सम्पादकीय

हुर्रियत पर नकेल

Subhi
24 Aug 2021 1:00 AM GMT
हुर्रियत पर नकेल
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अब केंद्र सरकार हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर प्रतिंबध लगाने की तैयारी में है। जाहिर है इसके पीछे निश्चित ही ठोस और जायज कारण हैं।

अब केंद्र सरकार हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर प्रतिंबध लगाने की तैयारी में है। जाहिर है इसके पीछे निश्चित ही ठोस और जायज कारण हैं। तभी सरकार इस संगठन के धड़ों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत कार्रवाई के लिए कदम बढ़ाने को मजबूर हुई है। हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर का अलगाववादी संगठन है। इसके नेता चाहे वे कट्टरपंथी धड़े को हों या उदारवादी गुट के, कश्मीरी अवाम के हितों और उसके लिए संघर्ष का दावा करते रहे हैं। लेकिन ये नेता जिस तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं, वे भी किसी से छिपी नहीं हैं। ताजा मामला पाकिस्तान के कॉलेजों में कश्मीर के छात्रों को सीटें दिलाने से जुड़ा है। हुर्रियत नेता कश्मीरी छात्रों से मोटी रकम लेकर उन्हें पाकिस्तान के कॉलेजों में एमबीबीएस और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों में दाखिला दिलाते थे। इससे जो पैसा मिलता था, उसका इस्तेमाल घाटी में आतंकी गतिविधियों में अंजाम देने में होता था। इसका पर्दाफाश पिछले साल हुआ था। तब मामला दर्ज हुआ। और हाल में इस सिलसिले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया।

कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी और आतंकी संगठनों को पाकिस्तान से पैसा व दूसरी तरह की मदद मिलती रही है। यह कोई छिपी बात नहीं है। भारत तो दुनिया को सैकड़ों बार इसके सबूत भी दे चुका है कि पाकिस्तान किस तरह से अलगाववादी संगठनों को पाल रहा है, उन्हें पैसा दे रहा है और घाटी में आतंकवाद फैला रहा है। इसलिए अब इस मामले में ऐसे लोगों और संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए। पैसा लेकर कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान में दाखिला दिलाने के मामले की जांच जम्मू-कश्मीर पुलिस, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय ने की है। जांच में सामने आया कि हुर्रियत के नेताओं ने पाकिस्तान के शिक्षा संस्थानों में सांठगांठ कर रखी है। ये लोग इंजीनियरिंग, मेडिकल सहित कई पाठ्यक्रमों में दाखिला दिलाने के लिए एक-एक सीट का दस से बारह लाख रुपए वसूलते थे। यह सिर्फ एक मामला नहीं है। गौरतलब है कि जुलाई 2016 में हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में कई दिनों तक अशांति रही थी। इसके लिए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के एक नेता पर पांच करोड़ रुपए देने का आरोप है। ये सारी घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि घाटी में आतंकवाद फैलाने के लिए अलगाववादी समूहों से जुड़े नेता किस तरह से पैसे लेते-देते रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद वहां सक्रिय अलगाववादी गुटों की कमर टूटी है। इनके ज्यादातर नेता जेल में हैं या नजरबंद हैं। सरकार की सख्ती के बाद पथराव जैसी घटनाओं में भी खासी कमी आई है। वरना घाटी में बंद, पथराव और सेना-सुरक्षाबलों पर हमले तो रोजाना की बात थी। हालांकि ऐसा भी नहीं कि घाटी में अब आतंकवाद बिल्कुल खत्म हो गया है। आज भी आतंकी पूरी ताकत से जुटे हैं। सुरक्षाबलों पर घात लगा कर हमले कर रहे हैं। घाटी में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू न हो पाए, इसके लिए राजनीतिक कार्यकर्ताओं को लगातार निशाना बना रहे हैं। पिछले कुछ महीने में बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ताओंं को निशाना बनाया गया। कहने को दो साल में घाटी के हालात बदले तो हैं, पर चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं। अलगाववादी संगठनों की भारत विरोधी गतिविधियां किसी से छिपी नहीं रही हैं। इसलिए पाकिस्तानी मदद पर पलने और उसके इशारे पर चलने वाले अलगाववादी संगठनों पर नकेल तो कसनी ही पड़ेगी।

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