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![उन्माद की आस्था उन्माद की आस्था](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/04/11/1583340-60.webp)
उन्माद की आस्था: भारत में हर धर्म को पूर्ण स्वतंत्रता है। हर धर्म के मानने वाले अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अपने त्योहार मना सकते हैं। इतनी धार्मिक स्वतंत्रता होने के बाबजूद देश में लगातर धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है। अभी गोरखनाथ मंदिर परिसर में एक मुसलिम युवक ने धारदार हथियार लेकर घुसने की कोशिश की। रोकने पर उसने सुरक्षाकर्मी पर ही अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाते हुए हमला कर दिया, जिसमें एक सिपाही गंभीर रूप से घायल हो गया। पूछताछ में उसने बताया कि नागरिक संशोधन कानून, एनआरसी तथा कर्नाटक हिजाब विवाद को लेकर उसने यह हमला किया। योजना के अनुसार वह हमला करके नेपाल के रास्ते सीरिया भागने की कोशिश में था। कुछ समय पहले वह दुबई भी गया था। विचारणीय बात यह है कि आखिर उसकी मदद कौन कर रहा है और उसको इस हमले के लिए किसने तैयार किया।
उसके दो वीडियो देखने के बाद पता चलता है कि उसमें कितनी धार्मिक कट्टरता भरी गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब धार्मिक कट्टरता के कारण जान लेने की तैयारी की गई हो। इससे पहले भी कई बार इसी कट्टरता के कारण कई लोगों की जान चली गई है। इसी धार्मिक कट्टरता के कारण देश में होने वाले हर छोटे-बड़े आंदोलनों को भड़का कर बड़ा किया जाता है, जिससे देश में हिंसा भड़क जाए।
कर्नाटक में हिजाब विवाद की अगुआई करने वाली मुस्कान की तारीफ इसीलिए की गई कि उसने भरी भीड़ में अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए। यहां तक कि आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना अल जवाहिरी ने भी मुस्कान की तारीफ की है। इन धार्मिक रूप से कट्टर लोगों को सोचना चाहिए कि इसी कट्टरता के कारण आज पूरा विश्व एक धर्म को शक की नजरों से देखने लगा है। देश की सरकार को इस धार्मिक कट्टरता पर रोक लगाने का प्रयास करना चाहिए, नहीं तो यह धीरे-धीरे पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगी, जो कि देश के लिए ठीक नहीं।
गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की स्थिति बद से भी बदतर हो गई है। श्रीलंका विदेशी कर्ज के जाल में फंस कर लगभग पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। वित्तीय तथा राजनीतिक संकट का सामना श्रीलंका को करना पड़ रहा है। यहां के लोग खाने, र्इंधन और दवाओं की बढ़ती कीमतों के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। देश के लोगों में जबर्दस्त आक्रोश है और हो भी क्यों न? खाने-पीने की चीजों के दाम तो जैसे आसमान छू रहे हैं। जीवन यापन करने में लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
श्रीलंका की आर्थिक बदहाली का बड़ा कारण विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट है। श्रीलंका की विदेशी मुद्रा भंडार में सत्तर प्रतिशत की गिरावट आई है। फिलहाल श्रीलंका के पास 2.31 अरब डालर बचे हैं। विदेशी मुद्रा के रूप में सिर्फ 17.5 हजार करोड़ रुपए श्रीलंका के पास हैं। श्रीलंका कच्चे तेल और अन्य चीजों के आयात पर एक साल में इक्यानबे हजार करोड़ रुपए खर्च करता है। मगर श्रीलंका के पास सिर्फ 17.5 हजार करोड़ रुपए ही हैं।
गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा संकट और भुगतान संतुलन से निपटने में सक्षम रहने की वजह से सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हो रहा है। जनता में काफी आक्रोश है और वह राष्ट्रपति से इस्तीफा मांग रही है। इन सबके बीच श्रीलंका के पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर सनत जयसूर्या ने बड़ा बयान दिया है कि अब लोगों ने श्रीलंकाई सरकार के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया है। वह सरकार को यह दिखा रहे हैं कि वे पीड़ित हैं। अगर संबंधित लोग इसे ठीक से हल नहीं करते, तो यह एक आपदा में बदल सकती है। फिलहाल इसकी जिम्मेदारी वर्तमान सरकार की ही होगी।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि श्रीलंका के लोग ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं। वे इस तरह जीवित नहीं रह सकते। गैस की तो किल्लत है ही, घंटों बिजली की आपूर्ति भी नहीं है। जयसूर्या ने भारत को लेकर कहा कि हमारे देश के पड़ोसी और बड़े भाई के रूप में भारत ने हमेशा से हमारी मदद की है। हम भारत सरकार के आभारी हैं, क्योंकि हमारे लिए इस मौजूदा परिदृश्य में जीवित रहना आसान नहीं होगा। इसीलिए हम भारत तथा अन्य देशों की मदद से इस स्थिति से बाहर निकलने की उम्मीद करते हैं।