सम्पादकीय

कोरोना आंकड़ों का दफन होता सच

Subhi
10 Sep 2021 2:42 AM GMT
कोरोना आंकड़ों का दफन होता सच
x
कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई और जिस प्रकार महाराष्ट्र और केरल में तीसरी लहर की शुरूआत की आशंका व्यक्त की जा रही है, उसे देखते हुए यह अपरिहार्य हो गया है

आदित्य नारायण चोपड़ा: कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई और जिस प्रकार महाराष्ट्र और केरल में तीसरी लहर की शुरूआत की आशंका व्यक्त की जा रही है, उसे देखते हुए यह अपरिहार्य हो गया है कि राज्य सरकारें, जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता में वरीयता दें। आक्सीजन की कमी से हुई मौतों का आंकड़ा भी अभी उलझा पड़ा है। देश के लोगों को कभी भी सरकारी आंकड़ों पर विश्वास नहीं रहा। गंगा-यमुना के विस्तीर्ण तट, संगम के पास गंगा का विशाल रेतीला इलाका एक बड़े कब्रिस्तान में बदल चुका था। रेत में दफन किए गए लोग ऐसे लोग थे जिनके लिए कोई श्रद्धांजलि सभाएं नहीं रखी गईं, क्योंकि उन्हें तो अंत्येष्टि के लिए लकड़ी भी नसीब नहीं हुई। ऐसे हजारों लोगों की कहानियां सुनने को मिलती हैं जो कोरोना से ठीक होकर अस्पतालों से घर लौट आए लेकिन कोरोना जनित बीमारियों से उनकी मौत हो गई। उनकी गणना कोरोना महामारी से मौतों में नहीं जोड़ी गई। आपदा बहुत भयावह थी, इसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। जहां तक राज्य सरकारों का सवाल है, उन्होंने तो कोरोना मौतों का आंकड़ा कम करके दिखाया। जन्म और मृत्यु जीवन का सच है तो फिर सच को छिपाए जाने का कोई औचित्य नहीं। फिर भी सच को छिपाने के लिए सफेद झूठ का सहारा लिया जा रहा है। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जो बयान दिया है, उस पर तीखे सवाल उठ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि राज्य में कोविड-19 से किसी पत्रकार की मौत नहीं हुई। न तो इस संबंध में सरकार को किसी भी स्रोत से कोई सूचना मिली है, न ही जिला आपदा प्रबंधन टीम ने ऐसी कोई जानकारी दी है। मंत्री ने यह भी कहा कि ऐसी मौतों पर किसी भी तरह का मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है।दूसरी ओर झारखंड पत्रकार एसो​िसएशन ने दावा किया है कि राज्य में कम से 30 पत्रकारों की मौत हुई है और एसोसिएशन ने झारखंड के मुख्यमंत्री और राज्य के जनसम्पर्क विभाग को पूरा विवरण और हर जिले में मौतों की जानकारी दी है।संपादकीय :भारत, रूस और अफगानिस्तानप्रेरणादाई बलिदानतालिबानी 'दहशत' की सरकारकल आज और कलमुहाने पर अफगानिस्तान !ऑनलाइन शिक्षा का अफसानाआश्चर्य इस बात पर है कि कोरोना महामारी के दौरान एक योद्धा की तरह काम करने वाले डाक्टरों, नर्सों, मैडिकल स्टाफ और नॉन मैडिकल स्टाफ, पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों की मौतें हुई हैं। कोरोना काल में समाचारपत्रों और टीवी पत्रकारों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए रिपोर्टिंग की है। कई प्रतिष्ठित पत्रकार भी कोरोना का शिकार बने हैं। फिर राज्य सरकारें पत्रकारों के प्रति इतनी निष्ठुर क्यों बनी हुई हैं। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों ने कोरोना में मौत का शिकार हुए पत्रकारों के परिवारों को मुआवजा भी दे दिया है। हजारी बाग के 35 वर्षीय पत्रकार सुनील पासवान की एक मई को सरकारी अस्पताल में मौत हुई थी। पासवान के परिवार ने हजारी बाग मैडिकल कालेज का पूरा मैडिकल रिकॉर्ड प्रस्तुत किया है जिससे पता चलता है कि सरकारी अस्पताल में ही पत्रकार का कोरोना पॉजिटिव का उपचार किया था। राज्य का सरकारी मैडिकल विभाग भी यही कह रहा है कि राज्य में आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। इन बयानों में भी विरोधाभास है। जुलाई माह में झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने पत्रकारों से कहा था कि झारखंड समेत देशभर में कई लोगों की आक्सीन की कमी से मौत हुई है। अब मंत्री महोदय पुराने बयानों से किनारा कर रहे हैं।पत्रकारिता का दायित्व उस समय कई गुना बढ़ जाता है जब पूरा देश अदृश्य दुश्मन से लड़ रहा हो। कोरोना महामारी भी पत्रकारिता के लिए ऐसी चुनौती लेकर आई जो उसे पहले कभी नहीं मिली। महामारी के दौर में पत्रकारों के समक्ष पत्रकारिता के उच्च मापदंडों को बरकरार रखने के लिए हर सूचना की पड़ताल करने के साथ खुद को भी सुरक्षित रखना कठिन कार्य था। वह भी उस समय भ्रामक और हानिकारक सूचनाएं भी तेजी से फैल रही थीं। इंटरनेट मीडिया और बिखरी भ्रमित करने वाली ढेरों सूचनाओं के बीच पत्रकारों ने जान पर खेल कर लोगों तक सच पहुंचाया लेकिन राज्य सरकारों द्वारा अस्पतालों से श्मशान और क​ब्रिस्तान तक की तस्वीरें जिस कदर रूह कम्पाने वाली थीं, उसी तरह मौत का आंकड़ा भी सन्न कर देने वाला है। जितना आंकड़ा श्मशानघाट वालों के पास है, उतना आंकड़ा अस्पतालों के पास नहीं है। अदालतों की फटकार के बाद भी आंकड़ों का फर्जीवाड़ा खत्म नहीं हुआ है। मनुष्य के जीने के अधिकार की जब बात की जाती है तो केवल पेट भर लेना ही पर्याप्त नहीं होता। जीवन के अधिकार के विषय में मानवीय गरिमा के साथ जीवन यापन की बात की जाती है। कोरोना में मौतें सरकारों के लिए महज आंकड़ा हो सकती हैं लेकिन उन परिवारों से पूछिये जिनका कोई अपना खो गया है। राज्य सरकारें मौत का आंकड़ा छिपाये नहीं बल्कि सच्चाई के साथ तीसरी लहर का सामना करने की तैयारी करें।

Next Story