सम्पादकीय

कोविड खतरे की घंटियांं

Gulabi
23 Aug 2021 3:57 AM GMT
कोविड खतरे की घंटियांं
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कोविड आचार संहिता की पाजेब पहनकर फिर हिमाचल के स्कूल मौन हो गए

दिव्याहिमाचल.

कोविड आचार संहिता की पाजेब पहनकर फिर हिमाचल के स्कूल मौन हो गए। यह स्कूलों के बंद होने की प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि हर घर के माहौल में पनपती अनिश्चितता है। हर बार कोविड खतरे की घंटी स्कूल में ही बजती है, जबकि दूसरी ओर राजनीति के सेनापति अपनी-अपनी फौजों के साथ चिरपरिचित अंदाज में मोर्चे फतह करने निकले हैं। आश्चर्य यह कि जिन बहारों में विराम नहीं, वे कबूल हैं, लेकिन यहां जीवन को आगे बढ़ाने का रास्ता चाहिए, वहां अवरोध हैं। हिमाचल सरकार एक ओर स्कूलों को आगामी 28 अगस्त तक बंद कर रही है, ताकि कोविड की सख्ती बरकरार रहे, लेकिन दूसरी ओर सियासी मंसूबों की बारातें चारों ओर निकल रही हैं। पर्यटक आगमन तथा हिमाचल के बाहर प्रस्थान भी सख्त हिदायतों के दायरे में आ चुका है यानी जनता से जुड़े सवालों का निष्कर्ष कुछ और है और नेताओं के व्यवहार के विषय अलग हैं। इस दौरान स्वयं मुख्यमंत्री प्रदेश की तीन विधानसभा तथा एक संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव को नित संबोधित कर रहे हैं, तो बतौर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर 'जन आशीर्वाद यात्रा' के हर पड़ाव पर आह्लादित हैं।

स्वागत के घनघोर वातावरण में जन सैलाब की सारी उपमाएं पूरे प्रदेश की खाक छानती हैं। भीड़ जोश में है और उद्गार पूरे फेफड़े खोल रहे हैं। मीडिया के लिए राजनीतिक रैलियों में कई विश्लेषण हो सकते हैं। यह कैसा दरिया जहां एक ओर तो नेताओं की नाव चल रही है, लेकिन दूसरी ओर शिक्षा का वजूद हर बार डूब रहा है। क्या स्कूल भीड़ हैं और अध्यापक कोई नेता जो अति सुरक्षित माहौल में खलल डाल रहे हैं। राजनेताओं को खुद को दिखाना तो संभव है, लेकिन शिक्षक को पाठ समझाना असंभव है। अगर दफ्तर कोविड प्रोटोकॉल में चल सकते हैं, तो स्कूल की मिट्टी पर ही सारे खतरे क्यों रेंग रहे हंै। हिमाचल में पिछले कुछ दिनों से कोविड मामलों में हुई बढ़ोतरी तथा तीसरी लहर के अंदेशों के बीच सरकार ने कुछ कदम सही लिए हैं और जनता भी इनका समर्थन कर रही है, लेकिन यहां नागरिक व नेता के बीच विशेषाधिकारों की विभाजक रेखा चिंता पैदा करती है। स्कूलों को बंद करने मात्र से कोविड रुकेगा या राजनीतिक समारोहों के उड़ती धूल के भीतर खतरों को देख पाएंगे। प्रदेश दो तरह के टट्टुओं पर सवार है। एक वे हैं जो पर्यटकों व छात्रों को समय-समय पर खदेड़ कर कोविड आया, कोविड आया कहकर चिल्लाते हैं। दूसरे वे हैं जो अपनी पीठ पर राजनीतिक रैलियां ढो रहे हैं।


कोविड की अब तक की सूचनाओं का मर्म भी यही है कि जनता के हालात को सख्त निर्देशों की हवालात मिल सकती है, लेकिन राजनीतिक तौर तरीकों को हर्गिज मनाही नहीं। कोविड के हर चरण औैर हर लहर ने बता दिया कि सार्वजनिक व्यवहार उसी भीड़ में भ्रष्ट हुआ, जहां से नेताओं के काफिले निकले। चाहे ये स्थानीय निकायों के चुनाव रहे हों या राजनीतिक सफलताओं का प्रदर्शन, समाज में कोविड को नाचने का मौका मिला। कोविड की हर लहर में राजनीतिक लहरें गूंजी हैं और इसीलिए मौजूदा बंदिशों के बीच उपचुनावों का शोर और बतौर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का स्वागत, अपने जश्न में कोविड के पदचिन्ह भी एकत्रित कर रहा है। जनता को भीड़ बनने की आदत है। यह घरेलू-पारिवारिक समारोहों, त्योहारों या विवाह की थालियों तक के अनियंत्रित व्यवहार की सजा है। जन समूहों में उत्साहित मानसिकता के उफान पर राजनीति को जिस अवसर की तलाश रहती है, उसके विपरीत स्कूल की सीढिय़ां चढऩे के लिए छात्र मन की जिज्ञासा प्यासी रहती है। निर्णायक सरकार के कड़े फैसले का स्वागत हम स्कूलों के बंद दरवाजों के सामने करें या किसी नेता की स्वागती भीड़ का हिस्सा बनकर भूल जाएं कि यह दौर कोविड की शिनाख्त भी करेगा।
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