सम्पादकीय

कोरोना काल : अब बहुफसली खेती की जरूरत, अन्न को यूं ही ब्रह्म नहीं कहा गया

Neha Dani
3 Jun 2022 1:48 AM GMT
कोरोना काल : अब बहुफसली खेती की जरूरत, अन्न को यूं ही ब्रह्म नहीं कहा गया
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फसलें अनेक' से ही होगा, कृषि में परिवर्तन। इसी से निकलेगा खुशहाली का रास्ता।

ओमिक्रॉन का संक्रमण अब भी जारी है और वह भी तब, जब अधिकतर देशों में शत-प्रतिशत टीकाकरण हो चुका है। तो क्या अब हम यह मानकर चलें कि इंसान के शरीर में इतनी ताकत नहीं रही कि वह किसी रोग से लड़ सके? क्या इंसानी शरीर पर आधुनिकता के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं? क्या हमारा भोजन पहले जैसा पौष्टिक और शुद्ध नहीं रहा? क्या हम गुणवत्ता-युक्त खाद्य-सामग्री का उत्पादन करना भूल गए हैं? क्या हमें सिर्फ दवाइयों के दम पर ही जिंदा रहना पड़ेगा?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके उत्तर हम सबको खोजने ही पड़ेंगे, अन्यथा हम आगे आने वाली पीढ़ी को जवाब देने लायक नहीं रहेंगे। हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना पड़ेगा और इस आधुनिक जीवन शैली में बदलाव करना पड़ेगा, ताकि हमारा शरीर पहले जैसा मजबूत हो सके, इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले जैसी हो सके। हमारे शरीर की मजबूती और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, हमारे द्वारा लिए जाने वाले आहार का। अन्न को यूं ही ब्रह्म नहीं कहा गया है।
सबसे पहले हमें इस बात पर विचार करना है कि हमारे परिवार को शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक भोजन कैसे प्राप्त हो। अभी समय के अभाव और आधुनिकता के कारण हम 'फास्ट फूड' अधिक ले रहे हैं, जो कि हमारे शरीर के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है। वहीं दूसरी ओर हम जो फल, सब्जी और अनाज खा रहे हैं, उनको उगाने और पकाने में इतने रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है कि इसे खाकर हम दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं। और हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर हो चुकी है।
बेहतर होगा कि जल्द-से-जल्द हम खेती के अपने वर्तमान तरीके को बदल लें और वापस पूर्वजों के तौर-तरीकों को अपना लें, यानी कि फिर से बिना खर्चे की और बिना जहर वाली बहुफसली खेती अपना लें। इसी बहुफसली कृषि प्रणाली में सभी समस्याओं का हल है। इसके लिए अधिक-से-अधिक फसलें अपने खेत में लगाएं और रासायनिक खादों व कीटनाशकों की जगह देसी खाद व प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करें। अभी रासायनिक खादों व कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप गांव-गांव तक कैंसर जैसी बीमारी ने पैर पसार लिए हैं।
वहीं दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन की एक नई समस्या से भी हमें दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। रासायनिक खेती के कारण हम सिर्फ उत्पादन के लालच में एक या दो फसलों तक ही सीमित हो गए हैं। और भारत में यह स्थिति है कि 'एकल फसल प्रणाली' के कारण किसान अपने परिवार की जरूरत का अनाज भी अपनी ज़मीन से पैदा नहीं कर पा रहा है, उसे अपने परिवार की खाद्य सामग्री के लिए भी बाजार जाना पड़ रहा है।
हमें फिर से अपने खेत में ज्वार, बाजरा, जौ, मक्का, रागी, अलसी, चना, मसूर, धनिया, मूंगफली जैसी हर उस फसल का उत्पादन करना होगा, जो हम इस्तेमाल करते हैं। मोटे अनाज को अपने भोजन में शामिल करना होगा, तभी हम इन बीमारियों से बच सकते हैं। हमेशा याद रखें कि 'खेत एक, फसलें अनेक' से ही होगा, कृषि में परिवर्तन। इसी से निकलेगा खुशहाली का रास्ता।

सोर्स: अमर उजाला

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