सम्पादकीय

देश की असल समस्या

Gulabi
19 May 2021 4:54 PM GMT
देश की असल समस्या
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भारतीय अर्थव्यवस्था की जड़ें कोरोना महामारी आने के पहले ही कमजोर हो चुकी थी

हैरतअंगेज है कि ऐसे त्रासद मौके पर सरकारी पक्ष और सरकारी माध्यम असीमित सकारात्मक भावना की बात कर रहे हैं। गौर करें, तो देश की असल समस्या यही है। सच छिपाने के लिए हेडलाइन मैनेज करने की वर्तमान सरकार की प्रवृत्ति ही हमें आज मुकाम तक ले आई है।


भारतीय अर्थव्यवस्था की जड़ें कोरोना महामारी आने के पहले ही कमजोर हो चुकी थी। पिछले महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। क्या असर हुआ, इसे अलग-अलग क्षेत्रों में जो हुआ उससे समझा जा सकता है। देश का मध्य वर्ग एक तिहाई सिकुड़ गया। 23 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे वापस चले गए। जिन महिला कर्मियों का रोजगार छूटा, उनमें से ज्यादातर आज तक वापस नहीं आ सकी हैं। इन सबका उपभोग और मांग पर जो असर हुआ, वह हम सबके सामने है। उसके बाद अब आई महामारी की दूसरी लहर कहां तक नुकसान पहुंचाएगी, इसका अभी अंदाजा ही लगाया जा सकता है। लेकिन अनुमान लगाने की ऐसी हर कोशिश सिहरन पैदा करती है। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने उचित ही कहा है कि स्वतंत्रता के बाद कोविड-19 महामारी देश की शायद सबसे बड़ी चुनौती है। ये चुनौती इस कारण और गंभीर हो गई है क्योंकि सरकार लोगों की मदद के लिए मौजूद नहीं है। जबकि भारत को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्रों को संभालने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है।


गौरतलब है कि ये बात लगातार कही जा रही है। लेकिन यह सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है। उसका ध्यान अभी सप्लाई साइड में पहल करने से नहीं हटा। तो जब सरकार ने मांग बढ़ाने की जरूरत ही नहीं समझी है, तो फिर इसमें सुधार आखिर कैसे होगा। राजन ने कहा है कि जब महामारी पहली बार आई, तो लॉकडाउन की वजह से चुनौती मुख्य रूप से आर्थिक थी। लेकिन अब चुनौती आर्थिक और व्यक्तिगत दोनों ही है। इसमें एक सामाजिक तत्व भी शामिल है। उन्होंने यह बिल्कुल ठीक कहा कि महामारी के बाद अगर हम समाज के बारे में गंभीरता से सवाल नहीं उठाते हैं, तो यह त्रासदी और बड़ी हो जाएगी। असल में जरूरत पहले सच को स्वीकार करने की है। लेकिन जब वैक्सीन विदेश क्यों भेजा जैसे साधारण सवाल उठाने वालों को जेल भेजा जा रहा हो, तो फिर बोलने की आजादी या सच के मुताबिक कदम उठाने की बात कहां मौजूं रह जाती है। हैरतअंगेज है कि ऐसे मौके पर सरकारी पक्ष और सरकारी माध्यम असीमित सकारात्मक भावना की बात कर रहे हैं। गौर करें, तो देश की असल समस्या यही है। सच छिपाने के लिए हेडलाइन मैनेज करने की वर्तमान सरकार की प्रवृत्ति ही हमें आज मुकाम तक ले आई है।

क्रेडिट बाय नया इंडिया

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