सम्पादकीय

क्रिप्टो संपत्ति नहीं है, यह सट्टेबाजी की तरह अवैध है, फिर टैक्स लगाकर इसे वैधता क्यों दी जा रही है?

Gulabi
17 Feb 2022 8:40 AM GMT
क्रिप्टो संपत्ति नहीं है, यह सट्टेबाजी की तरह अवैध है, फिर टैक्स लगाकर इसे वैधता क्यों दी जा रही है?
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क्रिप्टो संपत्ति नहीं है, यह सट्टेबाजी की तरह अवैध है

विराग गुप्ता का कॉलम:

सरकार व संसद के सामने क्रिप्टो का संकट बड़ा बन गया है। आम बजट में आभासी संपत्ति यानी क्रिप्टो और एनएफटी पर 30 फीसदी टैक्स लगाने के साथ सरकारी आभासी मुद्रा जारी करने की बात की गई है। बजट के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर ने क्रिप्टो को संपत्ति मानने से इंकार कर दिया तो फिर टैक्स लगाकर उसको वैधता देने की क्या तुक है?
बजट के बाद सीबीडीटी के मुखिया ने एक इंटरव्यू में कहा कि इनकम टैक्स विभाग पिछले 5 सालों से क्रिप्टो के कारोबार पर नजर रखे है। अगर सरकार को इसकी 5 सालों से जानकारी थी तो खरबों डॉलर के कारोबार पर टैक्स लगाने का सिस्टम क्यों नहीं बनाया गया? अब 30 फीसदी के टैक्स और एक फीसदी टीडीएस के कानून से क्रिप्टो के पुराने व्यापार को भी वैधता मिलने से कारोबारियों की मनमांगी मुराद पूरी हो गई।
इस मसले पर दो बड़े सवाल हैं? क्रिप्टो संपत्ति नहीं है, इसकी कोई वैल्यू नहीं है, यह पोंजी स्कीम व सट्टेबाजी की तरह अवैध है तो टैक्स लगाकर इसे वैधता क्यों दी जा रही है? दूसरा यदि सरकार ने इसे संपत्ति का दर्जा दे दिया है तो 50 फीसदी से ज्यादा संपत्ति कर लगाकर सरकारी खजाने की आमदनी क्यों नहीं बढ़ाई जाती? आम लोगों को आयकर के साथ वित्तीय लेनदेन और संपत्ति के हस्तांतरण पर जीएसटी देना पड़ता है।
भारत में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग 458 क्रिप्टो एक्सचेंज के माध्यम से 17436 क्रिप्टो करेंसीज में खरबों डॉलर का सालाना कारोबार करते हैं। लेकिन उनसे जीएसटी वसूली का सिस्टम नहीं बना। क्रिप्टो के कई एक्सचेंजों के खिलाफ हवाला और मनी लांड्रिंग की प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है। लेकिन सरकार के पास ना तो कोई आंकड़ा है और ना ही कोई रेगुलेटरी हस्तक्षेप।
27 जुलाई 2021 को राज्यसभा में सुशील कुमार मोदी के सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार के पास क्रिप्टो एक्सचेंज की अवैध गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के नए नियम के अनुसार शादी और धार्मिक शोभायात्रा में शामिल होने के लिए घोड़ागाड़ियों को लाइसेंस लेने के साथ तीसरे पक्ष का बीमा कराना भी जरूरी है।
लोगों की हिफाजत के लिए केंद्र सरकार ने वाहन कंपनियों को कार की सभी सीटों पर 3 पॉइंट सीट बेल्ट लगाने का आदेश दिया है। लेकिन खरबों डॉलर के क्रिप्टो कारोबार से अर्थव्यवस्था और निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए रजिस्ट्रेशन और नियमन की ठोस व्यवस्था नहीं बनाई गई है। उसके बजाय क्रिप्टो के धुरंधर कारोबारियों ने सेल्फ रेगुलेशन बनाकर देश के संविधान और गणतंत्र को ठेंगा दिखाने का काम किया है।
क्रिप्टो के खिलाफ कानून नहीं बनाने के पीछे दो बड़ी दलीलें दी जा रही हैं। पहला ब्लाॅकचेन टेक्नोलॉजी देश के लिए उपयोगी है। शिक्षा के साथ ई-गवर्नेंस, जीएसटी और मेडिकल क्षेत्रों में ब्लॉकचेन के इस्तेमाल के लिए नीति आयोग और आईटी मंत्रालय काम कर रहे हैं। लेकिन क्रिप्टो के नियमन या बैन करने से ब्लॉकचेन टेक्नॉलॉजी पर प्रतिबंध तो नहीं लग जाएगा।
