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- अपराध का संजाल
ज्योति सिडाना: अगर असामान्य रूप से निम्न है, तो इसका स्पष्ट अर्थ है कि सामूहिक भावनाओं के प्रति लोगों में बहुत मजबूत प्रतिबद्धता है। मगर यह भी सच है कि ऐसे समाज में प्रगति और परिवर्तन नहीं हो सकते, क्योंकि द्वंद्वात्मकता प्रत्येक समाज की विशेषता है। अगर अपराध की दर असामान्य रूप से उच्च है, तो स्पष्ट है कि लोगों में सामूहिकता और एकता की भावना बहुत कमजोर है।
सूचना क्रांति के बाद से समाज के सभी क्षेत्रों में तेजी से बदलाव अनुभव किए जा रहे हैं। चाहे वे औपचारिक संबंधों के क्षेत्र हों या अनौपचारिक संबंधों के। अपराध होना इस बात की चेतावनी है कि समाज में कहीं न कहीं असंतुलन विद्यमान है।
इस असंतुलन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे व्यक्तिवादिता का विस्तार, सामूहिकता की समाप्ति, संबंधों में विश्वास का अभाव, स्वार्थ केंद्रित संस्कृति और संसाधनों का असमान वितरण, बेरोजगारी, निर्धनता, सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग आदि।
दूसरी तरफ मोबाइल क्रांति ने भी लोगों, खासकर किशोर और युवा पीढ़ी, को इतना व्यस्त कर दिया है कि वे अपना अधिकांश समय चैटिंग, आनलाइन गेम, सेल्फी या फिर सोशल साइटों पर बिताने लगे हैं। आजकल सब कुछ आनलाइन करना संभव हो गया है- खरीदारी, बैठक, दफ्तर या कारोबार, शिक्षा, मनोरंजन, वस्तुओं को खरीदना-बेचना, यहां तक कि विवाह, तलाक तक। यही कारण है कि अब अपराध भी आनलाइन हो गए हैं।
किसी के खाते से पैसा निकाल लेना, व्यक्ति या किसी संस्था की निजी जानकारी या डेटा चुरा लेना, फोन को हैक कर लेना, धमकाना, सोशल मीडिया पर उपलब्ध फोटो के साथ छेड़छाड़ करना, अश्लील वीडियो बनाना आदि। हाल में चंडीगढ़ के एक शिक्षण संस्थान में ऐसी ही घटना सामने आई। ऐसी कई घटनाएं होटल के कमरों, बाथरूम और माल के वस्त्र बदलने की जगहों में गुप्त कैमरों के माध्यम से होने लगी हैं।
कहते हैं कि नई तकनीक ने मनुष्य का जीवन बहुत आसान कर दिया है, पर क्या वास्तव में ऐसा हुआ है या फिर जीवन अधिक जटिल और असुरक्षित हो गया है। अब कुछ भी निजी नहीं रहा, सब कुछ सार्वजानिक है या कहें कि आज का दौर निजत्व की समाप्ति का दौर है।
एक तरफ अगर तकनीक ने विकास और प्रगति के रास्ते खोले हैं, तो दूसरी तरफ उसके विनाश के गड्ढे भी खोदे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 'क्राइम इन इंडिया-2021' रिपोर्ट के अनुसार 2021 में 52,974 साइबर अपराध के मामले दर्ज हुए, जबकि 2020 में इनकी संख्या 50,035 थी।
यानी एक वर्ष में साइबर अपराधों में पांच फीसद की वृद्धि हुई। एक और तथ्य इस रिपोर्ट में उभर कर आया कि सत्तर फीसद से ज्यादा साइबर अपराध के मामले तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और असम में दर्ज किए गए।
समाजशास्त्रीय दृष्टि से देखें, तो कहा जा सकता है कि जब किसी समाज या राज्य में कल्याणकारी गतिविधियां कम होने लगती हैं, असमानता में वृद्धि होती है, तब विकास का लाभ उठा रहे लोग और लाभ से वंचित लोगों के बीच तनाव और संघर्ष होना स्वाभाविक हो जाता है। ऐसे में आपराधिक गतिविधियां भी विस्तार लेने लगती हैं।
