सम्पादकीय

ढहती इमारतों का शिमला

Gulabi
2 Oct 2021 5:55 AM GMT
ढहती इमारतों का शिमला
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शिमला में एक इमारत का ढहना अपने मलबे में विकास को समेट लेता है

Divyahimachal .

शिमला में एक इमारत का ढहना अपने मलबे में विकास को समेट लेता है या इस त्रासदी के भीतर सारे नियम और कानून भी ध्वस्त होते हैं। यह केवल एक घटना नहीें, पूरे घटनाक्रम का निष्कर्ष है कि शिमला अपनी बेजुबान प्रकृति का चीरहरण कर चुका है। वहां सात मंजिला भवन जिस जमीन या जिस नींव पर खड़ा था, वह इस बोझ के काबिल नहीं थी तो सवाल यह कि पूरी राजधानी का वजन कितना सुरक्षित है। क्या हम ऊंची इमारतों को केवल रात्रिकाल में जुगनुओं की तरह चमकता देखकर यह भूल जाएं कि यह शहर अपने ही विकास के उत्पीड़न झेल रहा है। आखिर राजधानी में लोग रहेंगे और बढ़ेंगे भी, लेकिन यह शिमला को तय करना है कि वह खुद में अपनी प्रबंधकीय व प्रशासनिक ताकत कैसे पैदा करता है। शिमला में कितनी राजधानी, कितना पर्यटन शहर या कितना भविष्य बचा है।

अगर यह केवल राष्ट्रीय ग्रीन ट्र्रिब्यूनल को ही तय करना हो, तो उसके आदेश पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शिमला की छत अब नीची रखनी होगी या सारा कोर क्षेत्र किसी भी निर्माण से वंचित रहेगा, लेकिन हम प्रदेश की राजधानी को केवल जंगल बनाकर नहीं छोड़ सकते। कानून तो तब भी थे, जब इमारतों के साथ माफिया तंत्र सीनाजोरी कर रहा था। टीसीपी कानून बने लगभग आधी सदी हो गई, लेकिन हुआ क्या। कभी शिमला विकास प्राधिकरण का गठन हुआ था, लेकिन न्यू शिमला बनाकर हमने वह बस्ती भी उजाड़ दी। क्या हमने कोई सर्वेक्षण किया या यह अनुमान लगाया कि भविष्य में राजधानी व पर्यटक शहर होने की चुनौतियां व दबाव क्या होंगे। हम चाहते तो राज्य राजधानी क्षेत्र के रूप में शिमला के विकास का दायरा कई शहरों, गांवों व कस्बों को जोड़कर बना सकते थे। शिमला के साथ चारों दिशाओं में कुछ उपग्रह नगर बसाते या वाकनाघाट जैसी परियोजना को मूर्तरूप देकर प्रशासनिक, आवासीय तथा कामर्शियल जरूरतों का हल निकालते। शिमला के साथ कर्मचारी, ट्रांसपोर्ट नगर तथा कामर्शियल क्षेत्र जोड़कर भीड़ घटाई जा सकती है। कर्मचारी नगर में तमाम कार्यालयों के स्थानांतरण के साथ-साथ कर्मचारी आवास बनाए जाएं। शिमला के बढ़ते यातायात को वाकनाघाट व घनाहट्टी में रोककर आगे का सफर रज्जु मार्गों से करना होगा। शिमला को भीड़ से निजात चाहिए, लेकिन यह समस्या अब सोलन जैसे शहर को भी विकराल कर रही है।


नयनादेवी, दियोटसिद्ध व तमाम धार्मिक स्थलों में भी व्यापारिक दृष्टि से हो रहा विकास आगे चलकर कब्रगाह में तबदील हो सकता है। ऐसे में शहरी विकास विभाग का औचित्य बढ़ जाता है। हर शहर का वर्गीकरण जरूरी है और यह भी है कि उसका चरित्र बचा रहे। पर्यटन शहर के लिए विकास के अलग मायने होंगे, जबकि व्यापारिक शहर की रूपरेखा अलग तरह की जरूरत पूरी करेगी। हिमाचल में विकास के उपयोग के लिए घटती जमीन के कारण इमारतें सीधे आकाश की तरफ उठ रही हैं और इस काम को आसान करने के लिए जेसीबी मशीनें तथा आधुनिक वास्तुकला का इस्तेमाल बढ़ रहा है। प्रदेश के हित में यही होगा कि वन संरक्षण अधिनियम के तहत आई करीब 68 प्रतिशत भूमि की सीमा घटा कर पच्चास फीसदी की जाए। इस तरह वन से पंद्रह से अठारह प्रतिशत भूमि की उपलब्धता से प्रदेश भर में विकास का नया खाका, परिवहन की नई व्यवस्था तथा आवासीय जरूरतें ही पूरी नहीं होंगी, बल्कि निवेश के लिए रास्ता भी बनेगा। हिमाचल के स्थानीय निकायों को सुदृढ़ करने के लिए गांव से हर शहर तक को अपने-अपने भूमि बैंक स्थापित करने होंगे। इससे भू संरचना, इस्तेमाल तथा विकास योजनाओं को फिर से लिखा जा सकता है। शिमला जैसे शहर के भीतर कई युग समाहित हैं, अतः पुराने हो चुके या हो रहे शहर को नए सिरे से बसाना पड़ेगा। सबसे अहम मसला टीसीपी कानून का सही व सक्षम कार्यान्वयन है, लेकिन देखना यह होगा कि ढहती इमारतों से शिमला क्या सीखता है।


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