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ऐसा नहीं है कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं, इसलिए वहां सामाजिक न्याय के लिए हर स्तर पर आरक्षण जरूरी हैँ
By NI Editorial
ऐसा नहीं है कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं, इसलिए वहां सामाजिक न्याय के लिए हर स्तर पर आरक्षण जरूरी हैँ। असल सूरत यह है कि सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र लुप्त-प्राय होने की दिशा में है। इसीलिए असल सवाल यह है कि रोजगार के अधिक अवसर कैसे पैदा हों। BJP reservation in promotion
जिस समय समस्या रोजगार के अवसर घटने की है, चर्चा के केंद्र में आरक्षण को ला देना सरकार के लिए एक राहत की बात हो सकती है। प्रश्न है कि जब अपनाई गई आर्थिक नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार कायम हो रहे हैं- प्रतिस्पर्धा और उद्यम भावना लगभग गायब होती जा रही है, तब आरक्षण से कितने लोगों का भला हो सकता है? और ऐसा नहीं है कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं, इसलिए वहां सामाजिक न्याय के लिए हर स्तर पर आरक्षण के प्रावधान जरूरी हैँ। असल सूरत यह है कि सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र लुप्त-प्राय होने की दिशा में है। इसीलिए केंद्र को यह कहते हुए राहत ही महसूस हुई होगी कि प्रमोशन में आरक्षण को रद्द नहीं किया जाएगा। आखिर उसकी इस बात से समाज के एक तबके को खुशी होगी। यह तबका आज भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ा वोट आधार है। तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण की नीति रद्द करने का असर साढ़े चार लाख कर्मचारियों पर पड़ेगा। इससे उनमें अंसतोष बढ़ेगा। केंद्र सरकार ने अपने एक हलफनामे में कहा कि 2007 से 2020 के बीच साढ़े चार लाख से अधिक कर्मचारियों को इसका लाभ मिला।
ऐसे में अगर इस नीति के खिलाफ किसी भी तरह का आदेश दिया जाता है तो इसके गंभीर और व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण की केंद्र की इस नीति को खारिज कर दिया था। उसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। वहां अपनी नीति का बचाव करते हुए केंद्र ने कहा कि प्रोमोशन में आरक्षण की नीति से किसी पर विपरीत या नकारात्मक असर नहीं पड़ रहा था। प्रमोशन में आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हीं कर्मचारियों को दिया गया, जो मानदंडों को पूरा करते हैं और वो निर्धारित अर्हता पूरी करते हों। सरकार ने अदालत के सामने 75 मंत्रालयों और विभागों का डेटा भी पेश किया। उसने कहा कि कुल 27,55,430 कर्मचारियों में से 4,79,301 ही अनुसूचित जाति से और 2,14,738 अनुसूचित जनजाति से आते हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग के 4,57,148 कर्मचारी हैं। अगर प्रतिशत में देखें तो केंद्र सरकार के मंत्रालयों विभागों में एससी वर्ग से 17.30 फीसदी, एसटी वर्ग से 7.70 फीसदी और ओबीसी वर्ग से 16.50 फीसदी कर्मचारी हैं।
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