सम्पादकीय

देश को आप पर शक

Rani Sahu
6 March 2022 6:59 PM GMT
देश को आप पर शक
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देश को पूरी तरह से बदलने का फैसला हो चुका था

देश को पूरी तरह से बदलने का फैसला हो चुका था। आजादी के बाद पैदा हुई सारी गंदगी मिटाने के लिए सभी एकजुट थे और उत्साहित सरकार उन सभी को ढूंढ रही थी जिनके कारण भारत खराब नज़र आता है। वे तमाम लोग पकड़े जा रहे थे जिनके कारण नालियां और गलियां गंदी नज़र आती हैं। जिनके घर बिजली नहीं या नल में पानी गंदा था। दरअसल अब सरकार ने पुराने बहाने बदलते हुए खराब देश के मुहाने बदलने शुरू किए थे, वे भी पकड़े जा रहे थे। देश को चकाचक बनाने की पहले भी कोशिशें हुईं, पर इसके लिए कभी गंदगी के ऊपर दीवारें लगाई गईं या कभी होर्डिंग ऊंचे किए गए। अब तौर तरीका बदलते हुए देश की खराबियों के लिए जिम्मेदार गंदे लोग चिन्हित किए जा रहे हैं। यानी अब जहां भी लगेगा कि देश ठीक नहीं है, वहां के लोग पकड़े जाएंगे। लोगों में पहली बार यह भय पैदा हुआ कि देश सुधारने के लिए कहीं उनके भीतर की कोई त्रुटि सामने न आ जाए। हमारे मोहल्ले की पानी आपूर्ति ने हमें फंसा दिया।

वर्षों से जिस पानी को पी-पी कर कोसते थे, आज उसी ने हमें फंसा दिया। दरअसल नगर निगम का पानी निहायत घटिया था और उसे पीकर पूरा मोहल्ला अस्पताल पहुंच गया था। अस्पताल जलापूर्ति से भी अधिक निकम्मा था, अतः वहां देश को शर्मिंदा होने से बचाने की बात होने लगी। अंततः हमारा पूरा मोहल्ला पकड़ा गया, क्योंकि देश को लग रहा था कि हमारे कारण सब कुछ खराब नज़र आ रहा है। हमारे जैसे कई लोग, कई मोहल्ले व कई शहर पकड़ में आ चुके थे, कोई पानी के लिए, तो कोई बिजली के लिए। देश में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति के लिए भी हम सभी दोषी पाए गए। अब हमारी जैसी जनता केवल फरियादी बनकर ही देश बचा सकती थी। देश की खराबियों पर जांच चल रही थी। एक से बढ़कर एक खराब लोग चिन्हित हो रहे थे। वहां पुस्तक विक्रेता पकड़ा गया, क्योंकि देश की गंदगी उसकी किताबों में नज़र आई। कुछ लेखक इसलिए पकड़े गए क्योंकि उन्होंने ही देश पर लिखा था। देश का शक बढ़ रहा था और बढ़ते-बढ़ते खेत-खलिहान तक पहुंच गया। पहली बार मालूम हुआ कि किसान के कारण भी देश खराब हो सकता है। अगर वह अधिक न उगाए तो अलग बात है, लेकिन जहां कहीं अधिक पैदावार करता है, वहीं इसे सड़कों पर फेंक देता है।
इसके कारण ही गेहूं गोदामों में सड़कर बदबू फैलाता है, लिहाजा चुन-चुन कर किसान पकड़े गए। किसी ने पूछा क्या पान विक्रेता भी पकड़े जाएंगे। जवाब मिला, 'एक पान ही तो है जिसे चबाकर भी नेता कभी खराब नहीं लगता। गंदगी और रंग में फर्क इसलिए भी है कि देश का रंग नेता के संग होता है, जबकि गंदगी में बदरंग आम नागरिक होता है। हम जनता तो अब होली के रंग में भी बदरंग नज़र आती है।' जांच के दायरे बढ़ते गए और देश हर जगह खराब नज़र आने लगा। आखिर में हमसे भी पूछा गया कि देश के लिए कुछ अच्छा किया है तो बच जाओगे। हमारे बीच से जितने लोगों ने कहा कि वे मुफ्त का राशन खा रहे हैं और वर्षों से गरीबी रेखा से ऊपर उठने की हिमाकत नहीं कर रहे, बच गए। देश को विश्वास हो चुका था कि उसे अगर अच्छा दिखना है तो कुछ लोगों को गरीबी रेखा के नीचे छुपाना होगा। मुफ्त का राशन खाकर कौन गंदगी फैला पाएगा। मुफ्त का राशन खाने वाला कभी देश को खराब नहीं कर पाएगा। अब फैसला हो चुका था कि देश की इज्जत की खातिर अधिक से अधिक लोगों को मुफ्त में खाने की आदत डाली जाए। गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहा देश ही वास्तव में असली देश है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu

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