सम्पादकीय

भ्रष्टाचार और समाज की मानसिकता: आखिर कितना ऊपर ले जाएगी ये 'ऊपरी' कमाई?

Gulabi Jagat
26 March 2022 10:44 AM GMT
भ्रष्टाचार और समाज की मानसिकता: आखिर कितना ऊपर ले जाएगी ये ऊपरी कमाई?
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जनता को रिश्वत मांगने वालों की वीडियो रिकॉर्डिंग करने और सीधे सीएम को व्हाट्सएप करने की व्यवस्था की बात भी कही गई है
स्वाति शैवाल।
हाल ही में पंजाब जीतने के बाद नए-नए मुख्यमंत्री बने भगवंत मान जी ने एक घोषणा की। उन्होंने स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है और कहा है कि उनकी सरकार का खास प्रयास होगा, इस समस्या का समाधान। इसके लिए बाकायदा जनता को रिश्वत मांगने वालों की वीडियो रिकॉर्डिंग करने और सीधे सीएम को व्हाट्सएप करने की व्यवस्था की बात भी कही गई है।
दरअसल, अगर ये व्यवस्था सच मे इतने ही प्रभावपूर्ण तरीके से संचालित होगी तो वाकई 'आप' अपने वादे पर खरी उतरेगी और दूसरे राज्यों को भी इससे सीख लेना होगा।
बहरहाल, अभी तो रोज खबरों में कम से कम 2 किस्से रिश्वतखोरों के पकड़े जाने के होते हैं। 500 रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक कि रिश्वत और एक कॉन्स्टेबल से लेकर संस्थान के निदेशक तक की रिश्वतखोरी सामने आती है।
मतलब कोई भी वर्ग और क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। कुछ ही दिन पहले सीबीआई ने गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) के निदेशक रंगनाथन को 50 लाख से अधिक की रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था। यह एक उदाहरण भर है।
इधर, करीब 2 साल पहले ग्लोबल सिविल सोसायटी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट- ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर-एशिया में यह सामने आया था कि रिश्वतखोरी की दर भारत में सबसे आगे (39 प्रतिशत) है।
वहीं रिश्वतखोरी के मामलों का आंकलन करने वाली संस्था ट्रेस द्वारा वर्ष 2021 में की गई रैंकिंग में 194 वें देशों में भारत का नम्बर 82वां रहा। जबकि इसके पूर्व भारत 77 वें नम्बर पर था। मतलब साफ है कि रिश्वतखोरी पर कोई भी अंकुश लगा पाने में कानून और व्यवस्था दोनों फेल रहे हैं।
समाज में जागरूकता लेकिन?
टीवी पर कुछ समय पहले एक सीरियल शुरू हुआ है 'कामना'। बाकी सारे मसाले तो खैर हैं ही इसमें। कहानी एक महिला, उसके ईमानदार सरकारी नौकरी वाले पति (लुप्तप्राय प्राणी) उनके प्यारे से बेटे और एक बिगड़ैल विलेन (मानव गोहिल बिचारे जो अब तक हीरो के रोल किया करते थे) के इर्द-गिर्द घूमती है।
बाकी सीरियल की तरह इसमें भी और कई चीजें हैं लेकिन मनोरंजन के जरिए यह एक बहुत ही गम्भीर और असामाजिक स्थिति को भी सामने लाता है। पत्नी को कामना है ऐशोआराम वाली जिन्दगी की जिसके लिए उसे पति के रिश्वत लेने से भी गुरेज नहीं। उसे अपना ईमानदार पति बुरा महसूस होता है।
दरअसल, ये बात कहने में भले ही ड्रामेटिक लगे लेकिन बहुत ही बड़ा प्रश्न खड़ा करती है। क्या इस बारे में सोचना जरूरी नहीं कि रिश्वतखोर व्यक्ति के पीछे उसके घर के लोग भी असल दबाव हो सकते हैं?
दादी बचपन में एक किस्सा सुनाया करती थीं। उनके पिताजी नगर सेठ थे। उस जमाने में शहर या कस्बों में एक धनवान सेठ हुआ करता था जो समय पड़ने पर महाराज तक की आर्थिक जरूरत पूरी करता था। तो एक रात दादी के पिताजी को सपना आया। उनके सपने में देवी लक्ष्मी ने आकर कहा कि तुम्हारे घर में धन गड़ा है, इसे निकालो। पिताजी इसे सपना समझकर सो गए तो फिर वही देवी दादी की माँ के सपने में आईं और फिर वही बात दोहराई।
आखिर इस सपने को आधार बनाकर दादी के पिता ने अपने निर्माणाधीन मकान की नींव में गहरी खुदाई करवाई और दादी के अनुसार उसमे से इतना धन, सोना-चांदी निकला कि रात भर बैलगाड़ी पर लादकर सुरक्षित जगह पर पहुंचाया गया। फिर वचन अनुसार दादी के पिताजी ने एक भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया।
दादी ये भी बताती थीं कि उनके पिताजी ने जहां वो धन रखा था, उस जगह तीन लोग एक के ऊपर एक खड़े हो जाएं इतनी गहरी और चौड़ी जगह बनाई गई थी। बहरहाल बाद में तो वो धन उस समय कई समाज कार्यों में भी उपयोग में लाया गया जैसा कि उस जमाने में होता था।
सरकारी दफ्तर और उसमें काम करने वाले लोगों को लेकर अक्सर हमारे मन में एक धारणा होती है कि वहां 'कुछ' दिए बिना काम नहीं होगा।
उस कहानी को सुनकर मैंने दादी से पूछा था- इतना धन मिलने के बाद तो आपके पापा को काम करने की जरूरत ही नहीं रही होगी। उनकी कई पीढ़ियां तर गई होंगी?
