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वायरस के नए वैरिएंट को लेकर अनिश्चितता सतत विकास के लिए प्रतिकूल हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था 2020 के कोविड लॉकडाउन से अच्छी तरह उबर चुकी है, पर अब भी कुछ क्षेत्र पिछड़े हुए हैं, इस कारण रिकवरी असमान है। 30 सितंबर को खत्म हुई वर्ष 2021-2022 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दर 8.4 फीसदी रही, जबकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 20.1 प्रतिशत का इजाफा हुआ था, लेकिन वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही के मुकाबले यह नौ प्रतिशत कम था। तिमाही आधार पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 6.6 फीसदी थी। यह कोविड की दूसरी लहर के दौरान आई गिरावट से बहुत बेहतर स्थिति को दर्शाता है। यदि हम कोविड से पहले वर्ष 2019-2020 की जीडीपी को 100 फीसदी मानें, तो पिछले डेढ़ वर्षों में जीडीपी में मात्र दो फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की यह रफ्तार व्यापक आधार पर रही है, हालांकि निजी खपत, जो जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा है और व्यापार और परिवहन क्षेत्र वित्त वर्ष 2019-2020 की चौथी तिमाही यानी कोविड से पहले के स्तरों से तीन फीसदी और नौ फीसदी नीचे है। आपूर्ति के मामले में सेवाओं और कृषि क्षेत्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया। मांग के मामले में, निजी खपत और निवेश में मामूली सुधार देखा गया। टीकाकरण में तेज गति, जिसके तहत लगभग 48 फीसदी भारतीयों को टीके की दोनों खुराक मिली, तेज होती गतिशीलता और निर्यात क्षेत्र में बेहतर रिकवरी आने वाले समय के लिए सकारात्मक संकेत हैं। कर संग्रह में मजबूती आई है, जो आर्थिक सुधार की अंतर्निहित ताकत को दर्शाती है। नवंबर 2021 में जीएसटी संग्रहण रिकॉर्ड स्तर पर 1.3 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है।
आपूर्ति क्षेत्र की कमी और बाधाओं ने, उदाहरण के लिए सेमीकंडक्टर चिप और कोयले की आपूर्ति में कमी, विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन को प्रभावित किया है। इसके अलावा, मजबूत त्योहारी मौसम के बावजूद, दिवाली के बाद के सप्ताहों में बड़े पैमाने पर उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी देखी गई। सरकार के कर और अन्य राजस्व संग्रह बजट के अनुमानों से ऊपर रहे हैं, लेकिन विनिवेश लक्ष्य को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार, इस वर्ष राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत बढ़कर लगभग सात फीसदी हो सकता है। हालांकि सरकार ने समग्र व्यय को नियंत्रित करते हुए, कमजोर वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और खाद्य सब्सिडी बढ़ाने में एक सख्त संतुलन दिखाया है। लेकिन ईंधन के उत्पाद शुल्क में कटौती से सरकारी वित्त को और नुकसान होगा।
कृषि क्षेत्र ने निरंतर मजबूत विकास दिखाया है। इसके अलावा सरकारी सहायता कार्यक्रमों ने भी ग्रामीण आबादी की मदद की है। लेकिन यह अब तक ग्रामीण खपत में उच्च वृद्धि में तब्दील नहीं हुआ है। अगर तीसरी तिमाही की बात करें, तो परिणाम ज्यादा मिश्रित हो सकते हैं। कोविड की कम संक्रमण दर, व्यापक गतिशीलता और मजबूत टीकाकरण अभियान, उत्सव के दौरान भारी बिक्री और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से विकास की गति बढ़नी चाहिए। लेकिन टिकाऊ वस्तुओं, सस्ती कारों और दोपहिया वाहन और आपूर्ति क्षेत्र की बाधाओं, जैसे चिप और कोयले की कमी, जिसने अक्तूबर में उत्पादन को बड़े पैमाने पर बाधित किया, जो अब धीरे-धीरे सहज होता जा रहा है, के कारण बड़े पैमाने पर खपत वाले क्षेत्रों में मांग में कमी के जोखिम हैं।
नतीजतन आशंका है कि खपत में गिरावट के कारण तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त रह सकती है। हालांकि सेवा क्षेत्र, निवेश और निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद है। अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकेतक भी अर्थव्यवस्था में थोड़ी सुस्ती के संकेत दे रहे हैं। आशंका है कि सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि मौजूदा 8.4 फीसदी से घटकर तीसरी तिमाही में करीब 6.6 फीसदी तक रह जाएगी। लॉकडाउन के दौरान बंद पड़ी व्यावसायिक गतिविधियों को फिर से खोलने, निर्यात और सरकारी खर्च से अगले वर्ष की शुरुआत में विकास दर को मजबूती मिल सकती है, पर कम आय वाले परिवारों के लिए आय वृद्धि में कमी के बीच, उच्च मुद्रास्फीति निजी खपत की मांग के लिए जोखिम साबित हो सकती है।
कई देशों में कोविड का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन पाए जाने की चर्चा जोर-शोर से हो रही है। हालांकि अब तक भारत में इस वैरिएंट का पता नहीं लगा है। अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध का असर अर्थव्यवस्था पर ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि सकल घरेलू उत्पादन में पर्यटन का योगदान मात्र 1.1 फीसदी ही है। लेकिन अगर डर के कारण गतिशीलता घटती है या घरेलू प्रतिबंधों को काफी हद तक सख्त किया जाता है, तो सेवा क्षेत्र के सामान्यीकरण की प्रक्रिया के लिए यह एक महत्वपूर्ण खतरा है। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाली तिमाहियों में आर्थिक सामान्यीकरण जारी रहेगा, भले ही उसकी गति कम हो।
वित्त वर्ष 2022 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.4 फीसदी साल दर साल रहने की उम्मीद है। जहां तक मुद्रास्फीति की बात है, तो आपूर्ति क्षेत्र की बाधाओं और खासकर तेल की कीमतों ने मुद्रास्फीति पर भारी दबाव बना रखा है। उच्च लागत और उच्च थोक मुद्रास्फीति के बावजूद कंपनियों ने मार्जिन (लाभ) पर चोट की और कीमतों में वृद्धि को मामूली रखा। यह महंगाई भविष्य में रिजर्व बैंक का ध्यान खींचेगी। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर वेतन में नाममात्र वृद्धि हुई है, ऐसे में लगातार उच्च मुद्रास्फीति का अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं की मांग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। यह इस जोखिम की ओर इशारा करता है कि कुल मांग में सुधार में कमी आएगी और नकारात्मक आउटपुट अंतर अनुमान से अधिक समय तक बना रह सकता है, जिससे आरबीआई की प्रतिक्रिया में देरी हो सकती है।
ओमिक्रॉन वैरिएंट नीति-निर्माताओं के समक्ष अनिश्चितता का अतिरिक्त बोझ पैदा करेगा। हालांकि, बेसलाइन अब भी उच्च मुद्रास्फीति की ओर इशारा करता है, जिसमें हेडलाइन और कोर मुद्रास्फीति आरबीआई के दो से छह फीसदी के लक्ष्य सीमा के शीर्ष पर लगभग छह फीसदी पर रहने की संभावना है। ग्रोथ को कुछ मध्यम अवधि के जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन यह चक्रीय रूप से ठीक हो रहा है। वायरस के नए वैरिएंट को लेकर अनिश्चितता सतत विकास के लिए प्रतिकूल हो सकती है।
Neha Dani
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