सम्पादकीय

CUET 2022 : सभी बोर्डों के छात्रों को समान अवसर प्रदान करेगी संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा

Rani Sahu
4 April 2022 3:02 PM GMT
CUET 2022 : सभी बोर्डों के छात्रों को समान अवसर प्रदान करेगी संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा
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स्नातक कार्यक्रम में दाखिले के लिए होने जा रही संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा यानी सीयूईटी का सबसे बड़ा लाभ यह होगा

कृपाशंकर चौबे।

स्नातक कार्यक्रम में दाखिले के लिए होने जा रही संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा यानी सीयूईटी का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि सबको एक समान पढऩे और आगे बढऩे का अवसर मिलेगा। यह संयुक्त प्रवेश परीक्षा अभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए हो रही है, किंतु राज्यों के विश्वविद्यालय, डीम्ड एवं निजी विश्वविद्यालय भी इसे अपना सकते हैं और कई तो इसी सत्र से अपना भी रहे हैं। स्नातक में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थी को अब संयुक्त प्रवेश परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर ही प्रवेश मिलेगा, न कि 12वीं के अंकों के आधार पर। पहले 12वीं के अंकों के आधार पर नामी विश्वविद्यालयों में स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश मिलता था। कई विश्वविद्यालयों में तो सौ प्रतिशत अंक पाने वाले ही प्रवेश के लिए आवेदन कर पाते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के दस स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए इस वर्ष सौ प्रतिशत कट आफ रखा गया। बंबई विश्वविद्यालय में भी सौ प्रतिशत कट आफ रखा गया। ऐसी परिस्थिति में 12वीं में 99 प्रतिशत अंक पाने वाले भी इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश नहीं ले पाते थे।

संयुक्त प्रवेश परीक्षा सबको कहीं भी प्रवेश लेने का अवसर उपलब्ध कराएगी। इससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। केंद्रीय बोर्डों में अच्छे अंक मिलने और राज्यों के बोर्डों में अपेक्षाकृत कम अंक मिलने के कारण राज्यों के विद्यार्थी पिछड़ जाते थे। स्नातक कार्यक्रम के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम पर आधारित होगी। इसकी आवेदन प्रक्रिया दो अप्रैल से शुरू हो गई है। परीक्षा जुलाई के प्रथम सप्ताह में आयोजित की जाएगी। इस वर्ष तो संयुक्त प्रवेश परीक्षा एक बार हो रही है, लेकिन अगले अकादमिक सत्र से वर्ष में दो बार प्रवेश परीक्षा आयोजित होगी।
प्रवेश परीक्षा का पहला भाग सामान्य परीक्षा का होगा, जबकि दूसरा भाग संबंधित विषय के ज्ञान का परीक्षण करेगा। परीक्षा का पहला भाग 13 भाषाओं में होगा और प्रवेशार्थी किसी भी एक भाषा का चयन कर सकेगा। भाषा के कारण जो विद्यार्थी पहले ऐसी परीक्षाओं में पिछड़ जाते थे, उन्हें अब अपनी मातृभाषा में प्रवेश परीक्षा देने का अवसर मिलेगा। गांधीजी ने मातृभाषा में शिक्षा का जो सपना देखा था, उसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने पूरा किया है। इस नीति में सबसे अधिक महत्व मातृभाषा में शिक्षा को दिया गया है। संविधान की आठवीं अनुसूची में अभिलिखित 22 भाषाओं के अतिरिक्त अनेकानेक अन्य भाषाएं भी हैं, जो संबंधित भाषाई समुदाय की दैनंदिन आवश्यकताओं को स्थानिक स्तर पर पूरा करती हैं, किंतु शिक्षा और रोजगार की भाषा के तौर पर ये भाषाएं विकसित और स्वीकृत नहीं हो पाई हैं।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में देश की अनेक मातृभाषाओं में विद्यालयी शिक्षा और उच्च शिक्षा का जो विकल्प दिया है, उसे पूरा करने की दिशा में 13 भाषाओं में संयुक्त प्रवेश परीक्षा का अवसर बड़ा कदम है। इन भाषाओं में अंग्रेजी, हिंदी, असमी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उडिय़ा, पंजाबी, तमिल, तेलुगु और उर्दू शामिल हैं। संयुक्त प्रवेश परीक्षा का दूसरा भाग ऐच्छिक होगा और छात्र पहले भाग की भाषाओं के अलावा किसी अन्य भाषा का विकल्प चुन सकेंगे। इन भाषाओं में फ्रेंच, अरबी, जर्मन शामिल हैं। स्नातक की ही भांति स्नातकोत्तर कार्यक्रम में प्रवेश के लिए भी संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी।
भारत की शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी खामी यह रही कि देश में न एक समान पाठ्यक्रम लागू थे और न सबको समान शिक्षा के अवसर हासिल थे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इस दिशा में ठोस पहल की है। संयुक्त प्रवेश परीक्षा उसी का एक अंग है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू तो हो गई है, किंतु उसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वह देशभर में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने और सबको एक समान शिक्षा का अवसर देने में कितना सफल होती है? जब सभी विद्यार्थी एक ही पाठ्यक्रम पढ़ेंगे तभी वे एक ही धरातल पर आगे बढ़ सकेंगे। केंद्र सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि सरकारी विद्यालयों में पढऩे वाले सुदूर गांवों के विद्यार्थियों को सीखने के वे अवसर नहीं उपलब्ध हैं, जो मिशनरी, कान्वेंट, पब्लिक, आवासीय अथवा ऐसे ही अन्य स्कूलों के विद्यार्थियों को उपलब्ध हैं। सभी विद्यार्थियों को एकसमान अवसर देकर और एकसमान पाठ्यक्रम बनाकर इस खाई को पाटा जा सकता है। लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) लागू कर दिया है। एक अकादमिक वर्ष में दो सेमेस्टर होते हैं और एक क्रेडिट के लिए प्रति सेमेस्टर 30 घंटे निर्धारित हैं। अनिवार्य और ऐच्छिक पाठ्यक्रमों में प्रत्येक पाठ्यचर्या दो अथवा चार क्रेडिट की होती है। अनिवार्य एवं ऐच्छिक में दो और चार क्रेडिट दोनों प्रकार की पाठ्यचर्या होती है। अनिवार्य और ऐच्छिक पाठ्यचर्याओं के बीच 70:30 का अनुपात रहता है। विभिन्न पाठ्यचर्याओं के मूल्यांकन के लिए सेमेस्टर की लिखित परीक्षा और आंतरिक परीक्षा के बीच 75:25 का अनुपात होता है। सीबीसीएस प्रणाली छात्रों को अधिक से अधिक अपनी रुचि के विषयों में अध्ययन करने की भी स्वतंत्रता देती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पांच वर्षीय स्नातक कार्यक्रम में भी किसी वर्ष कार्यक्रम छोडऩे की स्वतंत्रता भी दी गई है। चार वर्षीय स्नातक करने वाले पीएचडी में प्रवेश के लिए पात्र होंगे। यह स्नातक कार्यक्रम पूरे देश में लागू हो जाएगा तो एकरूपता आएगी। एक समान शिक्षा व्यवस्था समय की मांग है। संयुक्त प्रवेश परीक्षा उसी दिशा में बढ़ा एक कदम है।
Rani Sahu

Rani Sahu

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