मसलन, 'साइबर बुलिंग' एक ऐसा अपराध है, जिसमें पुरुष/ लड़के महिलाओं/ लड़कियों से आनलाइन दोस्ती करते हैं, फिर उनका विश्वास जीत कर उनसे अपनी फोटो साझा करने को कहते या उन्हें कहीं बाहर मिलने के लिए बुलाते हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार करके वीडियो रिकार्ड करते और फिर ब्लैकमेल करते या बार-बार उनका शारीरिक शोषण करने के लिए उन्हें बाध्य करते हैं।
इस विषय पर हुए अनेक अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश किशोर और युवा सोशल मीडिया पर अपना अधिकांश समय बिताते हैं, खासकर कोविड महामारी के बाद से यह प्रवृत्ति अधिक बढ़ गई है। कम आयु का होने या साइबर अपराध के प्रति जागरूक न होने के कारण वे सही या गलत में अंतर नहीं कर पाते।
कई बार भावनाओं में बह कर वे अनजान और अपरिचित व्यक्ति से या फिर सोशल साइटों पर निजी फोटो या जानकारी साझा कर देते हैं, जो उन्हें नहीं करनी चाहिए। परिणामस्वरूप वे अपराधी के चंगुल में फंस जाते हैं।
एक और बात, समाज चूंकि न्यायोचित नहीं है, इसलिए ऐसे अनेक अवसर उत्पन्न हो जाते हैं जहां व्यक्ति आपराधिक कृत्यों में फंस या फंसा दिया जाता है। एक तार्किक व्यक्ति वही है, जो अपने को संभावित फंसने वाली स्थितियों से बचाने की कोशिश करे। अनेक बार आक्रमकता, निराशा, क्रोध और समाज या समूह के प्रति घृणा या धोखे का तत्त्व भावनात्मक रूप से व्यक्ति को अपराध के रास्ते पर ले जा सकता है।
केवल शिक्षा, व्यापक तार्किक समझ और व्यक्ति द्वारा संबंधित घटना की विस्तृत विवेचना उस व्यक्ति को फंसने से रोक सकती है। इसलिए सही और गलत के बीच अंतर करना और समाज और कानून द्वारा स्वीकृत नियमों और मूल्यों का पालन करना आवश्यक है। यहां पर शिक्षा की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को तार्किक बनाती है।
जब समाज में असंतुलन या विचलन की स्थिति उत्पन्न होती है, तब एक तर्कयुक्त व्यक्ति अपराध से बचने का रास्ता खोज सकता है। अन्यथा ऐसे समाज के प्रति उत्पन्न हुआ क्रोध व्यक्ति के विरुद्ध अपराध को जन्म दे सकता है।
समाज वैज्ञानिक कहते हैं कि आधुनिक विश्व में हो रहे तकनीकी परिवर्तन और नई-नई तकनीकों के विकास से मानव समाज के सामने अनेक जोखिम और चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं।
अगर समय रहते हमने इन जोखिमों का समाधान नहीं खोजा, तो एक बेहतर विश्व बनाने का सपना सपना ही रह जाएगा। इस चुनौती ने केवल पर्यावरण, स्वास्थ्य, निजता को ही संकट में नहीं डाला है, मानव जीवन को भी बारूद के ढेर पर लाकर खड़ा कर दिया है। कोई भी तकनीक बुरी नहीं है, बस उसका उपयोग या दुरुपयोग अच्छा या बुरा होता है।
अनेक अध्ययन इस बात को प्रमाणित करते हैं कि आधुनिक तकनीक के बढ़ते उपयोग ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। युवा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा जाने-अनजाने आपराधिक गतिविधियों में फंसता चला जाता है। जिसका नकारात्मक प्रभाव उसके परिवार के साथ-साथ समाज और देश के विकास पर भी पड़ता है। कोई भी समस्या या चुनौती ऐसी नहीं हो सकती, जिसका समाधान मनुष्य नहीं कर सकता।
बस, जरूरत इस बात की होती है कि वह पहले उस समस्या को स्वीकार करे, फिर सामूहिक विमर्श और अनुभवों के साथ उसका समाधान सोचे। जो देश जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा स्थान रखता है, सोचिए, अनुभवों की दृष्टि से वह कितना समृद्ध होगा। तकनीक के उपयोग को तो अब नहीं रोका जा सकता, हां उसके दुरुपयोग के प्रति लोगों को सावधान और जागरूक जरूर किया जा सकता है।