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-मार्विक विश्वविद्यालय में ग्लोबल सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सीनियर टीचिंग फेलो (कन्वर्सेशन से)
वैश्विक खाद्य कीमतों में सितंबर, 2021 में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में लगभग 33 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मासिक खाद्य मूल्य सूचकांक के अनुसार है, जिसमें यह भी पाया गया कि जुलाई से वैश्विक कीमतों में तीन फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है, जो उस स्तर तक पहुंच गई है, जिसे 2011 के बाद से नहीं देखा गया था।
खाद्य मूल्य सूचकांक वनस्पति तेल, अनाज, मांस और चीनी सहित अन्य खाद्य वस्तुओं के दामों में महीने दर महीने होने वाले परिवर्तन की तुलना का पैमाना है। यह 2002 और 2004 के बीच औसत मूल्य स्तरों के सापेक्ष वास्तविक कीमतों को एक सूचकांक में परिवर्तित करता है। खाद्य कीमतों पर नजर रखने के लिए यह मानक स्रोत है-इसे मामूली कीमत (नॉमिनल प्राइस) के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि इन कीमतों में मुद्रास्फीति को समायोजित नहीं किया गया है।
मामूली कीमत जहां हमें बाजार में खाद्य खरीदने की मौद्रिक लागत के बारे में बताती है, वहीं मुद्रास्फीति समायोजित कीमतें (जिन्हें अर्थशास्त्री वास्तविक कीमत कहते हैं) खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा प्रासंगिक हैं, कि लोग कितनी आसानी से उचित पोषण प्राप्त कर सकते हैं। सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में औसत आय की तुलना में तेजी से वृद्धि होती है (हालांकि हमेशा नहीं)।
मुद्रास्फीति का मतलब है कि न केवल खरीदारों को प्रति यूनिट भोजन के लिए अधिक भुगतान करने की आवश्यकता है (उसकी मामूली कीमत में वृद्धि के कारण), बल्कि बाकी सब चीजों के समानांतर मूल्य वृद्धि को देखते हुए उनके पास मजदूरी और अन्य आय को छोड़कर उस पर खर्च करने के लिए आनुपातिक रूप से कम पैसा होता है।
अगस्त में मैंने एफएओ के मुद्रास्फीति-समायोजित खाद्य मूल्य सूचकांक का विश्लेषण किया और पाया कि वास्तविक वैश्विक खाद्य कीमतें वास्तव में 2011 की तुलना में अधिक थीं, जब खाद्य दंगों ने लीबिया और मिस्र में सरकारों को उखाड़ फेंकने में योगदान दिया।
वर्ष 1961 से संयुक्त राष्ट्र ने रिकॉर्ड रखना शुरू किया, तबसे वास्तविक कीमत के आधार पर लगभग हर दूसरे वर्ष की तुलना में वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य वस्तुएं खरीदना कठिन है। केवल वर्ष 1974 एवं 1975 अपवाद हैं। 1973 में तेल की कीमतों में वृद्धि के बाद खाद्य कीमतों में भारी उछाल आया था, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था के कई हिस्सों में तेजी से मुद्रास्फीति बढ़ाई, जिसमें खाद्य उत्पादन और वितरण भी शामिल था। तो इस समय खाद्य कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर क्यों हैं?
