सम्पादकीय

करदाताओं का देश : अर्थव्यवस्था और निचले पायदान के लोगों की दुर्दशा, जीएसटी संग्रह के बढ़ते स्रोत

Neha Dani
26 July 2022 1:46 AM GMT
करदाताओं का देश : अर्थव्यवस्था और निचले पायदान के लोगों की दुर्दशा, जीएसटी संग्रह के बढ़ते स्रोत
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उसे पता होना चाहिए कि वह भी सरकार के राजस्व में योगदान दे रहा है।

हाल ही में एक ड्राइवर से मेरी दिलचस्प बातचीत हुई। राम सिंह एक ड्राइवर है, जिसकी सेवाएं मैं समय-समय पर लेता रहता हूं, खासकर गर्मियों में, जब खुद ड्राइविंग करने का मेरा मन नहीं करता। वह बातूनी है, जो अर्थव्यवस्था के निचले पायदान पर रहने वाले लोगों की दुर्दशा और जमीनी स्तर के रूझानों की सटीक जानकारी के लिए व्यावहारिक साबित होता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि वह सूचनाओं का भंडार है-जो फिल्मों, फिल्मी सितारों, राजनेताओं, वैश्विक नेताओं, खेल, स्वास्थ्य सेवा, मौसम और ऐसी हर चीज के बारे में जानता है, जिसके बारे में कोई सोच सकता है।




इस बार वह अमीरों के जीएसटी के बोझ से दबे होने और खुद के उससे बचे होने को लेकर खुश था, क्योंकि वह सिर्फ नकद में कारोबार करता था, यहां तक कि वह लोगों से अपना मेहनताना भी नकद में लेता था। मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने उससे पूछा कि क्या उसे सिर्फ नकद में भुगतान किया जाता है, इसलिए उसे लगता है कि वह कर नहीं चुका रहा है? उसने कहा, केवल वही पैसा कर के दायरे में आता है, जिसका भुगतान बैंकों के जरिये होता है।


उसका यह सरल विश्वास इस तर्क से उपजा था कि चूंकि उसकी कोई नियमित आय नहीं है, इसलिए उसे कोई कर नहीं चुकाना पड़ता। नोएडा में एक बैठक के बाद वापस पश्चिमी दिल्ली स्थित अपने घर जाते हुए पूरे रास्ते भर मुझे उसे समझाना पड़ा कि करदाता न होने की उसकी धारणा गलत है और वह भी कर चुकाता है। 140 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में 1.5 करोड़ से कुछ अधिक आयकर दाताओं का होना बेशक निराशाजनक है।

आधिकारिक तौर पर वित्तमंत्री ने संसद में कहा है कि वर्ष 2019-20 में दर्ज किए गए व्यक्तिगत और कॉरपोरेट सहित सिर्फ आठ करोड़ से अधिक करदाता हैं। ऐसे में यह कहना आसान है कि देश में बहुत कम लोग कर चुकाते हैं, लेकिन यह लोगों की नौकरियों से संबंधित है, खासकर जब एक वर्ष में पांच लाख रुपये तक की आय आयकर से मुक्त होती है। जब मैंने राम सिंह से पूछा कि क्या उसने कपड़े और किराने का सामान खरीदा है, फोन रिचार्ज करवाया है, सिनेमा हॉल में फिल्म देखने के लिए टिकट खरीदा है या इंटरनेट पैक जैसी चीजें ली हैं?

इस पर उसने सहमति जताई। उसने यह भी बताया कि उसने एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी है, जिसे वह और उसका बेटा जरूरत के हिसाब से चलाता है। मैंने उससे पूछा कि क्या उसे पता है कि पेट्रोल पर भी टैक्स लगता है, जिसका भुगतान उसे मोटरसाइकिल चलाते वक्त करना पड़ता है? फोन रिचार्ज कराते वक्त भी कर का भुगतान करना पड़ता है, और जब भी उसने किसी दुकान से कोई सामान खरीदा है, तो उसे जीएसटी का भुगतान करना पड़ा है। यह सुनकर अचानक वह चुप हो गया।

