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इस वर्ष यात्रा 43 दिन की होकर 11 अगस्त यानी श्रावण मास के अंत में समाप्त होगी।
वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटने और दो वर्ष की कोरोना महामारी के बाद इस वर्ष 30 जून से शुरू होने वाली श्री अमरनाथ यात्रा कई मामलों में खास है। एंटी ड्रोन प्रणाली के इस्तेमाल से लेकर आधार शिविरों तक हेलीकाप्टर सेवा और मुफ्त बैटरी कार की सुविधा के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार करके जम्मू-कश्मीर सरकार तथा श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड इस यात्रा को विशेष बनाना चाहते हैं। राज्य और केंद्र सरकार संदेश देने की कोशिश करेंगी कि यहां का सुरक्षा परिदृश्य बेहतर हुआ है।
अमरनाथ यात्रा के संदेश प्रायः बड़े होते हैं, क्योंकि इस यात्रा के कई राजनीतिक मायने भी होते हैं। सुरक्षा एजेंसियों को बताया गया है कि इस बार करीब आठ लाख श्रद्धालु आने की संभावना है। यदि ऐसा हुआ, तो यह संख्या इस तीर्थयात्रा के इतिहास की सबसे बड़ी संख्या होगी। इससे पहले सर्वाधिक यात्री वर्ष 2011 में आए थे, जब इनकी संख्या 6,36,000 थी। 2019 के अगस्त माह में अनुच्छेद 370 हटाने के कुछ दिन पूर्व यात्रा को स्थगित कर दिया गया था। अमरनाथ यात्रा 1990 के बाद से लगातार आतंकियों के निशाने पर रही है
1990 में जब घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था, उस वर्ष सिर्फ चार हजार लोगों ने अमरनाथ यात्रा की। जबकि दो वर्ष पूर्व 1988 में 96,000 श्रद्धालुओं ने बाबा बर्फानी के दर्शन किए थे। यात्रा का जो स्वरूप आज हम देखते हैं, उसके पीछे कहीं न कहीं 1994 में आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के द्वारा यात्रा पर लगाई गई रोक थी। कश्मीर मामलों के जानकार बताते हैं कि पहले अमरनाथ यात्रा कश्मीरी पंडितों की एक स्थानीय यात्रा के रूप में प्रचलित थी और अधिक से अधिक एक सप्ताह चलती थी।
1994 की धमकी के बाद पूरे देश के हिंदुओं को ये संदेश दिया गया कि हमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में बर्फानी बाबा के दर्शन करके आतंकियों को करारा जवाब देना चाहिए। इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में हिंदू संगठनों की भूमिका रही। आतंकी संगठनों ने 1994 के बाद वर्ष 1995 और 1998 में भी यात्रा पर रोक लगाने की घोषणा की थी, लेकिन यात्रा अनवरत जारी रही। यह भी एक कटु सत्य है कि यात्रा शुरू होने से पहले और यात्रा के दौरान घाटी में हमले बढ़ जाते हैं।
इतना ही नहीं, वर्ष 2000, 2001, 2002 और 2017 में तो यात्रा पर आतंकी हमले भी हुए, जिनमें तीर्थयात्रियों के साथ स्थानीय नागरिकों की भी जान चली गई। इन हमलों से आतंकी संगठन श्रद्धालुओं को भयभीत करना चाहते हैं, लेकिन इस वर्ष ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उसका एक बड़ा कारण है कि कश्मीर में सक्रिय सभी आतंकी संगठनों के प्रमुख कमांडर मारे जा चुके हैं। लोगों में आतंकियों का खौफ समाप्त हो रहा है। इस वर्ष अब तक 62 आतंकी मारे गए हैं, जिनमें 15 विदेशी थे।
इससे आतंकी और उनके सरगना हताश हैं। हर वर्ष आषाढ़ और श्रावण के मास में आयोजित की जाने वाली अमरनाथ यात्रा का राजनीतिक इतिहास भी है। वर्ष 2008 में जब सरकार ने श्राइन बोर्ड को यात्रियों के लिए अस्थायी आश्रय बनाने के लिए 100 एकड़ जमीन आवंटित की, तो पूरा राज्य उबल पड़ा था। विरोध की शुरुआत तो हुई थी इस बात से कि इस निर्णय से इलाके की नाजुक पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेगा, लेकिन बाद में इसमें क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता हावी हो गई।
लगभग दो महीने तक कश्मीर क्षेत्र में आवंटन के खिलाफ और जम्मू क्षेत्र में आवंटन के पक्ष में जमकर बवाल हुआ। पुलिस, अर्धसैनिक और सैन्य बल की गोलियों से कई जानें गईं। इसी मुद्दे पर गुलाम नबी आजाद की राज्य सरकार चली गई थी और अंततः आवंटन भी रद्द करना पड़ा था। अमरनाथ यात्रा के बढ़ते स्वरूप के फलस्वरूप अब सामाजिक संगठन पठानकोट से लगभग पूरे यात्रा मार्ग पर लंगर लगाकर यात्रियों के खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था करते हैं।
इस साल प्रतिदिन 20 हजार यात्रियों को अनुमति देने का निर्णय किया गया है। पहले एक दिन में 15,000 यात्रियों को अनुमति दी जाती थी। अमरनाथ यात्रा 1990 के दशक में 20 दिनों तक चलती थी। 2004 के बाद से यह 40 से 60 दिन की होनी लगी। इस वर्ष यात्रा 43 दिन की होकर 11 अगस्त यानी श्रावण मास के अंत में समाप्त होगी।
सोर्स: अमर उजाला
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