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दुनिया की यह सबसे बड़ी गलतफहमी
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
दुनिया की यह सबसे बड़ी गलतफहमी है कि कोई यह मान ले कि मेरे काम मैं ही कर सकता हूं, मुझे किसी दूसरे के सहयोग की जरूरत नहीं है। ठीक है, अपने काम खुद करना चाहिए, लेकिन यह हमारे निजी जीवन पर लागू होता है। जब सार्वजनिक जीवन में उतरते हैं तो हमें कई छोटे-बड़े, अच्छे और हो सकता है कि बुरे लोगों का भी सहयोग लेना पड़ जाए।
जीवन एक-दूसरे के सहयोग से चलता है। श्रीराम ने अपने विजय अभियान में वानरों का सहयोग लिया था। कोई सोच भी नहीं सकता कि रावण जैसी महाशक्ति से संघर्ष में वानरों का भी उपयोग हो सकता है। इसलिए जब राम आभार प्रदर्शन कर रहे थे तो वानरों ने टिप्पणी की- सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं। मसक कहूं खगपति हित करहीं। देखि राम रुख बानर रीछा। प्रेम मगन नहिं गृह कै ईछा। प्रभु के ऐसे वचन सुन हम लाज के मारे मरे जा रहे हैं।
मच्छर भी कभी गरूड़ का हित कर सकते हैं? राम का रुख देख सारे वनर-भालू प्रेममग्न हो गए, उनकी अपने घर जाने तक की इच्छा नहीं रही। राम का चरित्र ऐसा ही था। कोई कितना ही छोटा हो, वे उसे अपने समान मानकर जोड़ लेते थे। जीवन में जब हमसे छोटे चाहे वे उम्र में हों, ओहदे में हों, ऐसे काम के लोग मिलें तो सबसे पहले उन्हें सम्मान दीजिए, समानता दीजिए और फिर उनका सहयोग लीजिए। तब जाकर अपनेपन का ऐसा वातावरण बन पाता है।
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