औसत मासिक जीएसटी संग्रह 1.5 लाख करोड़ रुपये के करीब है और वर्ष 2021-22 में पेट्रोल और डीजल की बिक्री से कुल कर संग्रह तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक था। इसलिए यह धारणा गलत है कि हर कोई कर का भुगतान नहीं करता या सरकार के खजाने में योगदान नहीं करता। यह दरअसल एक कल्पना है। और इसलिए सरकार में बैठे लोगों द्वारा देश में करदाताओं की कम संख्या की बार-बार चर्चा करना भी उतना ही गलत है।

असंगठित क्षेत्र में भारी रोजगार, उद्यमियों और अल्पकालिक व्यवसायों को देखते हुए सीधे आयकर के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भले कम हो सकती है, लेकिन आयकर कर संग्रह का एकमात्र स्रोत नहीं है। नागरिक अन्य तरीकों से भी सरकार को कर चुकाते हैं। सरकार की आय के मुख्य स्रोत जीएसटी और आयकर हैं। इन दोनों तरीकों से सरकार को कुल कर संग्रह का लगभग 90 फीसदी हिस्सा मिलता है, जो 27.07 लाख करोड़ रुपये था।

स्वाभाविक रूप से सभी नागरिक किसी न किसी तरह से सरकारी आय में योगदान करते हैं। इस धारणा का प्रचार करना, कि केवल आयकरदाता ही कर का भुगतान करते हैं, पूरी तरह से गलत है। दरअसल, जीएसटी सूची के तहत आने वाली किसी भी चीज का उपभोग करने वाला हर नागरिक टैक्स चुका रहा है। इसलिए, करों का भुगतान अब केवल अमीरों या आयकरदाताओं तक सीमित नहीं है।

यह एक अलग मुद्दा है कि अधिकांश नागरिकों द्वारा करों का भुगतान करने और सरकार के राजस्व संग्रह में योगदान देने के बावजूद सरकार से प्राप्त होने वाली सेवाओं की गुणवत्ता के बारे में बात करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। जन वितरण प्रणाली (पीडीएस), सब्सिडी वाली रसोई गैस, सरकारी संस्थानों में शिक्षा में रियायत या अस्पतालों में किसी भी मानक का परीक्षण नहीं किया जाता है।

इसके अलावा, सरकारी आय में योगदान करने वाले लोगों के कल्याण के लिए एकत्रित राजस्व का उपयोग कैसे किया जाता है, इसे तय करने में लोगों की कोई जवाबदेही या भागीदारी नहीं है। जिस दिन आबादी के एक बड़े हिस्से को करों के माध्यम से राजकोष में अपने योगदान का एहसास होगा, उस दिन उन्हें महसूस होगा कि करों का भुगतान करने के लिए आयकर के दायरे में आना जरूरी नहीं है। आयकर तो सरकारी राजस्व का सिर्फ एक स्रोत है।

वास्तव में, कर दाखिल करने वालों में से बहुत कम लोग आयकर देते हैं, शेष के पास करों का भुगतान करने के लिए पर्याप्त आय नहीं होती। लेकिन, अप्रत्यक्ष कर चुकाने वालों के साथ यह बात लागू नहीं होती, क्योंकि लोग हर उस लेन-देन में कर चुकाते हैं, जहां जीएसटी लागू होता है। जीएसटी व्यवस्था के तहत बढ़ते जीएसटी संग्रह और वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती सूची का मतलब है कि नागरिकों से अधिक अप्रत्यक्ष कर जुटाया जाएगा।

जहां तक आयकरदाताओं का सवाल है, तो उन्हें कोई राहत नहीं है-वे पहले अपनी कमाई पर कर का भुगतान करते हैं और फिर अपने द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर कर का भुगतान करते हैं। जब तक राम सिंह ने मुझे घर छोड़ा, न केवल गर्मी बढ़ गई थी, बल्कि वह यह जानकर चुप हो गया था कि वह कितना गलत सोचता था कि केवल अमीर लोग ही कर चुकाते हैं। इसलिए, जो भी व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग कर रहा है और उसके बदले जीएसटी का भुगतान कर रहा है, उसे पता होना चाहिए कि वह भी सरकार के राजस्व में योगदान दे रहा है।

सोर्स: अमर उजाला


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