सम्पादकीय

किसानी पर संकट

Subhi
10 Nov 2022 5:33 AM GMT
किसानी पर संकट
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ये कंपनियां जीएम सरसों प्रौद्योगिकी के आड में भारत के बीज बाजार पर कब्जा करना चाहती हैं। ये कंपनियां जल्दी ही धान, गेंहू, अरहर, मूंग, मसूर आदि फसलों के जीएम- एचटी संकर बीज बाजार में बिक्री के लिए लाएंगी और किसानों द्वारा प्रयोग किए जा रहे परंपरागत बीजों को खत्म करके बीटी कपास बीज बाजार जैसा एकाधिकार बना लेंगी।

Written by जनसत्ता; ये कंपनियां जीएम सरसों प्रौद्योगिकी के आड में भारत के बीज बाजार पर कब्जा करना चाहती हैं। ये कंपनियां जल्दी ही धान, गेंहू, अरहर, मूंग, मसूर आदि फसलों के जीएम- एचटी संकर बीज बाजार में बिक्री के लिए लाएंगी और किसानों द्वारा प्रयोग किए जा रहे परंपरागत बीजों को खत्म करके बीटी कपास बीज बाजार जैसा एकाधिकार बना लेंगी।

इससे किसान को हर साल इन कंपनियों से जीएम फसलों का महंगा बीज खरीदना पड़ेगा, जो महंगी रासायनिक दवाओं के बिना पूरी पैदावार भी नही देगा। अभी तो किसान सरसों, धान, गेंहू, चना, मसूर, मूंग आदि फसलों का अपने घर पर बनाया बीज प्रयोग करके बीज कंपनियों के दुश्चक्र से बचे हूए हैं। लेकिन जीएम संकर बीज आने के बाद बीटी कपास के किसानों की तरह ही दूसरे किसान भी आत्महत्या को मजबूर होंगे, क्योंकि तब खेती पर बुआई से लेकर मंडी में बिकने तक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शोषणकारी कब्जा होगा और देश के पांच सौ से ज्यादा राष्ट्रीय और प्रादेशिक कृषि अनुसंधान संस्थान व विश्वविधालय, इन कंपनियों के सामने नमस्तक होकर किसानो की कोई मदद नही कर पाएंगे, जैसा कि बीटी कपास मामले हुआ!

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जीएम प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कानुन के अंतर्गत सुरक्षित होती है, जिसे बिना भारी भरकम रायल्टी दिए भारतीय संस्थान प्रयोग नही कर सकेंगे! वैसे भी सरसों और धान आदि की संकर किस्मों का बीज पिछले एक दशक से उपलब्ध है जिनकी पैदावार ज्यादा नही होने से किसानों ने इन्हें नहीं अपनाया। देश के कुल धान क्षेत्र का केवल आठ फीसद क्षेत्र ही संकर धान के अंतर्गत आता है! कनाडा व यूरोप की जिस संकर कानोला सरसों/गोबिया सरसों की दूगनी पैदावार का उदारहण देकर वैज्ञानिक देश में भ्रम पैदा कर रहे हैं, वह 1980-1999 के दौरान देश भर में किए गए परीक्षण में भारतीय मौसम के अनुकुल नहीं पाई गई थी।

पिछले दिनों गुजरात के मोरबी में ऐतिहासिक झूलता पुल गिर जाने से लगभग डेढ़ सौ व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो गई थी। समूचे देश में इस दुर्घटना पर शोक छाया हुआ था, लेकिन कहीं से भी इसे लेकर कोई ज़िम्मेदार प्रतिक्रिया नहीं थी। पर अब गुजरात उच्च न्यायालय ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए गुजरात सरकार और स्थानीय अधिकारियों को नोटिस जारी करके 14 नवंबर तक इस मामले में स्थिति रिपोर्ट तलब की है।

अनेकों वाजिब प्रश्न हैं जो इस दुर्घटना और इस पर सरकार की अप्रत्याशित खामोशी से उठ रहे थे। जनता की निराशा और देश के प्रमुख मीडिया की अनर्गल, अतार्किक, बचकानी चुप्पी तथा प्रशासन की हास्यास्पद कार्यवाही ने केवल पीड़ित जनता के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया था। लेकिन गुजरात उच्च न्यायालय की सक्रियता ने कुछ उम्मीद जगाई है और पूरी आशा है की इस मामले की गहराई और हादसे के कारणों का खुलासा हो सकेगा।

चूंकि यह हादसा सैकड़ों लोगों के सामने हुआ, इसलिए बहुत कुछ ऐसा है जो स्वाभाविक तौर पर जनता और प्रभावित परिवारों को मालूम है। फिर भी प्रामाणिक तथ्य इस कार्यवाही से ही सबके समक्ष आएंगे। उम्मीद है, अदालत द्वारा वांछित रिपोर्ट के बाद त्वरित रूप से उस पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी और असली दोषियों को कड़ा दंड दिया जाएगा।


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