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आदित्य नारायण चोपड: भारतीय संिवधान में दिशा निर्देशक सिद्धांतों में यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि देश में कृषि पशुधन की वृद्धि के लिए आधुनिकतम वैज्ञानिक उपायों को अपनाते हुए गाय व बछड़े के वध को प्रतिबंधित करते हुए अन्य दुधारू और माल ढोने वाले पशुओं के संरक्षण को सुनिश्चित किया जाए तो स्वतंत्र भारत में गौवध का सवाल ही कहां पैदा हो सकता है लेकिन सच कुछ और ही है। गौवंश की हत्याएं जारी हैं। भारत में अनेक समूह और लोग गाै मांस खाते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कहा था कि-गौवध को रोकने का प्रश्न मेरी नजर में भारत की स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है।अफसोस गौवंश की हत्या पर वैधानिक रोक लगाने के लिए संसद में बैठे जनप्रतिनिधियों ने कुछ नहीं किया। मेरे पूजनीय पिता अश्विनी कुमार का गाय के िलए नैसर्गिक आकर्षण रहा। उनके बचपन की कुछ घटनाएं गौ से जुड़ी हुई थीं। वे बताते थे कि गाय के दूध से ही उन्हें जीवनदान मिला था। वे हमें गाय का महत्व बताते और कहते थे-''जब तक भारत की भूमि पर गौ हत्या जारी रहेंगी हमारा देश सदा अशांत रहेगा। इसकी अशांति स्वप्न में भी दूर नहीं हो सकती, क्योंकि इस राष्ट्र के लोगों को पता ही नहीं िक एक अकेली गाय का अतिवाद सौ-सौ योजन तक की भूमि को श्मशान बना देने में सक्षम है।''कितना बड़ा अनर्थ है कि भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, महावीर बुद्ध, गुरु नानक देव, रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी दयानंद के धर्मपरायण देश में गाय-बैलों की हत्या कर दी जाती है। गौ मांस का निर्यात बड़ा व्यापार बन गया। गाय के दूध की उपयोगिता के फायदे बहुत पहले ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमाणित माने गए हैं। 16वीं सदी में जब बाबर ने यहां अपना साम्राज्य स्थापित किया था तो गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा कर अपने पुत्र हुमायूं को गद्दी सौंपने से पहले सलाह दी थी कि अगर भारत में शासन करना चाहते हो तो िहन्दुओं के िलए पवित्र गाय की किसी भी कीमत पर कुर्बानी मत देना। गौमांस खाने पर पूर्ण प्रतिबंध और गौकशी पर पूरी पाबंदी रखना। इसके बाद मुगल बादशाह हुमायूं, अकबर, शाहजहां इसका पालन करते रहे। हालांकि इस मामले में उन्होंने कई मौकों पर छूट भी देना जारी रखा। गौ हत्या का सिलसिला औरंगजेब के शासन में शुरू हुआ और उसने हिन्दू मान्यताओं के साथ जमकर खून की होली खेली थी।संपादकीय :सोशल, डिजीटल मीडिया और न्यायमूर्ति रमणसुपर टेक को सुपर झटकामजबूती की राह पर अर्थव्यवस्थामहक उठा स्कूलों का आंगनतालिबान : भारत का मध्यमार्गखूब मनाई जन्माष्टमी , अब बारी हैं ...अब गौ रक्षा के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने गाय के सम्पूर्ण महत्व को देखते हुए इसे राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि गौ मांस खाना िकसी का मौलिक अधिकार नहीं है। जीभ के स्वाद के लिए किसी से जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। अदालत ने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया है कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं और सभी को एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाै हत्या करने वाले एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए निर्णय दिया। किसी भी समाज में िकसी पशु को चोरी करके काटते या मारने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गाय के प्रति करोड़ों भारतीय हिन्दुओं की आस्था बनी हुई है। गाय के दूध को हर लिहाज से उत्तम माना गया है। गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को लेकर बड़े आंदोलन हुए। भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा आंदोलन तो 1965 में साधुओं ने किया था। जब संतों और साधुओं ने संसद को घेर लिया था तब तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को पुलिस को गोली चलाने का आदेश देना पड़ा था और कई संतों की इस आंदोलन के दौरान मौत हो गई थी। बाद में गुलजारी लाल नंदा को इस्तीफा देना पड़ा था। गौ रक्षा की भावना और आंदोलन से जुड़े पंजाब के नामधारी सिख के कूका आंदोलन और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद के गौरक्षा आंदोलन से जुड़ी हुई है। उन्होेंने ही गौशालाएं स्थापित करने की परम्परा स्थापित की थी। आज भी गौ हत्या के प्रति लोगों के मन में काफी रोष उत्पन्न हो जाता है।यद्यपि देश के 24 राज्यों में गौवध पर रोक है। मानवीयता के दृष्टिकोण से भी गाय संरक्षण काफी महत्व रखता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार विधेयक लाकर गाय को राष्ट्रीय पशु घोिषत करे। बेहतर यही होगा कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार गाय को राष्ट्रीय पशु घोिषत कर दे तो हिन्दुओं का सपना साकार करे। संत समाज को हर भारतीय को गाय के महत्व से अवगत कराने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ना होगा। केवल कानून बनाने से ही कुछ नहीं होगा। हमें गाय आैर अन्य दुधारू पशुओं के संरक्षण को महत्व देना होगा। गाय पर सियासत की डुगडुगी बजाने की बजाय लोगों को समझाया जाए कि मां के दूध के बाद केवल गाय के दूध को ही उसका स्थापनापन्न क्यों माना गया है? किसी और दुधारू पशु के दूध में मातृत्व के पूरक अंश क्यों नहीं? जब गाय को प्रकृति ने माता का स्थान दिया है ताे माता के प्रति हम निष्ठुर कैसे हो सकते हैं।