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जिनके पास उनके अनुभवों की तुलना में अधिक धन है।
ऐसे लोगों के बारे में पता लगाना वाकई कठिन है, जिन्होंने कोविड काल (2020-21) में वित्तीय कठिनाइयों का सामना नहीं किया, लेकिन जब आप अमीर लोगों की सूची देखते हैं और पाते हैं कि शीर्ष स्तर के कई लोगों ने इस दौरान काफी धन जोड़ा है, तो आपको आश्चर्य होता है कि क्या कोविड से संबंधित वित्तीय परेशानियों ने केवल आम आदमी को प्रभावित किया! धर्मार्थ कार्यों और निवेश से जुड़े हुरुन की हाल ही में जारी भारत के अमीर लोगों की सूची से पता चलता है कि महामारी ने देश के अति समृद्ध लोगों को प्रभावित नहीं किया है, बल्कि उसने कई लोगों को बहुत ज्यादा अमीर बना दिया है।
1,007 लोगों ने 1,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक धन संचित किए हैं; और पिछले वर्ष की तुलना में उनकी संचयी संपत्ति में 51 फीसदी की वृद्धि हुई। यह सब बदहाल अर्थव्यवस्था और महामारी की पृष्ठभूमि में हुआ है, जिसमें व्यापक लॉकडाउन देखा गया था। हम एक साल पहले की तुलना में 58 से ज्यादा डॉलर में कमाई वाले अरबपति भी देखते हैं। 64 वर्षीय मुकेश अंबानी 7,18,000 करोड़ रुपये के साथ 10वें साल सबसे अमीर भारतीय बने हुए हैं। शीर्ष दस अमीरों की सूची में स्टील दिग्गज लक्ष्मी मित्तल, आदित्य बिड़ला समूह के कुमार मंगलम बिड़ला के नेतृत्व में चार नए चेहरे शामिल हैं।
पिछले दशक में भारत ने संभवतः अपने इतिहास में सबसे तेजी से धन सृजन का युग देखा और पिछले दशक में चीजें बहुत बदल गई हैं। सबसे तेजी से बदलाव यह आया है कि पुरानी अर्थव्यवस्था के कारोबारी घराने युवा और नए युग की कंपनियों के संस्थापकों से पिछड़ रहे हैं, जिनको लेकर यह सूची बनी है। इस साल इस सूची में लगभग 73 संस्थापक या सह-संस्थापक हैं, जिन्होंने भारत में अद्भुत सॉफ्टवेयर, तकनीकी उत्पाद कंपनियों का निर्माण किया है। यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहने की संभावना है और अगले पांच-दस वर्षों में यह संख्या काफी बढ़ सकती है।
पिछले एक दशक में 100 की सूची से बढ़कर आज इस सूची में 1,007 लोग शामिल हैं, जिनमें भारत में अरबपतियों की संख्या पिछले साल के 54 से बढ़कर 237 हो गई है। इस सूची में युवाओं की संख्या भी बढ़ रही है। भुगतान एप भारतपे के 23 वर्षीय संस्थापक शाश्वत नकरानी आईआईएफएल वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट में शामिल होने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं। वह 1990 के दशक में पैदा हुए 13 अन्य स्व-निर्मित अरबपतियों में से हैं। जिस तरह से फार्मा, टेक्नोलॉजी और वित्तीय सेवा जैसे क्षेत्र के लोग इस सूची में शामिल हो रहे हैं, उससे एक महत्वपूर्ण बदलाव हो रहा है।
अमीर-गरीब की खाई
भारत में द्विविभाजन उन लोगों में भी है, जो गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की सूची में शामिल हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, इस साल जुलाई की शुरुआत में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों पर आधारित एक अनुमान में कहा गया था कि करीब 21.8 करोड़ लोग (जिनमें से अनुमानतः पांच करोड़ लोग शहरी क्षेत्र के हैं) गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिए गए हैं। इसके अलावा, एक साल पहले विश्व बैंक के एक अनुमान में कहा गया था कि कोविड-19 महामारी 8.8 करोड़ से 11.5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को इस वर्ष अत्यंत गरीबी में धकेल देगी, कुल मिलाकर 2021 तक ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 15 करोड़ हो जाएगी।
अमीर और गरीब के बीच की खाई हमेशा चौड़ी रही है, लेकिन यह खाई बढ़ती ही जा रही है। निष्पक्ष रूप से कहें, तो अमीर, ज्यादातर संगठित व्यवसायी और उद्यमी रोजगार प्रदान करके और औपचारिक क्षेत्र के रोजगार से कई लोगों को लाभ पहुंचाकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। तथ्य यह है कि कई स्टार्ट-अप संस्थापक भी प्रारंभिक छोटी-मोटी नौकरियां पेश करके समानता का समर्थन कर रहे हैं, जिसमें निम्न स्तर के कर्मचारी जैसे कार्यालय क्लर्क, सहायक कर्मचारी, ड्राइवर शामिल हैं, जो एक बहुत ही सकारात्मक परिणाम है।
अर्थव्यवस्था में योगदान
रोजगार प्रदान करने के अलावा अमीर लोग उच्च करों का भुगतान करके अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं, जो विकास परियोजनाओं के साथ-साथ सरकारी खर्च के लिए सरकारी खजाने में जाता है। अमीर कई गतिविधियां अपनाकर धर्मार्थ कार्यों में गंभीर रुचि लेते हैं, जो समाज को लौटाने का उनका तरीका है। अमीरों के योगदान का एक और तरीका है शेयर बाजारों में हिस्सेदारी, जो छोटे निवेशकों को हाल के दिनों में सूचीबद्ध हुए कई स्टार्ट-अप के शेयरों में शामिल होने की अनुमति देता है।
धन सृजन के तरीके बदल गए हैं। अब कमाई और बचत के बीच का पुराना संघर्ष नहीं रह गया है। यह कमाई, बचत और फिर निवेश के बारे में भी है। अमीरों की सूची में कई ऐसे लोग भी हैं, जो बड़े निवेशक हैं। उन्होंने शेयर बाजार द्वारा उपलब्ध कराए गए हर अवसर का बढ़-चढ़कर फायदा उठाया है। तथ्य यह है कि कोविड की पृष्ठभूमि में 2020 के निचले स्तर के बाद बाजारों ने एक शानदार पलटाव किया, इसने सूची में शामिल कई व्यक्तियों की संपत्ति को काफी बढ़ाया है।
इस तरह से अमीर लोग जरूरतमंद लोगों के लिए अपनी तरफ से योगदान तो कर ही रहे हैं, इसके अलावा भी बहुत कुछ है, जो वे नियामक और अनिवार्य कराधन के दायरे से बाहर रहकर कर सकते हैं। दुनिया के कुछ अति समृद्ध लोगों ने स्वयं ही पिछले वर्ष यह जिम्मा उठाया है कि वे अपने संसाधनों को भविष्य में कोविड जैसी स्वास्थ्य समस्या की जांच पर खर्च करेंगे, लेकिन भारत के अति समृद्ध लोग ऐसा करने के लिए अपनी जेब ढीली करेंगें, इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। जब तक शीर्ष स्तर के एक फीसदी लोग नीचे के 20 फीसदी लोगों की बेहतरी और कल्याण के लिए काम नहीं करेंगे, अमीर और गरीब के बीच विभाजन की खाई बनी रहेगी और हम उन अमीर लोगों की सूची देखते रहेंगे, जिनके पास उनके अनुभवों की तुलना में अधिक धन है।
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