सम्पादकीय

कोरोना : भारी पड़ रहा है सीबीएसई का प्रयोग

Neha Dani
22 Dec 2021 1:59 AM GMT
कोरोना : भारी पड़ रहा है सीबीएसई का प्रयोग
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हारे हुए मन व टूटे हुए मनोबल से कदापि उत्तीर्ण नहीं की जा सकती।

कोरोना का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव विद्यार्थियों पर ही पड़ा है। मार्च, 2020 में अचानक बोर्ड-परीक्षा रद्द होने, दो-दो लॉकडाउन लगने, कोरोना की पहली एवं दूसरी लहर के त्रासद परिणामों को देखने-सुनने, ऑनलाइन कक्षाओं के बोझिल दबावों व शरीरिक-मानसिक दुष्प्रभावों को लगातार झेलने तथा तीसरी लहर एवं ओमिक्रॉन की वैश्विक आशंकाओं और अफवाहों आदि का चौतरफा शोर सुनते रहने का बाल-मन पर कितना गहरा एवं व्यापक असर पड़ा होगा, इसका अनुमान कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सहज ही लगा सकता है।

चिंताओं-आशंकाओं का आलम यह है कि मध्य अगस्त-सितंबर से ऑफलाइन कक्षाएं लगाने की अनुमति मिलने के बाद आज भी कई विद्यालय ऑनलाइन कक्षाएं चलाने को बाध्य एवं मजबूर हैं। ऐसे में जब सीबीएसई ने संपूर्ण पाठ्यक्रम को दो भागों एवं सत्रों में बांटते हुए प्रथम सत्र की बोर्ड-परीक्षा बहुविकल्पी और द्वितीय सत्र की लिखित व विषयगत (सब्जेक्टिव) रखने की घोषणा की तो शिक्षकों-अभिभावकों-विद्यार्थियों ने खुलकर इसका स्वागत किया।
सबको यही लगा कि सत्र देर से प्रारंभ होने तथा रोज बदलती हुई परिस्थितियों व नित नवीन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई बच्चों पर से परीक्षा व पाठ्यक्रम का बोझ कुछ कम करना चाहता है। पर प्रथम सत्र की परीक्षा प्रारंभ होते ही बच्चों के समक्ष सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी स्थिति निर्मित हो गई। अब जबकि बोर्ड-परीक्षा लगभग समापन की ओर हैं, चारों ओर कोहराम मचा है, क्या विद्यार्थी, क्या शिक्षक, क्या अभिभावक- सभी परेशान हैं।
सामाजिक जागृति के बिना तो नकल और कदाचार पर पूरी तरह नकेल कस पाना किसी व्यवस्था के लिए कदाचित संभव नहीं। पर जाने-अनजाने व्यवस्था द्वारा ही ऐसे छिद्र और संभावनाओं को खुला छोड़ देना सर्वथा अनुचित है। नई परीक्षा पद्धत्ति में शिक्षण-संस्थाओं के नाम पर नकल का ठेका लेने वालों, डमी स्कूल्स और कोचिंग-संस्थान चलाने वालों की पौ-बारह है।
बहुविकल्पी प्रश्नों पर आधारित यह परीक्षा कोचिंग संस्थाओं की कार्यप्रणाली एवं तैयारी कराने के तौर-तरीकों के अनुकूल है। यह विद्यार्थियों के समग्र सर्वांगीण, मौलिक एवं नैसर्गिक विकास को बाधित एवं प्रभावित करती है। कोढ़ में खाज सीबीएसई द्वारा तैयार प्रश्नपत्र भी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीएसई ने ये प्रश्रपत्र शिक्षकों से नहीं, अपितु प्रतियोगी परीक्षा कराने वाली एजेंसियों से बनवाए हों।
प्रश्नपत्र बनाने के क्रम में कोरोना से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों, विलंबित सत्र, अनियमित कक्षाओं, प्रश्न हल करने के लिए दी गई समय-सीमा, निर्धारित पाठ्यक्रम, बोर्ड द्वारा जारी प्रतिदर्श प्रश्नपत्रों, पूर्वाभ्यास, कक्षानुसार कठिनाई-स्तर, विषयगत विविधता आदि की घनघोर उपेक्षा की गई है। परीक्षा संबंधी उसके तमाम निर्णयों और प्रश्नपत्रों को देखकर यही लगता है, जैसे वह इस कठिन कोविड-काल में बच्चों के साथ प्रयोग-दर-प्रयोग कर रहा हो।
सनद रहे कि बच्चे कोई प्रयोगशाला या उत्पाद नहीं हैं कि एक प्रयोग विफल रहने के बाद दूसरा..तीसरा.. आजमाया जाए! और यदि सीबीएसई को ऐसे प्रयोग करने ही थे, तो उसे स्थितियां सामान्य होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, नवीं और ग्यारहवीं से इसकी शुरुआत कर बच्चों को मानसिक तौर पर पहले तैयार करना चाहिए था। बारहवीं बोर्ड के परिणाम पर ही बच्चों का भविष्य और कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में प्रवेश निर्भर करता है।
सीबीएसई की अनिश्चितता, ढुलमुल नीति एवं लापरवाही का दुष्परिणाम बच्चे क्यों भुगतें? सीबीएसई के तौर-तरीकों एवं प्रश्नपत्रों की वास्तविक स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उसे अपने ही द्वारा बनाए गए दसवीं के अंग्रेजी और बारहवीं के समाजशास्त्र विषय के प्रश्नपत्र के लिए दो-दो बार सार्वजनिक माफी तक मांगनी पड़ी। कक्षा बारहवीं के 'एकाउंट' विषय में तो ठीक परीक्षा वाले दिन प्रश्नपत्र का पैटर्न बदल दिया गया।
सीबीएसई को बताना चाहिए कि गणित और भौतिकी जैसे विषयों में 0.8 या एक अंक के प्रश्नों के लिए एक-एक पृष्ठों में हल किए जा सकने वाले जटिल प्रश्नों को पूछना कितना व्यावहारिक एवं न्यायसंगत था? याद रहे, चाहे वह बोर्ड की परीक्षा हो या जिंदगी की, हारे हुए मन व टूटे हुए मनोबल से कदापि उत्तीर्ण नहीं की जा सकती।
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