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- सदन के भीतर देश
बंदर डाल-डाल उत्पात कर रहा था। पहले वह जंगल में रहता था तो कम से कम वहां की व्यवस्था के अनुरूप था, लेकिन जब से इनसानों की बस्ती में आ गया है, उसे अब रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है। वह आजाद भारत का बंदर है, इसलिए सोचता है कि भारतीय संसाधनों से उत्पात कर सकता है। बंदर को अब समझ आ चुका था कि उसने खामख्वाह जंगल में कुछ साल बर्बाद किए, वरना इधर इनसानों के साथ रहते हुए अब तक अधिकार संपन्न हो जाता। खैर आज वह उछल-कूद करते हुए विधानसभा परिसर के गेट पर चढ़ गया। नीचे उसे सब कुछ नजर आ रहा था कि कैसे लोकतंत्र काम करता है। लोग हर तरह का शोर मचाते हुए देश का नाम ऊंचा कर रहे थे। वहां कोने में खड़ा देश बिल्कुल फकीर सा दिखाई दे रहा था, बिल्कुल खामोश सा। आश्चर्य यह कि अब देश केवल बंदर को ही नजर आ रहा था, वरना कोई तो इनसान उसे पहचान पाता। विधानसभा सत्र के हर दिन बंदर गेट पर इसलिए चढ़ता कि क्योंकि वहां से उसे यह तजुर्बा होने लगा कि आजादी के अर्थों में कैसे जिया जाए, दूसरे वह देश का मुरीद हो गया। उसे कई मदारी पकड़ने की कोशिश में रहे, लेकिन कोई पसंद नहीं आया।