सम्पादकीय

कोरोना काल: निजी स्कूलों से 'गायब' बच्चों का भविष्य

Gulabi
8 July 2021 3:35 PM GMT
कोरोना काल: निजी स्कूलों से गायब बच्चों का भविष्य
x
कोरोना काल का, शिक्षा-व्यवस्था, अभिभावकों और छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ा है

कोरोना काल का, शिक्षा-व्यवस्था, अभिभावकों और छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ा है, इसका ठीक-ठीक अध्ययन होना बाकी है। फिर भी इधर कुछ चौंकाने वाले समाचार, इसकी कहानी बयां करने को काफी हैं। एक खबर यह आई है कि हरियाणा राज्य के नए सत्र में निजी स्कूलों से 12.51 लाख बच्चे 'गायब' हैं। यानी उन्होंने नए सत्र में प्रवेश नहीं लिया है। निजी स्कूलों द्वारा हरियाणा शिक्षा विभाग को सौंपे गए आंकड़े दिखाते हैं कि अकादमिक सत्र 2021-22 के लिए 28 जून तक 17.31 लाख बच्चों ने उनके स्कूलों में पंजीयन करवाया था, जबकि पिछले साल 29.83 लाख बच्चों ने। यानी निजी स्कूलों में इस बार 12.51 लाख कम बच्चों ने पंजीयन करवाया। इसके बाद स्कूली शिक्षा निदेशालय ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे निजी स्कूलों के प्रमुखों और प्रबंधकों से मिलकर वस्तु स्थिति जानने की कोशिश करें।

ये 12.51 लाख बच्चों में से किस वर्ग के बच्चे अधिक प्रभावित हुए हैं, इसको समझने के लिए, कुछ जरूरी कारकों को समझना जरूरी है। भारी संख्या में स्कूली बच्चों का स्कूल छोड़ देने के पीछे, मुख्य रूप से दो कारण बताए जा रहे हैं। पहला, कोरोना काल में स्कूलों के बंद रहने के बावजूद फीस का वसूला जाना। कोरोना काल में केवल स्कूल ही नहीं बंद हुए, काम-धंधे भी बंद हुए। काम-धंधों के बंद होने के कारण बहुत से गरीब परिवारों के सामने संकट आ खड़ा हुआ। उनके लिए फीस जमा करना मुश्किल हो गया। यही कारण रहा कि उन्होंने अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकालकर या तो सरकारी स्कूलों में नाम लिखवा दिया या घर बैठाने को मजबूर हुए। यानी गरीब वर्ग के बच्चों, जिनमें दलित, पिछड़े और आदिवासी बहुतायत में हैं, का भविष्य बर्बाद हुआ है।
दूसरा बड़ा कारण महामारी के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई का रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई ने गरीबों और ग्रामीण परिवारों के बच्चों को बुरी तरह प्रभावित किया है। स्मार्ट फोन और नेटवर्क का न होना, बिजली आपूर्ति में बाधा ने गांव, गरीबों के बच्चों को शिक्षा से बाहर कर दिया है। एक और खबर, सीबीएसई के संबंध में आई कि उन छात्रों को अगली कक्षा में नहीं प्रमोट किया जा रहा, जिन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई नहीं की है या जो छमाही परीक्षा में नहीं बैठे थे। इस आदेश से भी गरीब परिवारों के ही छात्र प्रभावित हो रहे हैं।
तो क्या यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि कोरोना जैसी आपदा, गरीबों को और उनकी भावी पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय कर रही है। सभी शिक्षण संस्थाएं बंद हैं। स्कूलों में पढ़ाई बंद है। बच्चे अपने घरों में कैद हैं। बिना पढ़ाई बच्चे प्रमोट किए जा रहे हैं। यह कोरोना काल की सार्वभौमिक विडंबना है। सरकारी और निजी शिक्षा की हमारी भेदभावपरक नीतियों की वजह से एक वर्ग ने अपनी पढ़ाई का विकल्प ढूंढ़ लिया है, जबकि दूसरे वर्ग के लिए सभी दरवाजे बंद हैं। गरीबी और अमीरी की गहरी खाइयों में हमारी सोच और मानवीय संरचना जन्म ले रही है। हमारी सोच में समानता और ईमानदारी रही नहीं। निजी स्कूलों द्वारा अपने विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने का उपक्रम गरीब विरोधी नहीं तो क्या है? प्रश्न उठता है कि क्या लॉकडाउन के खत्म होने के बाद, सरकारी स्कूलों के बच्चों का भविष्य बर्बाद नहीं हो जाएगा? इस प्रश्न का उत्तर और भी धुंधला है। इस प्रश्न का उत्तर निजी स्कूल नहीं दे रहे कि जब वे अपने अध्यापकों को वेतन नहीं दे रहे, जब स्कूल खुल नहीं रहे, तब हर माह फीस क्यों वसूली जा रही?
हरियाणा राज्य के आंकड़ों की तरह, अन्य राज्यों के आंकड़े सामने आएं, तो गरीब बच्चों की बर्बादी की वास्तविक तस्वीर सामने आए। यह तस्वीर, बेरोजगारी की तस्वीर भी प्रस्तुत कर रही है। जैसा कि हरियाणा के अधिकारियों का मानना है कि निर्माण कार्यों के बंद हो जाने से मजदूरों के बच्चों की फीस भरपाई संभव नहीं हो पाई। मजदूरों के पलायन कर जाने के कारण भी उनके बच्चे स्कूलों से बाहर हो गए।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
Next Story