सम्पादकीय

देश का पोटलीवाला

Gulabi Jagat
28 March 2022 5:33 AM GMT
देश का पोटलीवाला
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वह हर दिन अपनी पुरानी पोटली खोलता और बड़े अदब से उसके भीतर की सामग्री को वापस सहेज कर वहीं रख देता है
वह हर दिन अपनी पुरानी पोटली खोलता और बड़े अदब से उसके भीतर की सामग्री को वापस सहेज कर वहीं रख देता है। उसका वंश राजाओं के समय से आज तक एक जैसी स्थिति में है और इसीलिए भीख में मिले हर सदी के सिक्के उसकी पोटली में हैं। ये सिक्के खोटे हैं, लेकिन ऐतिहासिक हैं। कई बार इस भिखारी से उनका इतिहास चुराने की कोशिश भी हुई, मगर बाजार में इतिहास न चलता और न ही बिकता है, लिहाजा हर बार गरीब के सिक्के लौट आते हैं। उसके ऊपर इन सिक्कों का कर्ज है जिसे इसी की तरह हर सदी में इसके बुजुर्गों ने लगातार चुकाया है। वह भी अपनी मेहनत-मजदूरी से हासिल कुछ सिक्के पुराने सिक्कों के बीच जोड़ देता है, ताकि आने वाली पीढि़यां कहीं यह न सोचें कि बुजुर्गों ने कुछ किया ही नहीं। अचानक देश जब अतीत को खोजने लगा, तो प्रशासन का शक उस पर गया। सभी अधिकारियों को लग रहा था कि हो न हो, देश का अतीत इसकी पोटली में है। कुछ हद तक उनका संदेह सही भी था, क्योंकि एक वही था जो सदा अतीत में था। अतीत में रहने की वजह से हम आज और आने वाले कल के भय से मुक्त हो जाते हैं, बल्कि सारे भय को अतीत से जोड़ पाते हैं। बेचारा पोटलीवाला भी इसलिए पकड़ा गया, क्योंकि देश को इसकी पोटली से ही कहीं अधिक भय है। वह किसी भी समय यह बता सकता है कि अपने देश में कब-कब किसके सिक्के चले।
एक वही है जो प्रमाणित तौर पर यह कह सकता है कि हर चलते सिक्के को एक न एक दिन खोटा साबित होना है। देश की खातिर पहली बार तमाम खोटे सिक्के पहचाने जा रहे थे ताकि आइंदा कोई यह न कह सके कि हम कभी ऐसे सिक्कों पर चले थे। बात यहां तक नहीं रुकी, बल्कि अब तो सरकारी फाइल यह मांग करने लगी कि खोटे लोगों को भी देश से हटाया जाए। देश के लिए खोटा कौन, इस पर खूब बहस चली। देश चलाने वालों के पास यह अधिकार आजादी से ही रहा है कि जो उनके सामने न चलें, उन्हें खोटा करार दिया जाए। देश में खोटे सिक्के लगातार बढ़ रहे हैं, इसलिए अब सरकार का नैतिक धर्म है कि इन्हें भी बाजार में चलाए। यह तरीका आसान मालूम हुआ कि खोटे लोगों को चलाया जाए और इसके लिए चिन्हित लोगों के गले में घंटियां और आंखों पर चश्मे चढ़ाए गए। पोटलीवाला अभी भी न घंटी बजा रहा था और न ही चश्मे से झांकने का प्रयास कर पा रहा था। उसे सत्ता की प्रयोगशाला में भेजने का हुक्म हुआ।
वह पहला भारतीय था जिसे अपने साथ जोड़ने का इतना प्रयास हो रहा था, वरना देश में चलने के लिए तो हर शख्स अब सिर्फ घंटी ही बजा रहा है। गहन जांच में पाया गया कि पोटलीवाले के पास अतीत की इतनी घंटियां हैं कि वह यह फैसला नहीं कर पा रहा कि उसे स्वतंत्रता पूर्व की घंटी सुननी है या वर्तमान दौर की बजानी है। इसी के साथ उसकी पोटली में पहली बार हर युग की फाइलें मिल रही थीं। ये देश की फाइलें थीं जो कभी अंग्रेजों से लड़ी थीं। उसकी पोटली से महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, बिस्मिल, तिलक, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तथा अनेक ऐसे लोगों की फाइलें निकल रही थीं। मामला गंभीर होते देख उससे उसके पास संपत्ति के तौर पर बची पोटली भी छीन ली जाती है। बदले में उसे राष्ट्रहित के लिए नई पोटली में चंद फाइलें, घंटियां और चश्मे दिए जाते हैं। वह अब अतीत के बोझ से मुक्त हो चुका था। उसके गले में बंधी घंटी बज रही थी तथा नए चश्मे से वह साफ-साफ देख रहा था कि सामने हर राज्य की फाइल उपलब्ध थी। वह अपनी पोटली में इन सबके साथ 'कश्मीर फाइल' को सजा देता है। उसके चारों ओर घंटियां बज रही थीं। वह पुरानी पोटली से बचाकर रखी एकमात्र मोमबत्ती जलाकर, चश्मे के साथ जो देख सकता था, उसे अब राष्ट्र का प्रकाश मान रहा था।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
Gulabi Jagat

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