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- फिल्म उद्योग पर फिर...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आदित्य नारायण चोपड़ा। कोरोना की दूसरी लहर से सभी चिंतित हैं। पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण सभी सैक्टर को बहुत नुक्सान झेलना पड़ा था। बड़ी मुश्किल से गतिविधियां चालू हुई थीं। बाजार खुल गए, लोगों ने आना-जाना शुरू किया था लेकिन महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि जैसे राज्यों में हालात ज्यादा विकट हो जाने से इन राज्यों में सरकारें अब जिस तरह से सख्त कदम उठा रही हैं, वे पिछले साल की देशव्यापी पूर्ण बंदी की यादें ताजा करने के लिए काफी हैं। पिछले साल तो मजबूरी यह थी कि तब इस बीमारी की टीका या कोई दवा नहीं थी और सिर्फ बचाव संबंधी उपायों का पालन करके ही संक्रमण से बचा जा सकता था लेकिन अब तो व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान चल रहा है लेकिन इसके बावजूद संक्रमण के मामलों में तेज वृद्धि गंभीर बात है। महाराष्ट्र की स्थिति तो सबसे विकट है। कोरोना महामारी ने पिछले वर्ष सिनेमा उद्योग की कमर तोड़ दी थी। फिल्म उत्पादन वितरक और प्रदर्शन तीनों ही क्षेत्रों में हजारों करोड़ों रुपए का नुक्सान फिल्म जगत को उठाना पड़ा। फिल्मों की शूटिंग बंद हो गई थी। वितरक तैयार फिल्मों को उठा नहीं रहे थे। सिनेमाघरों पर ताले लगाए गए थे। ऐसे में बीते वर्ष ओटीटी का विकल्प मिला और कहा गया कि यह मनोरंजन बाजार की मुसीबत की दवा है मगर 28 भाषाओं में 2000 के आसपास फिल्में बनाने वाले उद्योग को अकेला ओटीटी बाजार की मुसीबत से बाहर निकाल देगा, यह कहना अतिश्योक्ति होगा।