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Written by जनसत्ता: बिहार में बहुचर्चित चारा घोटाले के पांचवें मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत ने सोमवार को अपना फैसला सुना दिया, जिसके मुताबिक दोषी करार दिए गए लालू प्रसाद को पांच साल की कैद और साठ लाख रुपए जुर्माने की सजा दी गई है। बीते करीब ढाई दशक से जिस तरह इस घोटाले ने बहुत सारे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचे रखा है, उसके मद्देनजर सीबीआइ अदालत का यह फैसला एक अहम कड़ी है।
खासतौर पर इसलिए भी कि इस पांचवें मामले में झारखंड के डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी की रकम अब तक के चारों अन्य मामलों में सबसे ज्यादा एक सौ उनतालीस करोड़ पचास लाख रुपए थी। अदालत ने लंबे समय तक सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निन्यानबे में से चौबीस आरोपियों को बरी कर दिया और छियालीस दोषियों को तीन साल कैद की सजा सुनाई।
लेकिन एक दौर में बड़े घोटाले के रूप में चर्चित रहे इस मामले को ज्यादा महत्त्व इसलिए मिला कि इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री को मुख्य साजिशकर्ता के रूप आरोपी बनाया गया था। इससे पहले चारा घोटाले के चार अन्य मामलों में लालू प्रसाद को सजा सुनाई जा चुकी है और वे काफी समय जेल में गुजार भी चुके हैं। फिलहाल वे जमानत पर बाहर हैं।
यों करीब ढाई दशक पहले मामले के सामने आने और कानूनी प्रक्रिया के तमाम जद्दोजहद से गुजरने के बाद आए इस ताजा फैसले को भी आखिरी नहीं माना जा रहा है। लालू प्रसाद के वकील और बेटे तेजस्वी यादव की ओर से जैसी प्रतिक्रिया आई है, उसके मुताबिक उच्च अदालत में उनकी जमानत की अर्जी के साथ-साथ इस फैसले को चुनौती भी दी जाएगी।
लेकिन सीबीआइ अदालत के फैसले के बाद इतना तय है कि फिलहाल लालू प्रसाद को मिली सजा कानूनी प्रक्रिया के तहत ही अमल में आएगी। लालू प्रसाद चूंकि भारतीय राजनीति में एक कद्दावर नेता रहे हैं, इसलिए उन्हें मिली सजा के बाद उनके पक्ष और विपक्ष की ओर से आर्इं प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक ही हैं। यह एक तथ्य है कि चारा घोटाला लालू प्रसाद के शासन काल में उजागर हुआ था और उस अवधि में मुख्यमंत्री होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बनती थी। भले ही उनकी पार्टी की ओर से यह कहा गया कि इस घोटाले में मुकदमा दर्ज करने का आदेश खुद लालू प्रसाद ने ही दिया था, लेकिन यह अदालत के विचार का प्रश्न होता है कि दर्ज मुकदमे में जांच और उसके विश्लेषण के बाद किसे दोषी के तौर पर चिह्नित किया जाता है।
हालांकि चारा घोटाले की अवधि लालू प्रसाद के शासनकाल से पहले से मानी जाती है। लेकिन किसी भी मामले के सामने आने और उस पर आए फैसले के मुताबिक ही उसका आकलन किया जाता है, इसलिए चारा घोटाले को मुख्य रूप से लालू प्रसाद के शासनकाल के दौरान आई गड़बड़ी के तौर पर देखा गया। अब तक इस घोटाले के अलग-अलग मामलों में आए फैसलों में भी लालू प्रसाद को दोषी मानते हुए सजा तय की गई है।
अब डोरंडा कोषागार पर अदालत के फैसले के बाद एक बार फिर यह सवाल उभरेगा कि इस मामले में आखिर उनकी संलिप्तता किस हद तक रही। दरअसल, कानूनी प्रक्रिया की अपनी जटिलताएं होती हैं और अगर मामला ऊपरी अदालतों में ले जाया जाता है तो अंत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही आखिरी माना जाता है। मगर इस क्रम में निचली अदालतों में हुई सुनवाई और फैसलों को वहां तक पहुंचने की अहम प्रक्रिया के तौर पर देखा जाता है।