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सम्पादकीय
भर्ती में भ्रष्ट्राचार : बंगाल में बदहाल शिक्षा, घोटाले में घिरे मंत्री और युवाओं के चकनाचूर होते सपने
Rounak Dey
9 Aug 2022 2:36 AM GMT

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उन्हें शिक्षा व्यवस्था को सुधारने पर भी ध्यान देना चाहिए, जिस पर कभी भारत ही नहीं, पूरी दुनिया गर्व करती थी।
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले के मुख्य आरोपी और पूर्व शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) बार-बार पूछ रहा है कि 50 करोड़ रुपये, गहने और जमीन-फ्लैट किसके हैं, लेकिन पार्थ बार-बार यही कहते हैं कि उनके खिलाफ षड्यंत्र किया गया है। ईडी पुलिस नहीं है, जो डंडे के जोर से सच उगलवा ले। लेकिन इस बीच शुभ्रा घोरुई नामक एक दुखियारी मां ने पार्थ पर चप्पल फेंककर अपना आक्रोश जताया, हालांकि चप्पल पार्थ को लगी नहीं।
वह अपनी बेटी को बीएससी नर्सिंग कराना चाहती हैं। बेशक उनके इस व्यवहार को जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन जनता के बढ़ते आक्रोश को देखा जा सकता है। भ्रष्टाचार की इस कथा में सबसे प्रमुख करुण रस है, जिसमें राज्य के मेधावी बेरोजगार युवाओं के चकनाचूर हुए सपने हैं, जो गांधी प्रतिमा के पास पिछले 508 दिनों से अनशन कर रहे हैं। अब घोटाले की कड़ियां एक-एक कर खुल रही हैं। पार्थ चटर्जी के मुताबिक, वह अपने दल के कई नेताओं के कहने पर भर्तियां करवाते थे।
अभी की सूचनाएं ईडी सूत्रों के हवाले से हैं, पर अदालत में वह क्या बयान देते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। पार्थ और अर्पिता मिलकर आठ फर्जी कंपनियां चलाते थे। इनके खाते ईडी ने फ्रीज करवा दिए हैं, जिनमें आठ करोड़ रुपये जमा हैं। पार्थ की बेटी सोहिनी की, जो अमेरिका में रहती हैं, दक्षिण 24 परगना के पुरी गांव के बागान बाड़ी स्थित घर में 28 जुलाई की रात को चोर ताला तोड़कर घुसे और बस्तों में सामान भरकर ले गए। इस बारे में दो तरह की चर्चा है।
एक तो यह कि, क्या इस घर से ईडी की नजर में गैरकानूनी लगने वाले दस्तावेज हटा लिए गए। और दूसरा यह कि क्या चोरों ने करोड़पति बनने के लोभ में ऐसा किया। उस समय तक मंत्री रहे पार्थ की बेटी के घर में चोरी हो जाए, यह कोई मानने को तैयार नहीं। और फिर पांच दिन बीत जाने के बाद भी उन चोरों का पुलिस की पकड़ में न आना रहस्यजनक है। पार्थ और अर्पिता के संबंधों पर उसके ड्राइवर ने ही रोशनी डाली है। दोनों के नाम से जमीन और फ्लैट के कागजात मिले हैं।
पार्थ की एक और महिला मित्र मोनालिसा के नाम पर 10 फ्लैट बताए जाते हैं। घोटाले के प्रकाश में आने के बाद वह अपने विश्वविद्यालय से छुट्टी लेकर बांग्लादेश चली गई हैं। वह भी ईडी के रडार पर हैं। अर्पिता ने मॉडलिंग और फिल्मों में भी किस्मत आजमाई, लेकिन कुछ खास कामयाबी नहीं मिली। फिर जब ममता सरकार में मंत्री पार्थ चटर्जी से संपर्क हुआ, तो वह जैसे आसमान में उड़ने लगीं। समृद्धि ने जैसे उनके विवेक पर पर्दा डाल दिया और वह महज एक कठपुतली बन गईं।
जो लोग इस घोटाले में ममता पर उंगली उठा रहे हैं, उनकी जुबान खींच ली जा सकती है-दीदी ने हाल ही में यह चेतावनी दी है। अपर प्राइमरी शिक्षक की नौकरी के लिए आंदोलन कर रहे युवाओं से हाल में सांसद अभिषेक बनर्जी ने मुलाकात की और उनकी जल्द बहाली का आश्वासन दिया। ममता बनर्जी के भतीजे सरकार में नहीं हैं, पर शिक्षा मंत्री व्रात्य बसु को बगल में बिठाकर उन्होंने न जाने किस हैसियत से उन युवाओं को आश्वासन दिया! साफ है कि ममता ने अपने भतीजे अभिषेक को उत्तराधिकारी बनाने की पहल शुरू कर दी है।
इस बीच एक और मामला हो गया। बर्दवान विश्वविद्यालय में एम.फिल. और पीएच.डी. की परीक्षा बिना एडमिट कार्ड के हो रही थी। इसका पता चलते ही बांग्ला पीएच.डी. की परीक्षा स्थगित कर दी गई। उपाचार्य ने जांच के लिए एक कमेटी बनाई है। सारांश यही है कि दीदी के सोनार बांग्ला में किलो-किलो सोने की खनक और पहली कक्षा से लेकर पीएच.डी. तक में नोटों का खेला जारी है। इस तरह, बंगाल की एक पूरी पीढ़ी का भविष्य अंधेरी गुफा में समाता जा रहा है। ममता बनर्जी बंगाल की हर महिला को महीने में पांच सौ और हजार रुपये देती हैं, मगर उन्हें शिक्षा व्यवस्था को सुधारने पर भी ध्यान देना चाहिए, जिस पर कभी भारत ही नहीं, पूरी दुनिया गर्व करती थी।
सोर्स: अमर उजाला
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