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- युद्ध स्तर पर हो...
भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक है जिसने विनाशकारी संक्रमण कोरोना पर नियन्त्रण करने के लिए वैक्सीन या टीके की खोज करके सका वाणिज्यिक उत्पादन शुरू कर दिया है। विकसित देशों की भीड़ में भारत की यह उपलब्धि कोई छोटी नहीं है। इससे पता लगता है कि चिकित्सा के क्षेत्र में भारत ने जो तरक्की की है वह विश्व में बेजोड़ है और भारत के चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों का ज्ञान भी अतुलनीय कहा जा सकता है क्योंकि पूर्ण रूप से एक भारतीय कम्पनी भारत- बायोटेक ने भी पूरी तरह अपनी तकनीक की वैक्सीन 'कोवैक्सीन' तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। एक अन्य कम्पनी सीरम संस्थान ने आक्सफोर्ड तकनीक की कोवैक्स उत्पादित करके यूरोपीय देशों को ही अचम्भे में डाल दिया है। मगर भारत के वैज्ञानिकों की मेहनत का लाभ आम भारतीयों को तभी होगा जब यह वैक्सीन उन्हें जल्दी से जल्दी लगेगी जिससे वे कोरोना के भय से मुक्त हो सकें और अपनी दैनिक जीवन चर्या पुनःपूर्ववत अपनाते हुए सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें। यह इसलिए और भी जरूरी है क्योंकि कोरोना के सहोदर संक्रमण (वेरियंट या स्टेंस) का खतरा भी खड़ा हो रहा है। इस खतरे को टालने के लिए भी वैक्सीन का लगना जरूरी माना जा रहा है। अब प्रश्न खड़ा हो रहा है कि 130 अरब की आबादी वाले भारत में वैक्सीन वितरण व इसे लगाने की क्या व्यवस्था की जाये? भारत में वैक्सीन की उत्पादन क्षमता प्रति मिनट पांच हजार प्रति कम्पनी की है। इस प्रकार एक मिनट में दस हजार वैक्सीनों का ताजा उत्पादन सतत् जारी रह सकता है। सीरम व भारत बायोटेक के पास वैक्सीनों का भंडारण करोड़ों की संख्या में है जिसे दो महीने के भीतर निपटा दिया जाना चाहिए।