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भूपेंद्र सिंह| ऑक्सीजन की किल्लत से कोरोना मरीजों के दम तोड़ने का सिलसिला कायम रहना अव्यवस्था के अराजकता की हद तक पहुंचने की कहानी कह रहा है। यह शर्मनाक है कि 10-12 दिन बीत जाने के बाद भी ऑक्सीजन की किल्लत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। गत दिवस कर्नाटक के एक अस्पताल में ऑक्सीजन के अभाव में 25 मरीजों ने दम तोड़ दिया। इसके पहले इसी तरह की घटनाएं देश के विभिन्न अस्पतालों में घट चुकी हैं, जिनमें तमाम कोरोना मरीजों की जानें गई हैं। इनमें देश की राजधानी दिल्ली के भी अस्पताल हैं। जिन कोरोना मरीजों को घर पर ऑक्सीजन नहीं मिली और उनकी मौत हो गई, उनकी तो गिनती करना ही मुश्किल है। ऑक्सीजन संकट के मामले में यह देखना हैरान-परेशान करता है कि तमाम बड़े अस्पतालों ने भी न तो ऑक्सीजन प्लांट लगा रखे हैं और न ही उसके भंडारण की कोई ठोस व्यवस्था कर रखी है। वे चंद ऑक्सीजन सिलेंडर रखते हैं, जो संकट के इस दौर में जल्द ही खत्म होने लगते हैं। यही कारण है कि वे रह-रह कर ऑक्सीजन की कमी की गुहार लगाते दिखते हैं। यह और कुछ नहीं, अस्पतालों की आपराधिक लापरवाही ही है। सवाल है कि ऐसा कोई तंत्र क्यों नहीं, जो इसकी निगरानी करता हो कि अस्पताल जरूरी संसाधनों से लैस हैं या नहीं?