कुछ लोग इंटरनेट की तर्ज पर क्रिप्टो की तरफदारी करते हैं लेकिन क्रिप्टो का कारोबार इंटरनेट की तरह पारदर्शी और जवाबदेह नहीं है। क्रिप्टो का नियमन नहीं करने के पक्ष में दूसरा तर्क है कि यह इंटरनेट आधारित मुद्रा या संपत्ति है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को नियमन की पहल करना चाहिए। यह तर्क निराधार और गलत है। यूरोप और अमेरिका में नग्नता, वेश्यावृत्ति, सट्टेबाजी और शराब के विज्ञापन आदि कानूनी तौर पर वैध हैं।
इसके बावजूद भारत में उनके खिलाफ अनेक प्रतिबंध हैं। भारत एक सार्वभौमिक देश और संवैधानिक गणतंत्र है, जहां पर आयात, निर्यात और मुद्रा के लिए अनेक नियम-कानून बने हैं। देशवासियों और अर्थव्यवस्था के हित में क्रिप्टो के खिलाफ भारत को उचित नियमन और प्रतिबंध लगाने का पूरा हक है। उसके बावजूद डार्क नेट और ऑनलाइन से क्रिप्टो का व्यापार यदि हो तो उसके खिलाफ रिजर्व बैंक, आईटी मंत्रालय और प्रवर्तन निदेशालय को सख्त कदम उठाना होगा।
बजट में सरकार ने सरकारी डिजिटल मुद्रा जारी करने का ऐलान किया है। इसे जारी करने से पहले अनेक कानूनों में बदलाव भी करना होगा, जिसके बारे में रिजर्व बैंक या सरकार के पास कोई स्पष्टता या रोडमैप नहीं है। तकनीकी दृष्टि से देखें तो क्रिप्टो का विकेंद्रीकृत होना जरूरी है, इसलिए सरकार-नियंत्रित मुद्रा को क्रिप्टो नहीं कहा जा सकता। सरकारी आभासी मुद्रा लाने के पीछे अगर डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने का मकसद है तो उसके लिए यूपीआई, पेटीएम, गूगल-पे और फोन-पे खूब तरक्की कर रहे हैं।
वैसे भी सरकारी कर्मचारियों को अभी तक एनआईसी का सरकारी ईमेल नहीं मिला तो सरकार या रिजर्व बैंक डिजिटल करेंसी को कैसे मैनेज करेगी? सुप्रीम कोर्ट के जज खानविलकर ने पीएमएलए के हालिया मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पैसा बिजली से तेज दौड़ता है, इसलिए धन शोधन के मामलों की तेज जांच होनी चाहिए। प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, वित्त सचिव और आरएसएस प्रमुख आदि अलग-अलग प्लेटफार्म से क्रिप्टो को अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक बता चुके हैं।
बजट के बाद आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने तो पोंजी से खतरनाक बताते हुए क्रिप्टो पर प्रतिबंध लगाने की बात कही। तत्कालीन वित्त सचिव गर्ग ने 2019 में क्रिप्टो को बैन करने के लिए कानून का मसौदा भी बनाया था। फिर देश की अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले क्रिप्टो को बैन नहीं करने के पीछे बहुमत की सरकार की क्या लाचारी हो सकती है?
बढ़ रही है मंदी और असमानता
टाइम मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के पिछले दो सालों के आर्थिक संकट के दौर में अमीरों की संपत्ति में 50 गुना और आमदनी में 10 गुना इजाफा हुआ है। कानून और टैक्स के मोर्चे पर सरकार की विफलता का फायदा उठाकर रईस व भ्रष्ट लोगों ने स्विस खातों की तर्ज पर क्रिप्टो से अकूत लाभ और संपत्ति बनाने का जो खेल शुरू किया है, उससे मंदी व असमानता दोनों बढ़ रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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