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- न्यू आइडिया का सृजन...
प्रगति की भागीदारी में हिमाचल में 'न्यू आइडिया' की जरूरत को अब टाला नहीं जा सकता, बल्कि जरूरत यह भी है कि हर फाइल-योजना या परियोजना के पुराने ढर्रे को बदला जाए। ढांचागत उपलब्धियों के मात्रात्मक आंकड़े इस प्रदेश को भले ही सुखद अनुभूति दें, लेकिन गुणात्मक दृष्टि से संकल्प और परिकल्पना को बदलना होगा। यहां प्रश्न औचत्य का है और औचित्यपूर्ण ढंग से अधोसंरचना के इस्तेमाल का भी है। आश्चर्य यह कि हिमाचल का विकास राज्यस्तरीय खाके में ऐसी असंतुलित गति है, जो किसी एक क्षेत्र को सशक्त करते हुए अन्य को उपेक्षित कर देता है। मसलन पांच नगर निगमों के गठन के बावजूद शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान नहीं खोजा जा रहा। वर्षों से उद्योगों की रफ्तार में उत्पादन को रोजगार की संभावनाओं में देखा जाए, तो सबसे ज्यादा ध्यान सोलन जिला तक ही केंद्रित रहा, जबकि इससे पूर्व जब वाईएस परमार मुख्यमंत्री थे, तो काला अंब से लेकर संसारपुर टैरस तक की पट्टी तक कई औद्योगिक केंद्र विकसित हुए। इसी तरह निजी विश्वविद्यालयों की बाढ़ आई तो सोलन तक ही यह प्रयोग पूरा हो गया और अब इनमें से चंद ही खुद को साबित कर रहे हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली