सम्पादकीय

कोरोना के लौटने का खतरा

Gulabi
25 Feb 2021 3:04 PM GMT
कोरोना के लौटने का खतरा
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अभी यह तो नहीं कह सकते हैं कि कोरोना का खतरा वापस अपने पुराने रूप में लौट आया है, क्योंकि

अभी यह तो नहीं कह सकते हैं कि कोरोना का खतरा वापस अपने पुराने रूप में लौट आया है, क्योंकि यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि भारत में महामारी का सबसे बुरा समय गुजर चुका है। इसके बावजूद कोरोना की वापसी का खतरा बढ़ गया है। भले ही एक सीमित भौगोलिक इलाके में हो पर कोरोना की वापसी हो रही है। यह वापसी खतरनाक भी हो सकती है। खतरनाक इसलिए क्योंकि भारत में वायरस के नए स्ट्रेन भी पहुंच गए हैं। ब्रिटेन में मिले नए स्ट्रेन पर तो कहा जा रहा है कि भारत में बनी वैक्सीन का असर होगा, लेकिन दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में मिले स्ट्रेन पर वैक्सीन का असर नहीं हो रहा है। तभी दक्षिण अफ्रीका ने भारत में बनी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोवीशील्ड की 20 लाख डोज इस्तेमाल नहीं की और उसे अफ्रीकी संघ को दे दिया। पहले खबर थी के वे वैक्सीन की डोज वापस कर रहे हैं।


बहरहाल, पहले भी भारत में कोरोना का वायरस हवाई जहाज के जरिए बाहर से आया था। चीन के वुहान से आए जहाज में 30 जनवरी 2020 को भारत का पहला मरीज मिला था। एक बार फिर दुनिया के दूसरे देशों से वायरस का आना शुरू हो गया। भारत में जो घरेलू संक्रमण हुआ वह कुछ हद तक सावधानी बरतने से और कुछ लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता की वजह से रूक गया। तभी सर्दियों में जब सारी दुनिया में कोरोना की दूसरी या तीसरी लहर आई तब भारत में अचानक केस कम होने लगे। सितंबर 2020 के बाद संक्रमण लगातार कम होता गया। लेकिन अब फिर पिछले 10 दिन से वायरस का संक्रमण तेज हुआ है और इसमें करीब दो सौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अभी वायरस की जो नई लहर आती दिख रही है वह घरेलू संक्रमण से ज्यादा बाहर से आए वायरस की हो सकती है। ऐसा मानने की वजह यह है कि संक्रमण उन इलाकों में ज्यादा फैल रहा है, जहां से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का आना-जाना ज्यादा होता है। दक्षिण के राज्यों में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में नए केसेज बढ़े हैं। इन तीनों राज्यों में अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का आना-जाना बहुत होता है। इसी तरह महाराष्ट्र और पंजाब में भी खतरा बढ़ा है और इन राज्यों में विदेश लोगों का आना-जाना बहुत होता है। तभी सरकार को पहली सावधानी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को लेकर बरतनी है। हवाईअड्डों पर सिर्फ दिखावे के लिए आरटी-पीसीआर जांच नहीं होनी चाहिए और अगर जरूरी हो तो कुछ देशों से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी भी लगनी चाहिए।

इसके साथ ही इन राज्यों से लगती सीमा पर चौकसी बढ़ानी चाहिए ताकि दूसरे देश से आए वायरस के स्ट्रेन को भारत में फैलने से रोका जाए। अगर नए स्ट्रेन वाला वायरस फैलने लगता है तो कोरोना की वैक्सीन से सुरक्षा हासिल होने का जो भरोसा बना है वह खत्म हो जाएगा। इसका असर सामान्य जनजीवन पर तो होगा कि एक बार फिर आर्थिकी प्रभावित होनी शुरू हो जाएगी। बड़ी मुश्किल से भारत में यह धारणा बनी है कि कोरोना का संकट टल गया है, सामान्य जनजीवन बहाल हो रहा है और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। हालांकि यह पूरी तरह से सच नहीं है।

भारत में कोरोना की नई लहर ज्यादा खतरनाक इसलिए भी हो सकती है क्योंकि यहां कोरोना को लेकर बड़ी लापरवाही बरती गई है। टेस्टिंग में घोटाले हुए हैं और वैक्सीनेशन पर लोगों का भरोसा नहीं बन रहा है।