और दादी ने मुस्कुराते हुए कहा था-
बिना मेहनत के मिलने वाले धन की गति भी तेज होती है। जब तक पिताजी रहे उन्होंने धन का सही जगह उपयोग किया और अपने पैर जमीन पर बनाए रखे। वो वैसा ही जीवन जीते रहे जैसा पहले जीते थे लेकिन जैसे ही पिता जी गुजरे, हमारे रिश्तेदारों ने उस पैसे को हथियाने के प्रपंच किए और आखिरकार वो पैसा हवा हो गया। जिन्होंने प्रपंच किए थे उनके पास भी नहीं टिका। दादी हमेशा कहतीं- बिना मेहनत का खाये तो कैसे पचाये?
कुछ महीने पहले उत्तरप्रदेश के इत्र कारोबारी पीयूष जैन की चर्चा देशभर में रही। बताया गया कि उनके घर की दीवारों व अन्य जगहों से 184 करोड़ कैश, 23 किलो सोना और अन्य सामान मिला। इतना धन देखकर जांच और रेड में शामिल अधिकारी भी सकते में थे। दीवारों से टपकती उन नोटों की गड्डियों को देखकर मुझे दादी का किस्सा याद आया।
अंतर यह था कि दादी के किस्से में धन छल कपट या किसी का अधिकार मार कर नहीं कमाया गया था। और उसका उपयोग समाज कार्यों में हुआ। और जब उस धन को गलत तरीके से हथियाया गया तो वह बचा ही नहीं। यही खास बात है। पीयूष जैन के मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि उस धन का उपयोग पीयूष जैन खुद पर भी नहीं कर रहा था।
ये मामला फिलहाल कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत जारी है। प्रश्न यह उठता है कि पीयूष जैन जैसे लोग आखिर किस सीमा तक पैसों की हवस रखते हैं और उससे भी बड़ी बात यह कि क्या पहली-दूसरी बार ऐसे लोगों के गलत काम करते ही इन्हें अधिकृत तौर पर रोकने के लिए कोई नहीं होता?
भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, ऊपरी कमाई का लालच या रातों-रात अथाह सम्पत्ति खड़ी कर लेना सब इन्टरलॉक्ड हैं। ये एक ही लक्ष्य के अलग अलग शॉर्टकट्स हैं। वो रास्ता जिसकी मंजिल अंततः जेल या किसी न किसी सजा तक जाकर ही खत्म होती है। मुश्किल यह है कि यहां इन रास्तों पर चलने वालों के लिए अक्सर डामर और पैचेस का काम दूसरे करते हैं।
और इनमें घर-परिवार के या करीब के लोग भी शामिल होते हैं। गलत तरीके से कमाने वाला व्यक्ति अधिकांश मामलों में जिंदगी भर डर और झूठे ओवरकॉन्फिडेंस के साथ जीता है। डर पकड़े जाने का और झूठा ओवरकॉन्फिडेंस उस डर को छुपाने का। यही कारण था कि पीयूष जैन पुरानी बाइक पर ही चला करता था।
सरकारी दफ्तर और उसमें काम करने वाले लोगों को लेकर अक्सर हमारे मन में एक धारणा होती है कि वहां 'कुछ' दिए बिना काम नहीं होगा। जो व्यवस्था बनी हुई है सालों से वो ऐसी ही तस्वीर पेश करती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि इस व्यवस्था को बढ़ावा कौन देता है? हम खुद।
जब हम जल्दी जाने के चक्कर में सिग्नल पर खड़े सिपाही के हाथ में 50 (या आज के समय मे 100, ज्यादातर यही रेट है) का नोट पकड़ाते हैं तो, लाइन में लगकर दर्शन करने की बजाय किसी भी तरह 'जुगाड़' करके वीआईपी दर्शन करते हैं तो, आप अपना काम पहले और थोड़े हेर-फेर के साथ करने के लिए फाइल पर वजन रखते हैं तो...इन सारे 'तो' के साथ जुड़ा है भ्रष्टाचार। बस इसी 'तो' पर विराम लगाने की जरूरत है जो एक झटके में नहीं होगा। भ्रष्टाचार अब हमारे देश में नमक के जैसा हो गया है। लोग इसका स्वादानुसार उपयोग करते हैं। कुछ कम खाते हैं तो कुछ ऊपर से एक्स्ट्रा डालकर।
इसलिए अगर इस पर लगाम लगाना है तो कड़े कानूनों के साथ आम जनता की नीयत को भी सुधरना होगा, ताकि टेबल के नीचे से या फाइल के ऊपर वजन रखने के लिए कहने को किसी की हिम्मत ही न पड़े। अगर भगवंत मान इस समस्या को नकेल डाल साध लेते हैं तो एक अच्छी शुरुआत तो होगी ही।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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