औसत अंतरराष्ट्रीय खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारक हमेशा जटिल होते हैं। विभिन्न वस्तुओं की कीमतें सार्वभौमिक कारकों के साथ-साथ हर वस्तु और क्षेत्र के आधार पर बढ़ती और घटती हैं। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2020 में शुरू हुई तेल की कीमतों में वृद्धि ने खाद्य उत्पादन और परिवहन की लागत में वृद्धि करके, एफएओ सूचकांक पर सभी खाद्य वस्तुओं की कीमतों को प्रभावित किया है। कोविड महामारी के परिणामस्वरूप श्रमिकों की उपलब्धता कम होने से फसल काटने, तैयार करने और खाद्य वस्तुओं के वितरण में कमी हुई है, जो खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का एक और सार्वभौमिक कारण है।
1960 के दशक की शुरुआत से लगातार गिरावट की प्रवृत्ति के विपरीत भोजन की वास्तविक औसत कीमत वास्तव में वर्ष 2000 से बढ़ रही है। वैश्विक प्रयासों के बावजूद (जो आंशिक रूप से, संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास और भूख कम करने के लिए बाद के सतत विकास लक्ष्यों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों से निपटते हैं) कीमतों ने खाद्य वस्तुओं को लगातार कम सुलभ बना दिया है। वर्ष 2000 से औसत वास्तविक मूल्य वृद्धि के लिए कोई एक वस्तु लगातार जिम्मेदार नहीं रही है।
लेकिन खाद्य तेल फसलों का मूल्य सूचकांक मार्च 2020 के बाद से काफी बढ़ गया है, जो मुख्य रूप से 2019 और 2020 के बीच वनस्पति तेलों की कीमत में 16.9 फीसदी की बढ़ोतरी से प्रेरित है। एफएओ की फसल रिपोर्ट के अनुसार, यह बायोडीजल की बढ़ती मांग और मौसम के अनुकूल नहीं होने के कारण था। अन्य खाद्य श्रेणी, जो समग्र खाद्य कीमतों में सर्वाधिक वृद्धि करती है, वह है चीनी। यहां फिर से प्रतिकूल मौसम, जिसमें ब्राजील में पाले से क्षति शामिल है, ने आपूर्ति कम कर दी है और कीमतों को बढ़ा दिया है।
अनाज की कुल कीमतों में वृद्धि कम हुई है, लेकिन दुनिया भर में उनकी पहुंच खाद्य सुरक्षा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। गेहूं, जौ, मक्का, ज्वार-बाजरा और चावल वैश्विक पोषण का कम से कम 50 फीसदी और सबसे गरीब देशों में 80 फीसदी तक पोषण प्रदान करते हैं। इन फसलों के वैश्विक बफर स्टॉक 2017 से सिकुड़ रहे हैं, क्योंकि मांग आपूर्ति से अधिक हो गई है। जमाखोरी कम होने से वैश्विक बाजार को स्थिर करने में मदद मिली है, लेकिन 2019 से कीमतें तेजी से बढ़ी हैं।
फिर व्यक्तिगत उतार-चढ़ाव के कारण जटिल हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि वर्ष 2000 के बाद से कई बार 'अप्रत्याशित' और 'प्रतिकूल मौसम' के कारण एफएओ द्वारा 'फसल कम होने की उम्मीद', 'मौसम के चलते फसलों की बर्बादी' और 'उत्पादन में कमी' की सूचना दी गई है।
हमारी तकनीकी क्षमता और सामाजिक आर्थिक संगठन अप्रत्याशित और प्रतिकूल मौसम का सफलतापूर्वक प्रबंधन नहीं कर सकते हैं। ऐसे में अब दो डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म दुनिया में खाद्य आपूर्ति के बारे में सोचने के लिए यह सही वक्त है। जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट पर सबसे हालिया अंतर सरकारी पैनल के अनुसार अब वैश्विक तापमान के इस परिणाम को तेजी से संभावित माना जाता है।
आमूलचूल परिवर्तन के बिना जलवायु संकट आयातित खाद्य की अंतरराष्ट्रीय पहुंच को लगातार कम करता रहेगा। ऊंची कीमतों से खाद्य सुरक्षा घटेगी और सामाजिक विज्ञान का एक ठोस नियम है कि भूखे लोग अपनी आजीविका सुरक्षित करने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाते हैं-खासकर उन देशों में जहां नेताओं को विफल माना जाता है। -मार्विक विश्वविद्यालय में ग्लोबल सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सीनियर टीचिंग फेलो (कन्वर्सेशन से)
Neha Dani
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