भारत में कोरोना के केसेज कैसे कम हुए इसकी गुत्थी हाल में बिहार की हकीकत सामने आने से सुलझी है। अंग्रेजी के अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस की टेस्टिंग का पूरा मामला ही फर्जी पाया गया है। अखबार ने कई जगह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से टेस्टिंग का आंकड़ा उठाया और पता चला कि ज्यादातर आंकड़े फर्जी हैं। किसी का नाम लिख कर उसे निगेटिव बता दिया गया तो किसी को पॉजिटिव। जांच हो तो इस तरह का घोटाला देश के कई और राज्यों में भी मिलेगा। टेस्टिंग का यह घोटाला देश के आम नागरिकों की सेहत के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। इसमें आर्थिक घोटाला तो है ही साथ ही आम लोगों की जान से खिलवाड़ भी है।

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दूसरी गलती भारत सरकार ने की, जो उसने वैक्सीनेशन शुरू होने से पहले ही टेस्टिंग कम करनी शुरू कर दी। दुनिया के जिन देशों में वायरस काबू में आया उन्होंने टेस्टिंग के जरिए ही कोरोना पर विजय हासिल की। भारत में उलटा हुआ। पहला कदम जमीन पर ठीक से रखने से पहले ही सरकार ने दूसरा कदम उठा लिया। जनवरी में 16 तारीख से वैक्सीनेशन अभियान शुरू हुआ और उससे पहले ही टेस्टिंग घटा दी गई। दिसंबर तक भारत में हर दिन 11 लाख टेस्ट हो रहे थे, लेकिन अब पूरे देश में छह लाख के करीब टेस्ट हो रहे हैं। वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ी नहीं, उसका असर आना शुरू नहीं हुआ और उससे पहले ही टेस्टिंग आधी कर दी गई। ध्यान रहे वैक्सीन की पहली डोज के 28 दिन के बाद दूसरी डोज लगाई जाती है और उसके 14 दिन बाद उसका असर होता है। यानी 42 दिन के बाद ही वैक्सीन का असर होगा पर उससे पहले टेस्टिंग घट गई। टेस्टिंग कम करने की वजह से केसेज की संख्या कम दिखने लगी, लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं है कि जमीनी स्तर पर कोरोना कम हो गया।

कोरोना वायरस के मामले में खतरे की एक नई बात की ओर एम्स दिल्ली के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि अपने आप बन रही या वैक्सीन के जरिए हासिल हो रही एंटीबॉडी बहुत पावरफुल नहीं है। इसका मतलब है कि एंटीबॉडी जल्दी ही लोगों के शरीर से खत्म हो सकती है और उन्हें फिर से कोरोना का संक्रमण हो सकता है। यह बहुत खतरनाक और चिंताजनक बात है क्योंकि अगर एंटीबॉडी कमजोर है तो इसका अर्थ है कि कोरोना का चक्र हमेशा चलता रहेगा औऱ इससे बचने के लिए लोगों को एक निश्चित समय पर लगातार टीका लगवाना पड़ेगा। अगर कोई नया स्ट्रेन आ गया, जैसे अभी आ रहा है तो उसका खतरा अलग है। भारत में मुश्किल यह है कि 40 फीसदी के करीब लोग वैक्सीन लगाने के बारे में फैसला नहीं कर पा रहे हैं। वे या तो इस प्रचार के असर में हैं कि भारत ने नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों से कोरोना पर विजय हासिल कर ली है या इस प्रचार के असर में हैं कि वैक्सीन कारगर नहीं है और उसका दुष्प्रभाव हो सकता है। इन दोनों कारणों से लोग वैक्सीन लेने से बच रहे हैं, इससे भी कोरोना का खतरा बढ़ सकता है।

भारत में कोरोना के केसेज बढ़ रहे हैं यह अपने आप में चिंता की बात है पर उससे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि वायरस के नए स्ट्रेन का संक्रमण बढ़ रहा है, टेस्टिंग में या तो घोटाला हो रहा है या कमी की जा रही है, वैक्सीनेशन की रफ्तार नहीं बढ़ रही है और उसके बहुत ज्यादा असरदार होने पर भी संदेह है। सो, कोरोना खत्म हुआ मानना बड़े खतरे का कारण बन सकता है।


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