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- पागल का दर्पण
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दुनिया उसे पागल समझती है, लेकिन वह खुद को हर आईने के सामने निर्दोष मानता है। वह आईनेवाला व्यक्ति है, इसलिए समाज उसे अलग करके देखता है। वह अपने एक हाथ में दर्पण रखता है और अक्सर किसी को भी दिखाकर खिलखिला कर हंसता है। उसके दर्पण को झूठा बनाने के लिए उसे ही पागल घोषित करने वाले कम नहीं। उसने आईना यूं ही नहीं पकड़ा, बल्कि जन्म से आज तक देखा कि लोग आईना बने घूम रहे हैं, जबकि किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि इसके सान्निध्य में खड़े हो जाएं। उस दिन उसने मुझे भी आईना दिखा दिया। मैं स्पष्ट रूप से देख रहा था कि यह शक्ल अपनी ही करतूत से कितनी भिन्न होती है। मैंने हल्के से दर्पण के आगे विजयी चिन्ह बनाया ही था कि वहां से 'बगैरा-बगैरा' नारे गूंज गए। मैं मुस्कराया ही था कि वहां से 'सत्ता पक्ष' का मान लिया गया। मेरी मुद्राओं को भांपे बगैर दर्पण जल्दी में संदेश दे रहा था। उस दिन मुझे लगा कि दर्पण के कारण ही अधिकांश लोग पागल क्यों लगते हैं। दरअसल दर्पण ही पागलखाना है, क्योंकि आज के दौर में सच को देखना, समझना और कबूल कर लेना किसी को भी पागल कर सकता है।
सोर्स- divyahimachal
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