- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कोरोना अब भी अबूझ...
x
दुनिया भर की आबादी का करीब 70 फीसदी हिस्सा समेटने वाले 32 बड़े देशों में कोविड से हुई मौत का अध्ययन कर बीते जुलाई माह में मैंने बताया था कि महामारी धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है
आलोक शील। दुनिया भर की आबादी का करीब 70 फीसदी हिस्सा समेटने वाले 32 बड़े देशों में कोविड से हुई मौत का अध्ययन कर बीते जुलाई माह में मैंने बताया था कि महामारी धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है। उल्लेखनीय है कि कोरोना से हुई कुल वैश्विक मौत में 85 फीसदी इन देशों में ही हुई है। ये आंकड़े मार्च, 2020 में कोविड की शुरुआत होने के बाद से हर छह सप्ताह के अंतराल पर दर्ज किए गए हैं। यह करीब-करीब वह समय था, जब कोरोना का डेल्टा वेरिएंट दुनिया भर में खौफ पैदा कर रहा था और ओमीक्रोन का कोई थाह-पता नहीं था। अब जबकि कोरोना का यह नया रूप भारत सहित दुनिया के 75 से अधिक देशों में फैल चुका है और ब्रिटेन में तो रोजाना 85,000 के करीब नए मामले सामने आने लगे हैं, तब सवाल यह है कि हालात यहां से अब किस ओर जा सकते हैं?
फिलहाल, इस सवाल का सही-सही जवाब मुश्किल है। हम अब भी कोरोना वायरस को पूरी तरह जान नहीं पाए हैं। अलबत्ता, विज्ञान के लिए वायरस अब भी अबूझ पहेली हैं। वैज्ञानिकों में इस बात पर अब तक कोई सहमति नहीं बन सकी है कि वायरस सजीव हैं अथवा नहीं, क्योंकि ये निष्क्रिय अवस्था में भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। जोंबी-जैसे जीवन के अलावा, वायरस तेजी से म्यूटेट (रूप और चरित्र बदलना) भी होते हैं, इसलिए टीके हमें सीमित सुरक्षा देते हैं, जो अमूमन समय के साथ कम होती जाती है। सार्स कोव-2 (कोरोना वायरस) ने भी बार-बार म्यूटेट किया है, जिसकी वजह बहुत हद तक वैश्विक वैक्सीन असमानता (चुनिंदा देशों में टीकों की पर्याप्त मात्रा का होना और बाकी राष्ट्रों का इसके लिए संघर्ष करना) भी है। इसी कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं वाले देशों ने भी संघर्ष किया है। हालांकि, इसमें एक असामान्य रुझान यह है कि अफ्रीका की तुलना में विकसित देशों में मृत्यु दर अधिक है। अफ्रीका के अंदर भी अपेक्षाकृत समृद्ध दक्षिण अफ्रीका में गरीब हिस्सों की तुलना में मृत्यु दर ज्यादा है।
वायरसों के बारे में हम अभी तक यही जानते हैं, वे या तो बहुत घातक होते हैं या फिर तेज संक्रामक, दोनों एक साथ नहीं होते। हालांकि, समय-समय पर ऐसा अत्यंत संक्रामक वायरस आता है, जो घातक भी होता है, जैसे कि एक सदी पहले स्पैनिश फ्लू आया था। तो, क्या कोविड महामारी का भविष्य जानने में यह फ्लू हमारी मदद कर सकता है? दोनों में कुछ समानताएं तो बिल्कुल सतही हैं। जैसे, नाम के बावजूद, स्पैनिश फ्लू का केंद्र स्पेन नहीं था और कोविड में भी मृत्यु दर चीन में बहुत अधिक नहीं है, जबकि वहीं वायरस की उत्पत्ति की आशंका है। स्पैनिश फ्लू की तरह ही कोविड की दूसरी लहर घातक थी। इसके बाद क्रमिक रूप से कम घातक लहरें आती रहीं। चूंकि वायरसों का दीर्घकालिक उद्देश्य अपने मेजबान शरीर के भीतर पनपते रहना है, न कि शरीर को ही नष्ट कर देना। इसीलिए ओमीक्रोन को लेकर भी यही कहा जा सकता है कि यह डरावना हो सकता है, पर शायद ही घातक हो।
कोविड में जिस तरह से दुनिया के सबसे धनी देश अमेरिका में मृत्यु दर तुलनात्मक रूप से अधिक है, स्पेनिश फ्लू में भी कुछ यही हाल था। दोनों ही मौकों पर इसके राष्ट्रपति वायरस से संक्रमित हुए और इतिहास ने करवट ली। मसलन, वुडरो विल्सन ने वर्साय की संधि का कड़ा विरोध किया था, जब तक कि वह खुद फ्लू के शिकार नहीं हुए। इसके बाद पॉट्सडैम वार्ता से वह बाहर हो गए। इस संधि ने हिटलर के उदय और दूसरे विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया था। इसी तरह, डोनाल्ड ट्रंप की कोविड प्रबंधन में नाकामी ने 2020 की ह्वाइट हाउस की दौड़ से उन्हें बाहर कर दिया, जबकि वह चुनाव जीतते दिख रहे थे। यह अमेरिका में वैकल्पिक दक्षिणपंथ आंदोलन की एक बड़ी हार थी।
बेशक वायरस अब भी रहस्यमय बने हुए हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होने से मृत्यु दर में कमी आई है। पिछली सदी से अब तक दुनिया काफी बदल गई है। स्पैनिश फ्लू से विश्व भर में करीब दो करोड़ लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया है, जबकि कोविड से अब तक 50 लाख लोगों की जान गई है। प्रति 1,000 की आबादी में कोरोना से सात लोगों की मौत हुई है, जबकि स्पैनिश फ्लू में यह आंकड़ा करीब 100 था। इतना ही नहीं, परिवहन सेवाओं के विस्तार और हवाई यात्रा से अब मानव की गतिशीलता काफी ज्यादा बढ़ गई है। इस कारण कोई भी वायरस कुछ घंटों में पूरी दुनिया में फैल सकता है। सघन शहरी आबादी समस्या बढ़ा सकती है, क्योंकि विशेषकर गरीब मुल्कों में लॉकडाउन शारीरिक दूरी घटाने के बजाय बढ़ा देता है। हालांकि, स्पैनिश फ्लू का दायरा इसलिए तेजी से फैला था, क्योंकि पहले विश्व युद्ध के बाद विभिन्न राष्ट्रों से सैनिक अपने देश लौट रहे थे। फिर, अपने-अपने देश में भी वे सुदूर इलाकों के अपने घरों तक गए। यह भी एक वजह थी कि भारत स्पैनिश फ्लू का सर्वाधिक शिकार बना। इस बार भी दक्षिण और पूर्वी एशिया में इंडोनेशिया के साथ भारत में ही सबसे अधिक मृत्यु दर है।
बहरहाल, संचार और सूचना क्रांति ने एक जीवंत नागरिक समाज और सोशल मीडिया को जन्म दिया है। मगर विश्व स्तर पर झूठी सूचनाओं के प्रसार के लिए महामारी उपजाऊ जमीन भी बन जाती है। सरकारें भी अपनी स्थिति को जाने बिना एक-दूसरे की नीतियों की नकल करती हैं, जिससे नीतिगत गलतियां हो जाती हैं। हमें इन सबसे बचना होगा। बीमारी और मौत से लड़ने की हमारी स्थिति पिछली सदी की तुलना में काफी बेहतर हुई है। उम्र के बाद के पड़ावों पर होने वाली मौत भी अब लोगों को असह्य लगने लगी है।
Rani Sahu
Next Story