- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- स्वीकार का साहस
एकता कानूनगो बक्षी: साथ ही इस कार्य के लिए तत्कालीन परिस्थितियों में अपने सामर्थ्य और शक्ति को ठीक तरह स्वीकारना भी बड़ा चुनौतीपूर्ण होता है। खुद का सही आकलन करने के लिए हमें अपने आप से ईमानदार संवाद करना होता है। हमारी कमजोरियां और ताकत, जोखिम उठाने की क्षमता, उपलब्ध संसाधन, सफलता की संभावनाएं आदि पर भी विचार करना जरूरी होता है। कार्य शुरू करने के पहले ही इतनी बातें सोचने में घबराने की जरूरत नहीं है। सही मायने में किसी भी काम की शुरुआत में पहला कदम खुद की ईमानदार परख को ही माना जा सकता है।
रणनीति और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ किए गए आकलन को हम नकारात्मकता की श्रेणी में नहीं रख सकते। सही है कि जब हम किसी चीज में जरूरत से ज्यादा विचार कर रहे होते हैं तो अक्सर हम एक वैचारिक कूप में उतरते चले जाते हैं जो कभी-कभी एक अनचाहे मानसिक तनाव का कारण भी बन जाता है। पर जब हम अपनी वर्तमान स्थिति और लक्ष्य का सही दृष्टिकोण से निर्धारित बिंदुओं पर केंद्रित होकर विश्लेषण करते हैं तब हम खुद को अधिक परिपक्व और ताकतवर बना रहे होते हैं। विचार के इस बारीक अंतर को समझा जाना चाहिए।
जीवन की डोर के दो सिरे हमारे सामने होते हैं। एक सिरे पर हमारी वर्तमान अवस्था होती है और दूसरे सिरे पर हमारी वह आदर्श स्थिति होती है जिसे हम पाना चाहते हैं। इनके बीच जो जगह होती है, असल में वही हमारी संघर्ष यात्रा होती है। वह कभी प्रयत्न, प्रसन्नता और उत्साह से भर जाती है तो कभी असफलता, दुख, निराशा, हताशा और खालीपन से। हमारी वर्तमान स्थिति और आकांक्षा के बीच की दूरी जितनी कम होगी, हम उतने अधिक खुश, संतुष्ट और स्वस्थ बने रहेंगे।
वर्तमान को बेहतर तरीके से जी सकेंगे। अगर हमने बहुत दूर का लक्ष्य साध लिया है तो बीच-बीच मे निराशा, खालीपन से भी हमारा सामना होगा। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि निकटतम लक्ष्य या पड़ाव पर पहुंचने के लिए सधे हुए सार्थक कदम बढ़ाते रहें। फिर अगले की तैयारी करें। हमारा जीवन असल में इन्ही छोटे-छोटे अनुभवों, प्रयासों, संघर्षों से गुजर कर बनता है। एक लंबी यात्रा संभव होती है, एक बड़ा लक्ष्य हासिल होता है।
अपने मकसद की ओर पहला कदम बढ़ाने से पहले यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि हमारा हर कदम सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहे, न कि निराशा से। खुद को जानने-समझने और स्वीकार करने को लेकर हमेशा उदासीन रवैया देखा गया है। अपनी वर्तमान स्थिति को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेने का अर्थ यह कभी नहीं है कि हम लाचार हैं या निराश हो जाएंगे। वास्तविकता को स्वीकार करना हमें नई शुरुआत, एक बिल्कुल अनोखी और रोमांचक यात्रा पर ले जाने का सहज तरीका होता है।
सत्य को स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए! इस तरह से आगे बढ़ना कई बार हमें उम्मीदों से भी अधिक आगे ले जाकर खड़ा कर देता है। हम अपनी क्षमता को देख चकित रह जाते हैं। यही कारण है जहां अभाव होता है, वहां तुलनात्मक रूप से ज्यादा संभावनाएं, प्रतिभाएं निकलती रही हैं। जब कोई विकल्प ही नहीं है हमारे पास, तो फिर नया रास्ता तो खुद बनाना ही पड़ेगा। जितनी जल्दी हम अपने आपको ठीक से स्वीकार कर सकेंगे, उतनी ही अधिक ऊर्जा हम सही दिशा में लगा सकेंगे।
अपनी वर्तमान स्थिति से बेहतर होने के लिए सबसे पहले ईमानदारी, साहस और सही नजरिए के साथ अपनी कमजोरियों से पार पाना होगा। अब तक हमारी जो कमजोर नस रही, उसे नजरअंदाज करने, उससे आंख चुराने और निराश हो जाने की जगह उसे अपना हिस्सा समझना होगा। अपनी कमियों, अपने अभावों के साथ मजबूती से आगे बढ़ना होगा। हो सकता है कि खामियों की एक लंबी सूची तैयार हो जाए।
उदाहरण के लिए, आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर अभी यह कार्य संभव नहीं हो सकता। अस्वस्थ होने की वजह से यात्रा नहीं की जा सकती। अपनों से स्नेह की जगह उपेक्षाएं ही मिली हैं… उम्र गुजर गई है, कुछ लक्ष्य अधूरे रह गए… वगैरह। हमें इन सबको स्वीकार करना चाहिए। एक पल के लिए भी स्थितियों को दोष नहीं देना चाहिए। न ही खुद को इन हालात के लिए जिम्मेदार मानकर हतोत्साहित होना चाहिए। बस अब यहां से हमें नई शुरुआत करनी है, नई ऊर्जा के साथ, छोटे-बड़े कदमों के साथ।
सच्चाई को स्वीकार करना करिश्मा कर देता है। जैसे ही हम हमारी स्थिति को परिपक्वता के साथ स्वीकारते हैं, मन हल्का हो जाता है। अनावश्यक उम्मीदों, अपेक्षाओं, ग्लानि से खुद को मुक्त कर लेते हैं। नए रास्ते नजर आने लगते हैं। जीवन के आकाश में खुशियों का इंद्रधनुष हमारा स्वागत करता एक छोर से दूसरे छोर तक मुस्कुराहट बिखेरने लगता है!