सम्पादकीय

कोरोना महामारी: इनकी समस्याओं पर चुप्पी

Gulabi
23 Jan 2022 6:43 AM GMT
कोरोना महामारी: इनकी समस्याओं पर चुप्पी
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टीकाकरण के बीच नए वर्ष में महामारी से जब मुक्ति मिलने की उम्मीद थी
टीकाकरण के बीच नए वर्ष में महामारी से जब मुक्ति मिलने की उम्मीद थी, तब कोविड की तीसरी लहर ने लोगों को फिर से डरा दिया है। हालांकि पहले की दो लहरों की तुलना में इस बार स्थिति थोड़ी ठीक दिखाई देती है। पहली लहर में लगे लॉकडाउन ने पूरे देश को हैरान कर दिया था। दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों ने लोगों को डरा दिया था। लेकिन तीसरी लहर में पहले जैसी दहशत या अफरा-तफरी नहीं है। बल्कि अनेक जगह मैंने लोगों में लापरवाही देखी है। तीसरी लहर की भयावहता भले ही तुलनात्मक रूप से कम हो, लेकिन कामकाजी लोगों की मुश्किलों में कोई कमी नहीं आई है।
पिछली लहर के दौरान मैंने घरों में कामकाज करने वाली महिलाओं के प्रति लोगों की उदारता देखी थी। तब भले ही अनेक लोगों ने कामकाजी महिलाओं को घर आने से रोक दिया था, लेकिन अनेक घरवाले ऐसे थे, जिन्होंने अपने यहां कामकाज करने वालों को बाहर न निकलने की सलाह दी थी, और कुछ ने तो बगैर कामकाज के ही उनके बैंक खातों में तनख्वाह की राशि डाल दी थी। हालांकि महामारी का प्रकोप लंबा चलने पर घर बैठे मिलने वाली राशि आधी, फिर पूरी बंद ही हो गई। लोगों ने साफ कह दिया कि अब तुम कोई दूसरा विकल्प ढूंढ लो, क्योंकि महामारी के लंबा खिंचने से हमारी आय भी प्रभावित हुई है।
यह सच है कि महामारी लोगों की आर्थिक हैसियत देखकर नहीं आती। महामारी का असर सब पर पड़ा है। लेकिन अर्थव्यवस्था, उद्योग, मध्य वर्ग आदि पर इसके असर की जिस तरह बात होती है, उस तरह निम्न वर्ग की परेशानियों की बात नहीं होती। इससे भी इनकार नहीं कि अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने पर सब पर उसका असर पड़ता है। अगर मध्य वर्ग की आय प्रभावित होती है, तो लोगों के घर पर काम करने वाली महिलाओं पर उसका असर पड़ना तय है। लेकिन दुख की बात यह है कि निम्न वर्ग की स्थिति पर कोई बात नहीं करता। चूंकि राजनीतिक और आर्थिक कारणों से इस बार बंदिशें उतनी सख्त नहीं की गई हैं, ऐसे में, राष्ट्रीय स्तर पर धारणा यह है कि तीसरी लहर में सब कुछ सामान्य है। जबकि सच्चाई यह नहीं है।
दूसरी लहर के दौरान मैंने पाया था कि अनेक दैनिक मजदूर इस कारण अपने घर लौट गए थे कि इससे कम से कम मकान के किराये से मुक्ति मिल जाएगी। जिनके घर में आर्थिक परेशानी नहीं थी, वे तो अपने घर चले गए थे। लेकिन जिनके लिए अपने घर में भी भोजन और पैसे की तंगी थी, वे शहर में ही रह गए। ये वे लोग थे, जिनका काम या तो छूट गया था, या वे किसी तरह दो जून की रोटी का प्रबंध कर रहे थे। लेकिन मकान मालिकों ने उनके किराये के मामले में किसी तरह की दयालुता नहीं दिखाई। कुछ जगहों पर जरूर उन्होंने दो-चार सौ रुपये कम कर दिए, पर मकान किराये से तात्कालिक तौर पर छूट किसी को नहीं मिली।
हरियाणा के जिस क्षेत्र में मैं रहती हूं, वहां पंद्रह-बीस साल पहले ईंटों की दीवार और टीन-एस्बेस्टस की छत वाले छोटे-छोटे घर दैनिक मजदूरों को किराये पर दिए जाते थे। उससे भी पहले कुछ जगहों पर गत्ते की दीवार और तिरपाल-प्लास्टिक शीट टांगकर मजदूरों को किराये पर देते मैंने देखा था। आज वहां बहुमंजिली इमारतें बन चुकी हैं। एक-एक बिल्डिंग में अस्सी से सौ कमरे हैं, जिनसे हर महीने मिलने वाले किराये की कुल राशि की कल्पना जा सकती है। ऐसी बिल्डिंगों में रहने वाले मजदूरों को उनकी मुश्किलों के वक्त साफ-साफ कह दिया गया कि महीने का किराया दो, वर्ना कमरा खाली करो।
जहां मजदूरों के प्रति थोड़ी दया दिखाई भी गई, वहां उन्हें दूसरी तरह परेशान किया गया। जैसे, उनकी बिजली काट दी गई, पानी का कनेक्शन बंद करवा दिया गया। आखिर पहली लहर के दौरान देश भर के शहरों-महानगरों से बाहर निकले लोगों ने रेलगाड़ियां न चलने की स्थिति में सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय किया ही था। इससे दर्दनाक और क्या होगा कि दूसरे राज्यों और इलाकों से आकर, मेहनत-मजदूरी कर, कष्ट सहकर जो लोग शहरों और महानगरों को आकार देते हैं, उन्हें गढ़ते हैं, कारखाने और फैक्टरियां चलाते हैं, उनके आड़े वक्त में कोई उनके साथ खड़ा नहीं होता!
शुक्र है कि इन दिनों कोरोना के कारण पहले जैसी बंदिशें और भय नहीं है। लेकिन लोग भूल जाते हैं कि दूसरों के घरों में काम करने वाले या शहरों में फेरी लगाने वाले उतने सजग और जागरूक नहीं होते कि हर घटना पर नजर रख सकें। वे दूसरे लोगों से सुनी गई बातों के आधार पर धारणा बनाते हैं। यह ठीक है कि पहले जैसी सख्ती नहीं है, लेकिन जब दिल्ली में संक्रमण बढ़ने के कारण सप्ताहांत कर्फ्यू है, वैसे में, यह आशंका तो होती ही है कि मामले बढ़ने पर दूसरी जगहों में भी ऐसी सख्ती हो सकती है। वैसी स्थिति में सबसे ज्यादा मुश्किल उन्हीं लोगों को होती है, जिनकी रोज की कमाई पर ही उनकी गृहस्थी की गाड़ी चलती है। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस या व्यवस्था के निशाने पर इसी तरह के लोग सबसे ज्यादा होते हैं, क्योंकि उन्हें नियम-कानून की जानकारी नहीं होती। इनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर कई लोग उनसे नाजायज तरीके से पैसे वसूलते हैं। इसलिए स्थिति जितनी भी सामान्य दिखती हो, खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है। सिर्फ कामना ही की जा सकती है कि मानवता को जल्दी ही इस महामारी से पूरी तरह छुटकारा मिले।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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