सम्पादकीय

कोरोना काल: समस्याओं का अंबार या नसीहत का भंडार

Gulabi
20 Feb 2021 12:06 PM GMT
कोरोना काल: समस्याओं का अंबार या नसीहत का भंडार
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जब से कोरोना का समय शुरू हुआ है तबाही का मंजर सिर्फ एक देश तक ही सीमित ना रहकर पूरे विश्व

जब से कोरोना का समय शुरू हुआ है तबाही का मंजर सिर्फ एक देश तक ही सीमित ना रहकर पूरे विश्व को किसी ना किसी तरीके से कोई ना कोई सबक सिखाने में लगा हुआ है। देखा जाए तो विश्व के ज्यादातर देशों को उनका वास्तविक आईना दिखाने में यह महामारी कामयाब रही है। किस देश का नेतृत्व कितना सक्षम है से लेकर किस देश के संसाधन कितने उपयोगी है तक हर सवाल का जवाब खुली किताब बनकर विश्व स्तर पर सबके सामने आया है।



निश्चित रूप से 2020 में कोरोना के कारण पूरी दुनिया में करोड़ों जिंदगियां आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तरीके से बुरी तरह से प्रभावित हुई है परंतु सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि उसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें जन- धन और जीवन तीनो बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। ऑस्ट्रेलिया के जंगलो की आग ने जनजीवन प्रभावित किया, इंडोनेशिया में बाढ़ ने अपना कहर ढाया, कोरोना से लड़ने में अमेरिका का कमजोर नेतृत्व जो वंहा के लोगों को उचित स्वास्थ्य सुविधाए नहीं दे पाया।



नेपाल में सरकार डावांडोल हुई, चीन पर लगातार कोरोना फैलाने के आरोपों की बौछार हो रही थी इतना सब होने के बाद भी अभी भी कुछ थमने का नाम नहीं ले रहा है क्योंकि अब 2021 में उत्तराखंड आपदा के रूप में समस्या आयी है तो विश्वस्तर पर मयांमार में तख्ता पलट ने सबको हैरान किया हुआ है आखिर ये हो क्या रहा है?

अचानक दुनिया को किसकी नजर लग गई, क्या ये सब पहले भी होता था?
इन सवालों के जवाब हर व्यक्ति को ढूंढने चाहिए साथ ही मिले जवाबों पर सच्चाई से मंथन भी जरूरी है क्योंकि इन सबका असर हर व्यक्ति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा ही है। देखा जाए तो इन समस्याओं के दौर में जहां दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियां हिम्मत हार रही थी उस वक्त भी समूचे विश्व में सबसे ज्यादा सकारात्मक कोई देश रहा है तो वो है भारत जिसने कोरोना से लेकर उत्तराखंड आपदा तक हर क्षण एक नया जज्बा पेश किया है और इस विपरीत समय में लगतार आगे बढ़ते हुए दूसरे देशों की भरपूर मदद भी की और इसकी मुख्य वजह है हमारे खून में होंसलो की महक का होना जो कि हमारे पूर्वजों ने हमें यह विरासत में दी है।

जहां दूसरे देश अपने ही अपरिपक्व नेतृत्व के कारण परेशनिया झेल रहे थे, वंहा दंगे फसाद हो रहे थे हमारा नेतृत्व वर्तमान की एवं आगे आने वाली समस्याओं से निपटने की तैयारी में जुटा था बस यही वजह है कि आज हमारे देश में पुनः जन जीवन सामान्य होने लगा है, त्योहारों की रौनक लौटने लगी है, स्कूल खुलने की तैयारियां हो रही हैं और देश पुनः तरक्की की ओर अपना मार्ग प्रशस्त करता हुआ आगे बढ़ रहा है।

पूरी दुनिया में समस्या एक ही थी पर हर देश के निराकरण अलग-अलग थे। भारतीय नेतृत्व की भूमिका से हमें अपने पारिवारिक, व्यवहारिक एवं व्यवसयिक जीवन में यही सीखना चाहिए कि जिसने समस्या का धैर्य के साथ सकारात्मक रहते हुए हल ढूंढने की कोशिश की वो कम नुकसान के साथ जल्दी समस्या से बाहर निकल पाया है और जिसने घबराकर या हड़बड़ाहट में गलत निर्णय लिए वो पीछे भी रहा और नुकसान भी अधिक उठाया।

वैसे तो बीता साल मुश्किलों भरा रहा पर हर व्यक्ति को काफी कुछ समझा कर व सीखाकर गया है जैसे कि जीवन क्षण भंगुर है, हमारी आंखो पर लगी गुरूर की काली पट्टी हटाकर हमें अपनी वास्तविकता के साथ जीना चाहिए साथ ही एक बार फिर बीता साल हमें ये याद दिल गया की उतार और चढ़ाव का नाम ही जीवन है।
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