकेंगे? यह वह प्रश्न है, जिस पर न केवल गंभीरता से विचार होना चाहिए, बल्कि भविष्य के लिए सीख भी लेनी चाहिए।
Rani Sahu
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