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उद्योगपतियों के द्वारा समन्वित व संगठित रूप से काम किया जाए।
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इस समय भारत दुनिया के कई देशों-ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) आदि के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को तेजी से अंजाम देने की ओर बढ़ रहा है। ये ऐसे देश हैं, जिन्हें भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत है, और ये देश बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हैं।
इससे घरेलू सामान की पहुंच एक बहुत बड़े बाजार तक हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि पिछले एक दशक के बाद भारत बड़े एफटीए पर हस्ताक्षर की ओर आगे बढ़ रहा है। भारत ने अपना पिछला व्यापार समझौता प्रमुख रूप से वर्ष 2011 में मलयेशिया के साथ किया था। उसके बाद विगत 22 फरवरी, 2021 को मॉरीशस के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए पर हस्ताक्षर हुए हैं।
इस समझौते के तहत भारत के कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और विभिन्न क्षेत्रों के 300 से अधिक घरेलू सामान को मॉरीशस में रियायती सीमा शुल्क पर बाजार में प्रवेश मिल सकेगा। समझौते के तहत मॉरीशस की 615 तरह की वस्तुओं/उत्पादों के आयात पर भारत में शुल्क कम या नहीं लगेगा। इनमें फ्रोजन मछली, बीयर, मदिरा, साबुन, थैले, चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा उपकरण और परिधान शामिल हैं।
वस्तुतः हाल के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हुई हैं, उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते गए हैं। इस समय दुनिया भर में लागू एफटीए की संख्या 300 के पार हो चुकी है। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है।
एफटीए ऐसे समझौते हैं, जिनमें दो या दो से ज्यादा देश वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि संबंधी प्रावधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के तेजी से बढ़ने के पीछे वजह यह है कि ये मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते हैं, यानी अगर बाद में किसी खास कारोबारी मुद्दे पर कोई समस्या होती है, तो उसे दूर करने का विकल्प खुला होता है।
पिछले वर्ष 15 नवंबर, 2020 को दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते-रीजनल कांप्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद जो मूर्त रूप लिया है, भारत उस समझौते में शामिल नहीं हुआ है। इस बार फिर 28 अक्तूबर को आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में आसियान सदस्यों के साथ वार्ताओं में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्वरूप में भारत आरसीईपी का सदस्य होने को इच्छुक नहीं है।
आरसीईपी समझौते में अब तक भारत की चिंताओं का निदान नहीं किया गया है। ऐसे में आरसीईपी से दूरी बनाने के बाद सरकार एफटीए को लेकर नई सोच के साथ आगे बढ़ी है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 30 और 31 अक्तूबर को जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान जी-20 के विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों के साथ की गई प्रभावी बातचीत के बाद सरकार यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, यूएई और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के लिए तेजी से आगे ब़ढ़ते हुए दिखाई दे रही है।
निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के मद्देनजर एफटीए भारत के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, लेकिन अब एफटीए का मसौदा बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि एफटीए वाले देशों में कठिन प्रतिस्पर्धा के बीच कारोबारी कदम आगे कैसे बढ़ाए जाएं? विकसित देशों के साथ एफटीए में भारत के वार्ताकारों को डेटा संरक्षण नियम, ई-कॉमर्स, बौद्धिक संपदा तथा पर्यावरण जैसे नई पीढ़ी के कारोबारी मसलों को ध्यान में रखना होगा।
हमें ध्यान में रखना होगा कि एफटीए का दूसरे अंतरराष्ट्रीय समझौते से बेहतर समन्वय किया जाए। एफटीए का लाभ उपयुक्त रूप से लेने के लिए जरूरी होगा कि सीमा शुल्क अधिकारियों, संबंधित विशेषज्ञ पेशेवरों और उद्योगपतियों के द्वारा समन्वित व संगठित रूप से काम किया जाए।
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